उत्तराखंड : उत्तराखंड विधानसभा ने गाय को राष्ट्रमाता घोषित करने का संकल्प पारित कर दिया है। उत्तराखंड विधानसभा इस तरह का संकल्प पारित करने वाली देश की पहली विधानसभा बन गई है। उल्लेखनीय है कि सदन में एकमात्र विपक्षी दल कांग्रेस भी संकल्प के समर्थन में खड़ी रही। इतना ही नहीं कांग्रेस ने भाजपा विधायकों से दो कदम बढ़ कर गाय के संरक्षण करने पर भी जोर दिया। सॉफ्ट हिंदुत्व व शिवभक्त की थ्योरी को अमलीजामा पहनाने का काम उत्तराखंड के काग्रेसी विधायकों ने बखूबी निभाया।
राष्ट्रीय राजनीति में इस संकल्प के निहितार्थ आने वाले समय में उभर कर आएंगे। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत का मानना है कि देवभूमि उत्तराखंड से इस संकल्प के पारित होने का राष्ट्रव्यापी महत्व है। उन्हें भरोसा है कि अन्य राज्यों की विधानसभाएं भी इस तरह के संकल्प पारित कर केंद्र को भेजेंगी व केंद्र की सरकार विधिवत गाय को राष्ट्रमाता घोषित करेगी। विधानसभा का मानसून सत्र मंगलवार से शुरू हो गया है, जिसके 24 सितंबर तक चलने की संभावना है। सत्र में उत्तराखंड नगर निकायों एवं प्राधिकरणों के लिए विशेष प्रावधान अध्यादेश व उत्तराखंड सेवानिवृत्ति लाभ अध्यादेश रखा जाना है।
विपक्ष का सदन की कार्यवाही चलने देने का भरोसा
इस बार विपक्ष ने सदन चलने देने का भरोसा सरकार को दिया है। विधानसभा अध्यक्ष की सर्वदलीय बैठक में विपक्ष ने जनहित के विषय में सहयोगात्मक रवैया अपनाने की बात कही। अगर ऐसा हुआ तो प्रदेश के लिए शुभ संकेत माना जाएगा। सत्र के ठीक एक दिन पहले हुई कैबिनेट की बैठक में सरकार ने कर्मचारियों को महंगाई भत्ते में दो फीसद वृद्धि का फैसला भी लिया है। साथ ही विशेषज्ञ चिकित्सकों की सेवाएं सेवानिवृत्ति के बाद 65 वर्ष तक लेने का निर्णय भी हुआ। यह फैसला राज्य की लचर स्वास्थ्य सेवाओं के मद्देनजर प्रासंगिक माना जा रहा है व सरकार की मजबूरी भी।
जीरो टॉलरेंस
पिछले दिनों त्रिवेंद्र रावत सरकार ने हरिद्वार-ऊधमसिंह नगर-बरेली (एनएच-74) राष्ट्रीय राजमार्ग मुआवजा घोटाले में सख्त तेवर दिखाते हुए दो आइएएस अधिकारियों को निलंबित कर दिया। एसआइटी की रिपोर्ट पर हुई इस कार्रवाई को रावत सरकार की जीरो टॉलरेंस की नीति के तहत उठाया गया कदम बताया जा रहा है। पार्टी संगठन के स्तर पर तो इसे प्रचारित भी किया जाने लगा है। आइएएस अधिकारी डॉ. पंकज पांडेय एवं चंद्रेश यादव पर मुआवजा आवंटन में बतौर डीएम आर्बिट्रेटर की भूमिका निभाते हुए अनियमितताएं बरतने का आरोप है। मुख्यमंत्री का कहना है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ उनकी मुहिम जारी रहेगी। प्रदेश के प्रशासनिक हल्कों में चर्चा है कि मुख्यमंत्री ने यह सख्त फैसला लेने से पहले वरिष्ठ आइएएस अधिकारियों को बिठा कर वस्तुस्थिति से अवगत कराया व उनकी राय भी पूछी। शायद यही वजह है कि कार्रवाई होने से पहले सक्रिय हुआ आइएएस एसोसिएशन ने कोई विरोध नहीं जताया।
साख पर बट्टा
स्कूली शिक्षा में देहरादून का देश में अहम स्थान है। पिछले कुछ दिनों में शैक्षणिक संस्थानों से दो ऐसी शर्मनाक घटनाएं सामने आई हैं, जिससे एजुकेशन हब के रूप में पहचान रखने वाले दून की साख पर बट्टा लगा है। विगत दिवस जीआरडी वर्ल्ड स्कूल में एक नाबालिक छात्र से दो सहपाठियों एवं दो सीनियर छात्रों ने सामुहिक दुष्कर्म किया। दरिंदगी की इस घटना का खुलासा तब हुआ जब पीड़ित बच्ची गर्भवती हो गई। इस प्रकरण में स्कूल प्रबंधन के अमानवीय व आपराधिक चरित्र की बात भी सामने आई है। स्कूल प्रबंधन ने पीड़िता की शिकायत पर कार्रवाई करने के बजाय मामले रफा-दफा करने की साजिश रची। छात्र को जुबान बंद रखने की हिदायत दी गई और डॉक्टरों से मिल कर गर्भपात कराने का दबाव भी डाला। एसएसपी तक पहुचीं शिकायत के बाद पुलिस तुरंत हरकत में आई। स्कूल की निदेशक, प्रधानाचार्य व चार आरोपित छात्रों सहित नौ लोगों की गिरफ्तारी की गई है। पूरा देहरादून इस घटना से बेचैन व आहत महसूस कर रहा है।
स्कूलों को दुकानों की तरह चलाने से इस तरह की वारदातें सामने आ रही हैं। अनुशासन व संस्कार ऐसे स्कूलों की प्राथमिकता में शामिल नहीं हैं। इस तरह के बोर्डिग स्कूलों में लागू होने वाले नियम-कानूनों से बुरी तरह समझौता किया जाता रहा है। ये न तो संबंद्ध बोर्ड की सुनते हैं और न ही प्रदेश सरकार की। उल्टे प्रदेश सरकार इस स्कूलों के दबाव में रहती है। हालांकि सामान्य तौर पर दून के अधिकांश स्कूल शिक्षा व संस्कारों के ऊंचे मापदंडों को बनाए हुए हैं व देश-दुनिया में अपना व दून का नाम रोशन कर रहे हैं। क्वालिटी एजुकेशन के लिए समर्पित देहरादून के स्कूलों में इस वारदात के होने तथा सूचना मिलने पर स्कूल प्रबंधन द्वारा बरती गई आपराधिक लापरवाही व साजिश से बेचैनी देखी जा रही है।