देहरादून: हृदय विदारक दृश्य देख हर कोई अवाक था। छोटे भाई की लाश कंधे पर उठाए एक शख्स इधर से उधर भटक रहा था। वाकया दून मेडिकल कॉलेज के अस्पताल से जुड़ा है। शव को घर तक ले जाने के लिए उसके पास एंबुलेंस करने के लिए पैसे नहीं थे। कई लोगों से फरियाद की पर किसी ने नहीं सुनी। बाद में अस्पताल के स्टाफ व इलाज के लिए वहां आए किन्नरों ने उसके लिए चंदा जुटाया।
बिजनौर जिले के धामपुर में फलों की ठेली लगाने वाले पंकज का छोटा भाई सोनू हलवाई की दुकान में काम करता था। सोनू टीबी से ग्रस्त था। हालत खराब होने पर वह उसे देहरादून लाया। गुरुवार को दून मेडिकल कॉलेज के इमरजेंसी वार्ड में उसकी मौत हो गई।
अब शव को धामपुर ले जाना था पर गरीबी आड़े आ गई। पंकज ने निजी एंबुलेंस संचालक से बात की, जिसने पांच हजार रुपये किराया बताया, लेकिन उसके पास महज एक हजार रुपये थे। पंकज ने 108 एंबुलेंस के चालक से बात की। जिसने कहा कि वह मरीज को ले जाते हैं, शव नहीं।
कुछ लोगों से मदद की गुहार लगाई, लेकिन वह भी नहीं मिली तो उसने शव को कंधे पर उठाया और अस्पताल से निकल पड़ा। वह अभी निकला ही था कि कुछ किन्नरों ने उसे देख लिया। उन्होंने अस्पताल के स्टाफ के साथ मिलकर तीन हजार रुपये चंदा इकट्ठा किया। एंबुलेंस चालक से बात की और उसे तीन हजार रुपये में शव छोड़ने पर राजी किया।
आर्थिक तंगी बनी मौत की वजह
सोनू की जान भी आर्थिक तंगी के चलते गई। उसका भाई उसे धामपुर में यहां-वहां दिखाता रहा। बाद में किसी ने दून में दिखाने की सलाह दी। वह लोग धामपुर से चले तो पास में सिर्फ दो हजार रुपये थे। इसमें कुछ पैसा बस का किराया व मास्क आदि लेने में खर्च हो गया।
श्वास एवं छाती रोग के विभागाध्यक्ष डॉ. रामेश्वर पांडे मरीज को देख रहे थे। उन्होंने आर्थिक हालत को देखते हुए तमाम जांच निश्शुल्क लिखी, लेकिन उसके उत्तराखंड का मूल निवासी न होने के कारण यह सुविधा भी नहीं मिल पाई।