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‘राजनीतिक गुटबाजी’ बतायाचीनी अखबार में कहा गया है कि फाइव आईज एक इंटेलिजेंस शेयरिंग तंत्र  (खुफिया जानकारी साझा करना) से बदलकर ‘राजनीतिक गुटबाजी’ वाला संगठन बन गया है.
***राजनीतिक गुटबाजी’ बतायाचीनी अखबार में कहा गया है कि फाइव आईज एक इंटेलिजेंस शेयरिंग तंत्र  (खुफिया जानकारी साझा करना) से बदलकर ‘राजनीतिक गुटबाजी’ वाला संगठन बन गया है?

हमारे साथ गुंडागर्दी कर रहा ऑस्ट्रेलिया गैंगस्टर बोल जमकर भड़का चीन

www.youngorganiser.com    Jammu (Tawi) 180001 (J&K Union Territory) Updated, 28th Feb. 2021, SUN. 2:04 PM (IST) : ( Article ) Pawan Vikas Sharma   चीन के रिश्ते इस समय ना केवल भारत और अमेरिका बल्कि ऑस्ट्रेलिया से भी तनाव भरे  चल रहे हैं. चीन का आरोप है कि ऑस्ट्रेलिया ‘अमेरिका केंद्रित नस्लवादी और माफिया स्टाइल कम्युनिटी का हिस्सा है.’ ऑस्ट्रेलिया ‘फाइव आईज’ नामक इंटेलिजेंस गठबंधन का हिस्सा है. जिसमें कनाडा, न्यूजीलैंड, ब्रिटेन और अमेरिका भी शामिल हैं. यह लंबे समय से चला आ रहा वो गठबंधन है, जिसमें ऑस्ट्रेलिया न्यूजीलैंड सहित इन तीन देशों के साथ इंटेलिजेंस से जुड़े मामलों पर काम करता है. अब चीनी सरकार के अखबार ग्लोबल टाइम्स में इस गठबंधन को ‘व्हाइट सुप्रिमेसी  की धुरी वाला एक नकली अंतरराष्ट्रीय गठबंधन’ बताया गया है. अखबार के संपादकीय में कहा गया है कि ‘अमेरिका केंद्रित इस नस्लवादी  गठबंधन के सदस्य देश अपनी मर्जी और अहंकार से चीन को उकसाने का काम करते हैं और उसी तरह अपने आधिपत्य को मजबूत कर रहे हैं, जैसे सभी गुंडे यानी गैंगस्टर  किया करते हैं.’ इसमें ये भी कहा गया है कि इन देशों का उद्देश्य चीन के विकास के अधिकारों को रोकना है.फाइव आईज को ‘राजनीतिक गुटबाजी’ बतायाचीनी अखबार में कहा गया है कि फाइव आईज एक इंटेलिजेंस शेयरिंग तंत्र  (खुफिया जानकारी साझा करना) से बदलकर ‘राजनीतिक गुटबाजी’ वाला संगठन बन गया है. चीन ने कहा है, ‘व्हाइट सुप्रिमेसी की धुरी वाले नकली अंतरराष्ट्रीय संगठन के हाथों 21वीं सदी में वैश्विक कूटनीति को हाईजैक नहीं होने देना चाहिए. वे मानव जाति के एजेंडे को निर्धारित नहीं कर सकते हैं. हम दुनिया की आम नैतिकता के बहाने इनके स्वार्थ को मंजूरी नहीं दे सकते.’अपने हित के लिए गुंडागर्दी कर रहे’ चीन की ओर से कहा गया है, ‘हम उन्हें (फाइव आईज) को मानव जाति का एजेंडा सेट नहीं करने दे सकते. वह बहुपक्षवाद का दिखावा करना चाहते हैं लेकिन वो वास्तव में अपने हित के लिए गुंडागर्दी कर रहे हैं.’ दरअसल चीन और ऑस्ट्रेलिया के बीच बीते साल से ही तनाव बना हुआ है. ऑस्ट्रेलिया  ने कोरोना वायरस की उत्पत्ति की स्वतंत्र जांच कराने की मांग की थी. जिसके बाद चीन ने व्यापार उल्लंघन का हवाला देते हुए अरबों डॉलर के ऑस्ट्रेलिया के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था. इनमें बीफ और वाइन भी शामिल हैं. टीम में शामिल नीदरलैंड के वायरोलॉजिस्ट मरियॉन कूपमेंस ने कहा कि इस सी-फूड मार्केट में खरगोश और बैम्बू रैट जैसे कुछ ऐसे जानवर बिकते हैं, जो चमगादड़ के करीबी संपर्क में रहते हैं और इनसे कोरोना फैलने की आशंका बहुत ज्यादा है। WHO के फूड सेफ्टी और एनिमल डिजीज एक्सपर्ट पीटर बेन एम्बर्क ने कहा कि ये मिशन वायरस के सोर्स का पता लगाने का पहला कदम है। वैज्ञानिकों का मानना है कि हो सकता है कि ये वायरस किसी जंगली जानवर से इंसानों तक पहुंचा हो। जैसे- पैंगोलिन या बैंबू रैट। या फिर ऐसा भी हो सकता है कि ये सीधे चमगादड़ से इंसानों में आया हो। और ये भी संभव है कि ये वायरस फ्रोजन फूड के जरिए इंसानों तक पहुंचा हो।   WHO की टीम के साथ चीनी वैज्ञानिक भी काम कर रहे हैं। चीनी वैज्ञानिकों के प्रमुख लियांग वानियन हैं। उन्होंने दुनिया में सबसे पहले वुहान में ही कोरोना के मामले सामने आए थे। इसी वजह से WHO ने वुहान को चुना है। दिसंबर 2019 में वुहान के लोग इस संक्रमण की चपेट में आना शुरू हुए। इनमें से ज्यादातर लोगों का संबंध यहां के बड़े सी-फूड मार्केट से था। तेजी से बढ़ते मामलों को देखते हुए चीन की सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन ने जांच के लिए टीम भेजी। 