देहरादून: ‘जाको राखे सांइयां मार सके ना कोई’ बुधवार को यह कहावत कोट गांव की 14 वर्षीय बबली देवी पर चरितार्थ हुई। उनके मकान के पहाड़ी से गिरे मलबे की चपेट में आने से उसके माता-पिता, चाचा-चाची और चचेरे भाई बहन असमय ही काल के मुंह में समा गए, लेकिन कुदरत ने बबली की जिंदगी बख्श दी। चार घंटे तक मौत को बेहद करीब से देखने वाली बबली को सकुशल बचा लिया गया। उसे मामूली चोटें आई हैं। स्वास्थ्य विभाग की टीम ने उसे मौके पर ही उपचार दिया।
भिलंगना ब्लाक के कोट गांव में बुधवार सुबह करीब सात बजे लोग मोर सिंह के मकान के पास पहुंचे तो वहां का मंजर देखकर उनका कलेजा मुंह को आ गया। मोर सिंह, उनके भाइयों हुकुम सिंह और राकेश सिंह का साझा मकान जमींदोज था। पहाड़ी की तरफ से हुए भारी भूस्खलन उनके मकान के मलबे को भी काफी दूर तक ले गया था। आसपास पास कुछ भी नहीं दिखाई पड़ रहा था। हर कोई हैरान-परेशान था और इन तीनों भाइयों के परिवार वालों की खोजबीन में जुटा था।
काफी प्रयासों के बाद भी आशा की कोई किरण नहीं दिखाई दे रही थी, मलबा अधिक होने के चलते जमींदोज हुए घर में सोए लोगों का भी कुछ पता नहीं चल पा रहा था। कुछ दूरी पर मलबे में दबे दो शवों का कुछ हिस्सा दिखाई पड़ा तो परिवार वालों के जिंदा होने की उम्मीदें क्षीण होती चली गईं। इस बीच, करीब चार घंटे की खोजबीन के बाद एसडीआरएफ की रेस्क्यू टीम को मकान के पत्थरों की ओट में उन्हें चौदह वर्षीय बबली दिखाई दी। वह रजाई में लिपटी थी, उसकी सांसें चल रही थी।
पत्थरों की ओट की वजह से वह मलबे में दबने से बच गईं। सीएमओ भगीरथ जंगपांगी की अगुआई में मौके पर मौजूद डाक्टरों की टीम ने उसे प्राथमिक उपचार दिया। डाक्टरों की उसकी स्थिति सामान्य बताई है।
कुछ देर बाद बेहोश हो गई थी
बबली बताती है कि सुबह जब उसकी आंख खुली तो उसने खुद को पत्थरों से बनी गुफा जैसी जगह पर पाया। यह देखकर वह डर गई और उसने मदद के शोर मचाया, लेकिन कोई नहीं आया। इसके कुछ देर बाद वह बेहोश हो गई। फिर क्या हुआ, उसे कुछ नहीं पता।
छठी में पढ़ती है छात्रा
हादसे में बीच बबली राजकीय इंटर कालेज कोट विशन में कक्षा 6 की छात्रा है। परिवार के अन्य सदस्यों की मौत का पता चलने के बाद से वह सहमी हुई है। किसी से ज्यादा बातचीत भी नहीं कर रही है। गांव की महिलाएं उसे ढाढस बंधा रही हैं। उसके दादा और दादी हादसे के बाद से सदमे में हैं।
कोट गांव में पसरा मातम, नहीं जले चूल्हे
कोट गांव में जहां कल तक जिंदगी कुलांचे भरती थी, वहां बुधवार को मरघट सा सन्नाटा पसरा था। गांव में दो परिवारों के सात लोग भूस्खलन की घटना में जिंदा दफ्न हो गए थे। ग्रामीण समझ ही नहीं पा रहे थे कि प्रकृति बार-बार उनके साथ मौत का यह क्रूर खेल क्यों खेल रही है। इस घटना में जीवित बची बबली को तो यह तक पता नहीं था कि वह इस हादसे में अपने माता-पिता और भाई को खो चुकी है। गांव में इस हृदयविदारक घटना के कारण कई घरों में चूल्हे तक नहीं जले।
बुधवार सुबह चार बजे पूरा गांव गहरी नींद में सोया था लेकिन तभी गांव के ऊपर से हुए भूस्खलन से तीन कमरों का मकान जमींदोज हो गया। मकान क्षतिग्रस्त होने की आवाज सुनकर गहरी नींद में सोए ग्रामीण जाग गए और घटना स्थल की ओर दौड़ पड़े। रात के समय गांव में बारिश भी हुई थी। सुबह अंधेरा होने के कारण ग्रामीणों को कुछ सूझ हीं नहीं रहा था कि क्या किया जाए।
मलबा इतना अधिक था कि मलबे में दबे लोगों का पता हीं नहीं चल पा रहा था। किसी तरह ग्रामीण खोजबीन के कार्य में जुट गए। तभी गामीणों ने 14 वर्षीय बबली को मलबे में दबा देखा। ग्रामीणों ने किसी तरह बालिका को मलबा से जिंदा बाहर निकाल लिया, लेकिन और के जीवित होने की कोई उम्मीद नहीं बची। सुबह छह बजे करीब ग्राम प्रधान डबल सिंह ने किसी तरह जिला प्रशासन को घटना की सूचना दी और करीब नौ बजे सर्च अभियान शुरू किया गया। एक ही परिवार के सात सदस्यों की मौत से पूरे गांव में मातम छा गया। ग्रामीण महिलाओं की आंखों से आंसू लगातार बहे जा रहे थे। शाम के समय कई जनप्रतिनिधि भी गांव में आए, लेकिन विस्थापन की आस संजोए ग्रामीणों के जख्म फिर हरे हो गए।