नई दिल्ली। क्रिकेट के जन्मदाता देश इंग्लैंड में 30 मई से क्रिकेट का महाकुंभ यानि विश्व कप (50 ओवर) का आगाज होने जा रहा है। क्रिकेट के इस बड़े तमगे को हासिल करने के लिए हर टीम अपनी जान झोंकने को तैयार है। इस विश्व कप के फॉरमेट में हालांकि बदलाव हुआ है और इस बार राउंड रोबिन फॉरमेट में टीमें खिताबी जंग के लिए जद्दोजहद करेंगी। इस बार राउंड रोबिन फॉरमेंट में विश्व कप का आयोजन होगा, जहां हर टीम को विश्व कप में हिस्सा लेने वाली सभी टीमों से खेलना होगा।
राउंड रोबिन फॉरमेट विश्व कप में दूसरी बार इस्तेमाल किया जा रहा। सबसे पहले 1992 में ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड की संयुक्त मेजबानी में हुए विश्व कप में इसे इस्तेमाल किया गया था। विश्व कप के 12वें संस्करण में कुल 10 टीमें हिस्सा ले रही हैं और राउंड रोबिन फॉरमेट के हिसाब से हर टीम को नौ मैच खेलने हैं। यह प्रारूप इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) में भी इस्तेमाल किया जाता है। 46 दिनों तक चलने वाले इस विश्व कप में कुल 48 मैच खेले जाएंगे।
अंकतालिका में शीर्ष-4 टीमें सेमीफाइनल के लिए क्वालीफाई करेंगी और फिर दो टीमें 14 जुलाई को क्रिकेट के मक्का कहे जाने वाले लॉडर्स मैदान पर खिताबी जंग होगी। यह प्रारूप किसी भी टीम के लिए आसान नहीं होगा क्योंकि इस प्रारूप की सबसे बड़ी खासियत या यू कहें पेचिदगी यह है कि टीम को अगले दौर में जाने के लिए निरंतर अच्छा प्रदर्शन करना होता है और अगर टीम राह भटकती है तो कई बार दूसरी टीमों के प्रदर्शन पर भी उसका अगले दौर का सफर टिका रहता है।
भारत को अपना पहला मैच पांच जून को दक्षिण अफ्रीका से खेलना है। इसके बाद नौ जून को ऑस्ट्रेलिया, 13 जून को न्यूजीलैंड, 16 जून को पाकिस्तान, 22 जून को अफगानिस्तान, 27 जून को वेस्टइंडीज, 30 जून को इंग्लैंड, दो जुलाई को बांग्लादेश, छह जुलाई को श्रीलंका से भिडऩा है। इस विश्व कप में पहले ही अपेक्षा टीमों की संख्या भी घटाई गई है। विश्व कप के बीते संस्करणों में 12 या 14 टीमें हिस्सा लेती थीं, लेकिन इस बार क्वालीफिकेशन में भी बदलाव किए गए थे।आईसीसी रैंकिंग में शीर्ष-8 में रहने वाली टीमें स्वत: ही विश्व कप के लिए क्वालीफाई कर गई थीं जबकि बाकी के दो स्थानों के लिए क्वालीफिकेशन टूर्नामेंट आयोजित किया गया था, जिससे वेस्टइंडीज और अफगानिस्तान ने अपनी जगह पक्की की थी। राउंड रोबिन प्रारूप से बेशक विश्व कप लंबा होगा लेकिन प्रतिस्पर्धा की कमी कि गुंजाइश नहीं है साथ ही यह प्रारूप किसी भी टीम को आरामदायक स्थिति में रहने या फिर सुकून हासिल करने की इजाजत नहीं देता। 1992 के बाद ग्रुप फॉरमेट ने दोबारा जगह ले ली थी।
1975 में खेले गए पहले विश्व कप से लेकर 1987 तक ग्रुप फॉरमेट में ही मैच खेले गए थे। 1996 से एक बार फिर ग्रुप फॉरमेट ने जगह ले ली थी। वहीं, 1999 में इंग्लैंड में ही खेले गए विश्व कप में ग्रुप-दौर के बाद सुपर-6 दौर को शामिल किया गया था जो दक्षिण अफ्रीका में 2003 में खेले गए विश्व कप में भी जारी रहा था। 2007 में हालांकि आईसीसी ने एक सुपर-6 को हटाकर सुपर-8 दौर को शामिल किया था और पहली बार विश्व कप में दो ग्रुप की जगह चार ग्रुप बनाए गए थे।
सुपर-8 के बाद क्वार्टर फाइनल दौर की शुरुआत हुई थी। भारत में 2011 में खेले गए विश्व कप में एक बार फिर दो ग्रुप वाला फॉरमेट लाया गया था और इसके बाद क्वार्टर फाइनल दौर की शुरुआत हुई थी। 2015 में भी इसी प्रारूप को जारी रखा था। 2019 में बदले हुए प्रारूप से किसी भी टीम को पहले से कमजोर या मजबूत नहीं माना जा सकता क्योंकि इसकी रूपरेखा इस तरह से होती है कि कई तरह के संयोजन काम करते हैं और फिर अगले दौर की चार टीमों का फैसला होता है। इसकी बानगी कई बार आईपीएल में देखने को मिली हैं जहां लीग दौर के आखिरी मैच पर कुछ टीमों का भविष्य निर्भर रहता है।