देहरादून: प्राकृतिक रूप से दून बेहद संवेदनशील है। इसकी ऊपरी सतह नाजुक है और दूनघाटी की कटोरानुमा बनावट वायु प्रदूषण को जल्दी से बाहर नहीं निकलने देती। यही कारण है कि दून में प्रदूषण फैलाने वाले उद्योग लगाने की अनुमति नहीं है। इसी संवेदनशीलता के कारण दून की पहचान रिटायर्ड लोगों के शहरों के रूप में रही है। जहां का वातावरण शांत और मन को सुकून देता था। राज्य गठन से पहले के और आज के दून को देखें तो इसकी सूरत देखकर मन भारी हो जाता है। आबादी का ग्राफ 40 फीसद तक बढ़ चुका है और नदी-नालों तक पर कब्जे हो चुके हैं। दूसरी तरफ सड़कों पर फुटपाथ गायब हैं और प्रमुख सड़कों से लेकर लिंग मार्गों तक पर रात-दिन जाम नजर आता है।
पूरा विश्व 31 अक्टूबर को वर्ल्ड सिटीज डे मनाता है। इस बहाने दिवस की सामान्य थीम ‘बेटर सिटी, बेटर लाइफ’ व इस साल की थीम ‘बिल्डिंग सस्टेनेबल एंड रेसिलिएंट सिटीज’ के आलोक में दून को देखा जाए तो लगता है कि यहां का सुकून इस तरह फिसल गया, जैसे मुठ्ठी से रेत।
कहते हैं आंकड़े झूठ नहीं बोलते, तो चलिए हाल के महीनों में जारी किए गए ईज ऑफ लिविंग (रहने योग्य) इंडेक्स और स्वच्छ सर्वेक्षण-2018 की रैंकिंग के आलोक में दून पर नजर डालते हैं। ईज ऑफ लिविंग इंडेक्स में शामिल 111 शहरों में दून का स्थान 80वां आना बड़े सवाल खड़े करता है। इसी तरह स्वच्छता के पैमाने पर 485 शहरों की सूची में दून का स्थान 259वां रहा।
जबकि इससे पहले सरकार दावा कर रही थी कि दून को टॉप 50 शहरों में जगह मिल जाएगी। इससे पहले संसद में रखी गई वायु प्रदूषण की रिपोर्ट में देश के 273 शहरों में दून सर्वाधिक प्रदूषित (पीएम-10 की स्थिति के मुताबिक) शहरों में छठे स्थान पर रहा। बावजूद इसके न तो जनरेटर के धुएं पर अंकुश लग पा रहा है, न ही मानक से अधिक धुआं उगलते वाहनों पर।