23 जनवरी 2020 को यहां लॉकडाउन लगा दिया गया। मार्च में यहां कोरोना काबू में आया, लेकिन तब तक बहुत नुकसान कर चुका था। 76 दिन बाद आठ अप्रैल को वुहान से लॉकडाउन हटाया गया। WHO की प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि कोरोना के शुरुआती केस सी-फूड मार्केट के आसपास के इलाके के अलावा बाकी शहर में भी आए थे। ऐसे में हो सकता है कि वायरस इस सी-फूड मार्केट की जगह कहीं और से आया हो। इस थ्योरी का अब तक चीन के अलावा किसी भी देश ने समर्थन नहीं किया है, लेकिन WHO के मंच से चीन ने अपने इस प्रोपेगेंडा को एक बार फिर से रखा। उसका इशारा भारत और ब्राजील जैसे देशों की ओर था क्योंकि चीन ने नवंबर में दावा किया था कि 2019 की गर्मियों में कोरोना भारत में पैदा हुआ। जानवरों से होकर गंदे पानी के जरिए ये इंसानों में पहुंचा। यहां से दुनिया में फैला। वहीं, दिसंबर 2020 में चीनी वैज्ञानिकों ने दावा किया था कि ब्राजील से आए फ्रोजन फूड में कोरोना के जिंदा वायरस मिले थे। हालांकि, उस वक्त WHO ने चीन के इस दावे को खारिज किया था। कोरोना के शुरुआती मामले चीन के जिस वुहान शहर से आए, वहां WHO की टीम पहुंची है। 14 जनवरी को पहुंची इस टीम ने मंगलवार यानी 9 फरवरी को पहली बार अब तक की जांच के बारे में बताया, लेकिन जो बताया, वो WHO की जांच का नतीजा कम और चीन के प्रोपेगेंडा का समर्थन ज्यादा लग रहा है। वो प्रोपेगेंडा जिसमें चीन कभी भारत, तो कभी ब्राजील, तो कभी यूरोप के देशों को घसीटता रहा है। वो प्रोपेगेंडा जिसमें कोरोना वायरस को चीन से नहीं, बल्कि किसी और देश से आने की बात की जाती है। जिसका दुनिया के किसी भी दूसरे देश ने अब तक समर्थन नहीं किया है। अमेरिकी संस्था AIDS हेल्थकेयर फाउंडेशन ने इस जांच रिपोर्ट पर सवाल उठाए हैं। संस्था का कहना है कि इस जांच दल में ऐसे लोग शामिल हैं जिनका चीन की ओर झुकाव है। कुछ वैज्ञानिकों पर तो कॉन्फ्लिक्ट ऑफ इंट्रेस्ट का भी मामला बनता है। इस तरह की किसी भी जांच में तब तक सही कारण सामने नहीं आएंगे, जब तक पूरी तरह से स्वतंत्र जांच दल वुहान में जाकर जांच नहीं करेगा। ग्लोबल हेल्थ पर काम करने वाले यानझोंग हुआन ने न्यूयॉर्क टाइम्स से कहा कि ये पूरी तरह से चीन के प्रभाव में उसके हिसाब से की गई जांच है। वो कहते हैं कि WHO को चीन पर जरूरी डेटा और एक्सेस के लिए दबाव बनाना होगा। अभी ये टीम चीन सरकार के तय पैरामीटर पर काम कर रही है। इससे बहुत कुछ नहीं निकलेगा। कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर कोरोना फैलने के लिए दूसरे देशों को जिम्मेदार ठहराने की कोशिश होती है तो ये जांच अपने मकसद से भटक जाएगी। कोरोना के शुरुआती दिनों में क्या हुआ। इसका पता लगाने के लिए चीन में ये जांच बहुत अहम है, जिससे आगे किसी दूसरी महामारी को रोका जा सके। अमेरिका और चीन (US-China) के बीच रिश्ते लंबे समय से काफी खराब चल रहे हैं. वाशिंगटन बीजिंग के खिलाफ आर्थिक और औद्योगिक जासूसी का आरोप लगाता रहा है. अमेरिका (America) का कहना है कि चीन (China) को अपनी इस हरकत को बंद करना चाहिए. वहीं, अब अमेरिकी सांसदों ने एक कदम आगे बढ़ते हुए चीन के नागरिकों को दिए जाने वाले 10 साल के मल्टी-एंट्री वीजा (10 year Mulit-Entry visa) को खत्म करने की वकालत की है. दरअसल, प्रभावशाली रिपब्लिकन सीनेटरों के एक समूह ने चीन की इस वीजा सिस्टम तक पहुंच को समाप्त करने के लिए एक कानून पेश किया है. वीजा सिक्योरिटी एक्ट’ नाम के इस कानून को मार्शा ब्लैकबर्न, टॉम कॉटन, रिक स्कॉट, टेड क्रूज और मार्को रुबियो द्वारा पेश किया गया. ये कानूनी चीनी नागरिकों को 10 वर्ष के लिए दिए जाने वाले B-1/B-2 वीजा को हासिल करने से रोक देगा. ये कानून तब तक प्रभावी रहेगा, जब तक कि गृह विभाग यह प्रमाणित नहीं करता कि चीन ने अमेरिका के खिलाफ आर्थिक और औद्योगिक जासूसी के अपने अभियान को बंद कर दिया है. साथ ही ताइवान (Taiwan) के खिलाफ उत्तेजक और जबरदस्ती भरा व्यवहार बंद कर दिया है.

