देहरादून: प्रदेश में सौर और पिरुल ऊर्जा से पहाड़ में पलायन रोकने की नई कवायद शुरू हो गई है। इसके लिए उत्तराखंड विद्युत नियामक आयोग (यूईआरसी) ने नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों तथा ईंधन आधारित सह उत्पादकों से विद्युत आपूर्ति के लिए शुल्क, क्षमता और निबंधन नीति लागू कर दी है। नई नीति के तहत पहले आओ, पहले पाओ की तर्ज पर लाभ मिलेगा। सभी प्रोजेक्ट में केंद्र सरकार की ओर से 70 फीसद सब्सिडी का लाभ भी मिलेगा। शनिवार से ही इसके लिए आवेदन किए जा सकते हैं। यूईआरसी के अलावा उरेडा में आवेदन पत्र उपलब्ध हैं।
पहाड़ों के लघु उद्योगों में बिजली की कमी को दूर करने के लिए यूईआरसी ने सौर ऊर्जा के अलावा पिरुल पर आधारित बिजली परियोजना की नीति बनाई है। शुक्रवार को आयोग ने संशोधित और नई नीति लागू कर दी। सौर ऊर्जा और पिरुल पर आधारित परियोजना पहाड़ में पलायन रोकने और रोजगार बढ़ाने में महत्वपूर्ण माना जा रहा है। खासकर सौर ऊर्जा पर आधारित ग्रिड इंटरेक्टिव रूफ एवं लघु सौर पीवी परियोजनाओं की क्षमता को इस नीति में संशोधित किया गया है।
आयोग के अध्यक्ष सुभाष कुमार ने कहा कि पहले 1000 किलोवाट तक क्षमता के प्रोजेक्ट सौर ऊर्जा में दिए जा रहे थे। मगर, पहाड़ की भौगोलिक परिस्थिति और दूसरे कारणों का अध्ययन करने के बाद इसमें संशोधन कर दिया है। अब दो किलोवाट से एक मेगावाट तक के प्रोजेक्ट का लाभ ग्रामीण उठा सकते हैं। इसके तहत घरों की छतों या खाली पड़ी जमीन पर प्रोजेक्ट मामूली लागत पर लगाए जा सकते हैं।
जिसके लिए केंद्र सरकार 70 प्रतिशत अनुदान देगी। इसके अलावा बैंकों से भी लोन लेकर प्रोजेक्ट लगाए जा सकते हैं। इसी तरह आयोग ने पिरुल बायोमास गैसीफायर परियोजना को भी राज्य में शुरू कर दिया गया है। इसके लिए भी जारी नीति में शुल्क, ट्रैरिफ, निबंधन के मापदंड लागू कर दिए हैं।
डेढ़ से दो रुपये किलो खरीदेंगे पिरुल
पिरुल विद्युत उत्पादन नीति में स्थानीय लोगों के रोजगार को ध्यान में रखते हुए आयोग ने डेढ़ रुपये से लेकर दो रुपये प्रति किलो पिरुल बेचने का निर्णय लिया है। एक व्यक्ति प्रतिदिन 300 से 400 किलोग्राम पिरुल(चीड़ की पत्तियां) एकत्र कर सकता है। इससे प्रतिमाह पांच हजार से छह हजार की आय हो सकती है।