उत्तरकाशी: विश्व के खतरनाक रास्तों में शुमार गर्तांगली से सीढ़ियां गायब देख पर्यटक हैरान नजर आए। दरअसल, इस बार पर्यटन दिवस पर पर्यटकों का एक दल गर्तांगली की सैर को निकला इस दौरान वहां क्षतिग्रस्त लकड़ी की सीढ़ियां और बीते वर्ष एक हिस्से में लगाई गई नई सीढ़ियां हटाई गर्इ मिली, जिससे पर्यटकों ने कड़ी नाराजगी व्यक्त की है।
उत्तरकाशी में समुद्रतल से करीब 11 हजार फीट की ऊंचाई पर गर्तांगली को लेकर गंगोत्री नेशनल पार्क और पर्यटन विभाग का रवैया उपेक्षापूर्ण है। जिसके चलते गर्तांगली में कुछ जगह सीढ़ियां क्षतिग्रस्त हो गर्इ हैं, जबकि हिस्से में लगार्इ गर्इ नर्इ सीढ़ियां गायब मिली। पर्यटक और रेडक्रॉस सोसाइटी के चेयरमैन अजय पुरी ने कहा कि दिल्ली में पर्यटन दिवस पर उत्तराखंड को साहसिक पर्यटन के लिए सम्मानित किया गया। लेकिन यहां 17वीं सदी की एतिहासिक सीढ़ियों की यह दशा की गई है।
भारत-चीन सीमा पर जाड़ गंगा घाटी में स्थित सीढ़ीनुमा यह मार्ग दुनिया के सबसे खतरनाक रास्तों में शुमार है। कहा जाता है कि करीब 300 मीटर लंबा यह रास्ता 17वीं सदी में पेशावर से आए पठानों ने चट्टान को काटकर बनाया था। भारत-चीन युद्ध से पहले व्यापारी इसी रास्ते से ऊन, चमड़े से बने वस्त्र व नमक लेकर तिब्बत से बाड़ाहाट (उत्तरकाशी का पुराना नाम) पहुंचते थे। युद्ध के बाद इस मार्ग पर आवाजाही बंद हो गई। लेकिन, वर्ष 1975 से सेना ने भी इस रास्ते का इस्तेमाल बंद कर दिया।
बीते वर्ष प्रशासन व गंगोत्री नेशनल पार्क ने मिलकर इस क्षतिग्रस्त सीढ़ी की मरम्मत करने का कार्य किया। वर्ष 2017 में जब पर्यटक पहली बार गर्तांगली तक गए थे, तो वहां गर्तांगली के कुछ हिस्से में सीढ़ियों की मरम्मत हुई थी, जिससे पर्यटकों ने जमकर लुत्फ उठाया था। लेकिन, इस बार वहां का नजारा ही कुछ और रहा। अजय पुरी कहते हैं कि वे बीते वर्ष भी गर्तांगली की सैर करने गए थे और इस वर्ष भी। लेकिन, इस बार गर्तांगली की लकड़ी की सीढ़ियों को देखकर बड़ी हैरानी हुई।
जिन सीढ़ियों की बीते वर्ष मरम्मत की थी, उन सीढ़ियों का तो पता ही नहीं है। इसके साथ ही कुछ हिस्से से पुरानी क्षतिग्रस्त सीढ़ियां भी गायब हैं, जो साहसिक पर्यटन के लिए बेहद दुखद है। गंगोत्री नेशनल पार्क के प्रभारी उप निदेशक संदीप कुमार ने बताया कि यह मामला उनके संज्ञान में नहीं है।