देहरादून। हरिद्वार की एक साध्वी कमलेश भारती ने अनाथ बच्चियों के कल्याण को अपना जीवन समर्पित कर दिया। बीते 18 सालों में उनके मातृ आंचल विद्यालय ने ऐसी 800 बेटियों का जीवन संवारने का काम किया। कमलेश द्वारा स्थापित यह विद्यालय इस पुण्य कार्य में आज भी समर्पित भाव से रत है।
मथुरा रेलवे स्टेशन पर मिली एक अबोध बच्ची की परवरिश से शुरू हुआ साध्वी का यह प्रण साल-दर-साल विस्तार लेता गया। अब तक 800 से अधिक बालिकाएं यहां से शिक्षा और संस्कार प्राप्त कर समाज की मुख्य धारा से जुड़ चुकी हैं। साध्वी इस समय भी 75 अनाथ बालिकाओं का संरक्षण कर रही हैं।
सितंबर 2000 में समाजसेवी प्रह्लाद को मथुरा रेलवे स्टेशन पर तीन साल की बालिका लावारिस हालत में मिली। वह उसे लेकर साध्वी कमलेश भारती के पास पहुंचे और खुद की माली हालत का जिक्र कर साध्वी से उसे अपने पास ही रखने का आग्रह किया।
साध्वी ने न केवल बालिका को स्वीकार किया, बल्कि यहीं से उन्हें अनाथ एवं असहाय बालिकाओं को संरक्षण देने की प्रेरणा मिली। इसके बाद मातृ आंचल संस्था बना इसे ऐसी बालिकाओं का आश्रय स्थल बना दिया। एक के बाद एक कई बालिकाओं को मां का आंचल ही नहीं, शिक्षा और संस्कार भी दिए।
अब तक 800 से अधिक कन्याएं यहां से शिक्षा हासिल कर जा चुकी हैं। इंटरमीडिएट से लेकर उच्चशिक्षा प्राप्त तक सफल करियर बना चुकी बेटियों की यहां अच्छी-खासी संख्या है। 17 का यहीं से विवाह हुआ, जो आज अपने जीवन में सुखी हैं।
संस्था का खर्च निकालने के लिए मातृ आंचल की ओर से अब एक सशुल्क स्कूल भी संचालित किया जा रहा है। यहां वर्तमान में आठवीं तक की शिक्षा दी जाती है। बच्चों को पढ़ाने के लिए नौ शिक्षिकाएं रखी गई हैं। स्कूल में रेहड़ी-ठेली लगाने वाले गरीब परिवारों के बच्चों को दाखिले में प्राथमिकता दी जाती है। फीस भी मामूली रखी गई है। एक ही परिवार के दूसरे बच्चे को फीस में 50 फीसद की छूट दी जाती है।
शिक्षा, संस्कार और स्वावलंबन…
वर्तमान में मातृ आंचल में पांच से 17 साल उम्र की 75 अनाथ बालिकाएं साध्वी मां के संरक्षण में बेहतर परवरिश पा रही हैं। बकौल साध्वी, कन्याओं को स्वावलंबी बनाना मेरे जीवन की बड़ी सफलता है। बालिकाएं भौतिकवाद से दूर रहकर शिक्षा, संस्कार और समाज से जुड़कर चलें और खुद को संभाले रखें। अपना जीवन सुखी बनाएं। यही ध्येय है।
देखभाल में नहीं कोई कमी
मातृ आंचल में अनाथ बेटियों की देखभाल में हर स्तर की सजगता बरती जा रही है। यहां तक कि सारा प्रबंधन महिलाओं के पास ही है। ऑफिस स्टाफ से लेकर भोजन पकाने जैसे कार्य भी महिलाएं ही करती हैं। वर्तमान में यहां 20 से 25 महिलाओं का स्टाफ है। हरिद्वार के राजा गार्डन इलाके में लीज पर ली गई भूमि पर संस्था संचालित हो रही है। वर्तमान में यहां भोजनालय, पुस्तकालय, गोशाला समेत 50 कमरे हैं।