एक साल तक ही मिलेगी मल्टी-एंट्री की सुविधा

B-1/B-2 वीजा उन लोगों को जारी किया जाता है, जो अमेरिका में व्यापार, दौरे या घूमने के मकसद से आते हैं. इस नए कानून के जरिए, चीनी नागरिक केवल एक साल तक मल्टी-एंट्री वीजा का लाभ उठा पाएंगे. यह नीति 2014 से पहले के वीजा की स्थिति में वापसी का प्रतिनिधित्व करेगी और ताइवान या हांगकांग के कुछ निवासियों पर लागू नहीं होगी. अमेरिकी सीनेटर द्वारा लाए गए इस नए कानून के जरिए चीन पर लगाम लगाने का प्रयास किया जाएगा. हाल के दिनों में चीन ने अपनी आक्रामकता में वृद्धि भी की है.

चीन को अपनी इन हरकतों को करना होगा समाप्त

इस कानून के जरिए गृह मंत्री को ये प्रमाणित करना होगा कि चीन ने हांगकांग के संबंध में अपने राष्ट्रीय सुरक्षा कानून को वापस ले लिया है. साथ ही 1984 के चीन-ब्रिटिश संयुक्त घोषणा के तहत अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरी तरह से बरकरार रखा है. इसके अलावा, उइगुर मुस्लिमों, तिब्बतियों और अन्य जातीय समूहों पर किए जाने वाले अत्याचारों को समाप्त कर दिया है. दूसरी ओर, बीजिंग को दक्षिण चीन सागर में अपने गैरकानूनी दावों को करना बंद करना होगा. बीजिंग को चीन में बंदी बनाए गए विदेशी नागरिकों और गलत तरीके से हिरासत में लिए गए लोगों को रिहा करना होगा?

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