देहरादून : प्रदेश में पहली बार वन विभाग औषधीय गुणों से भरपूर व शक्तिवर्द्धक के रूप में इस्तेमाल की जाने वाली कीड़ाजड़ी के सामाजिक, आर्थिक और पारिस्थितिकीय प्रभाव का अध्ययन करेगा। अनुसंधान सलाहकार समिति ने विभाग को इसके अध्ययन की मंजूरी दे दी है। इसके अलावा समिति ने हिमालयी बुग्यालों में पर्यटन से पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन करने के साथ ही यहां पाई जाने वाली दुर्लभ प्रजातियों के संरक्षण के लिए माणा और मुंस्यारी में तीन संरक्षण केंद्र बनाने को भी मंजूरी दी है।
वन विभाग मुख्यालय में तीन वर्ष बाद हुई अनुसंधान सलाहकार समिति की बैठक में कई अहम प्रस्तावों पर मुहर लगी। इस समिति की अंतिम बैठक लगभग तीन वर्ष पूर्व अगस्त 2015 में हुई थी। बैठक में 50 से अधिक नई परियोजनाओं व प्रयोगों के लिए स्वीकृति प्रदान की गई। बैठक में कीड़ाजड़ी के सामाजिक व आर्थिक पहलू के अध्ययन का अहम निर्णय लिया गया। कीड़ाजड़ी की चीन और तिब्बत में काफी मांग है। इसकी अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कीमत तकरीबन 20 लाख रुपये प्रति किलो है। इसी कारण कुमाऊं व गढ़वाल के अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में होने वाली इस जड़ी का तेजी से दोहन हो रहा है।
समिति ने इस पर विस्तृत अध्ययन को मंजूरी प्रदान की। बैठक में बुरांश और हिसालु पर पड़ने वाले पर्यावरणीय प्रभाव का अध्ययन करने की भी मंजूरी दी गई। इसके अलावा जलवायु परिवर्तन के चलते प्रवास करने वाले जीव जंतु का अध्ययन करने का भी निर्णय लिया गया। समिति ने मुंस्यारी में विभिन्न प्रकार के आर्किड के संरक्षण के लिए संरक्षण केंद्र बनाने, पाम की विभिन्न प्रजातियों के प्रदर्शन के लिए हल्द्वानी में प्रदर्शन केंद्र बनाने और कैक्टस तथा हिमालयी क्षेत्र की विभिन्न प्रकार की घास के लिए रानीखेत में एक प्रदर्शन केंद्र बनाने पर सहमति प्रदान की।
समिति ने मानव-वन्यजीव संघर्ष के विभिन्न कारणों के अध्ययन और फसल पद्धति में बदलाव लाते हुए इसे कम करने के लिए योजना बनाने को भी मंजूरी प्रदान की। बैठक की अध्यक्षता वन विभाग के प्रमुख मुख्य वन संरक्षक जय राज और संचालन सदस्य सचिव व वन संरक्षण अनुसंधान वृत्त संजीव चतुर्वेदी ने किया। इस दौरान समिति में तीन नए सदस्यों प्रोफेसर एसपी सिंह, महेंद सिंह और जोगेंद्र बिष्ट को भी शामिल किया गया।