हरिद्वार: स्वामी सानंद उर्फ जीडी अग्रवाल ने मौत से चंद घंटे पहले यानी गुरुवार की सुबह 06:45 बजे अपने हाथ से एक चिट्ठी लिखी। जिसे मातृसदन के हवाले से स्वामी सानंद ने मीडिया को जारी किया।
स्वामी सांनद के इस आखिरी पत्र का हिंदी अनुवाद इस प्रकार है कि 10 अक्टूबर को हरिद्वार प्रशासन की ओर से मुझे मातृसदन से ऋषिकेश एम्स में भर्ती करा दिया। जहां एम्स के डॉक्टरों ने उनकी तपस्या को गंभीरता से लिया।
साथ ही, संस्थान की ओर उन्हें चिकित्सकीय परामर्श के तीन विकल्प सुझाए। जिसमें फोर्स फीडिंग, मुंह या नाक के जरिए, स्लाइन के जरिए उपचार की बात कही। उन्होंने बताया है कि खून में पोटेशियम की मात्रा 3.5 के सापेक्ष 1.7 होने के चलते पोटेशियम देने की भी सलाह दी गई है।
मैंने इस पर सहमति जता दी है कि वह मुंह से और स्लाइन के जरिए भी पोटेशियम लेने के लिए राजी हैं। इतना ही नहीं सानंद ने तपस्या को लेकर एम्स के सहयोग का आभार भी इस चिट्ठी में जताया।
गंगा रक्षा के लिए मातृसदन के तीसरे संत का बलिदान
गंगा रक्षा की लड़ाई में मातृसदन से जुड़े तीसरे संत ने अपने प्राण त्यागे हैं। स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद से पहले वर्ष 2011 में ब्रह्मचारी निगमानंद और वर्ष 2013 में गोकुलानंद की मौत हुई है। मातृसदन का आरोप है कि तीनों ही संतों की हत्या की गई है। निगमानंद और गोकुलानंद की विसरा जांच में जहर होने की पुष्टि भी हुई है। कनखल के जगजीतपुर में वर्ष 1998 में मातृसदन की स्थापना के बाद परमाध्यक्ष स्वामी शिवानंद महाराज के शिष्य ब्रह्मचारी निगमानंद व गोकुलानंद ने खनन और क्रशर माफिया के खिलाफ अनशन की शुरुआत की।
सबसे पहले स्वामी गोकुलानंद ने तीन मार्च से 30 मार्च 1998 तक अनशन किया। इसके बाद ब्रह्मचारी निगमानंद ने अलग-अलग समय पर अनशन किए। 13 जून 2011 को संत निगमानंद की मौत हुई। मातृसदन ने जहर देकर हत्या करने का आरोप लगाया है। जिसके बाद स्वामी गोकुलानंद ने अनशन किया।
वर्ष 2013 में गोकुलानंद एकांत तपस्या करने गए थे। मातृसदन के मुताबिक, नैनीताल के बामनी गांव में उन्हें जहर दे दिया गया। उनकी विसरा रिपोर्ट में एस्कोलिन जहर की पुष्टि हुई। अब स्वामी सानंद की मौत होने पर मातृसदन ने सीधे-सीधे हत्या का आरोप लगाया है। गंगा रक्षा की लड़ाई में तीसरी आहुति डालने के बाद भी मातृसदन गंगा रक्षा के अपने संकल्प पर अडिग हैं। स्वामी शिवानंद ने गुरुवार को भी मातृसदन में यह दोहराया कि एक-एक सांस रहने तक गंगा के लिए संघर्ष और आंदोलन जारी रहेगा।