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सौ साल का भरा-पूरा पेड़ एक करोड़ रुपये से भी ज्यादा कीमती
सौ साल का भरा-पूरा पेड़ एक करोड़ रुपये से भी ज्यादा कीमती

सौ साल का भरा-पूरा पेड़ एक करोड़ रुपये से भी ज्यादा कीमती

www.youngorganiser.com    Jammu (Tawi) 180001 (J&K Union Territory) Updated, 7th Feb. 2021.Sun, 8:30 PM (IST) : Team Work: Taru. R.Wangyal  & Pawan Vikas Sharma, अक्सर अपने आस-पास लगे पेड़ का कोई ख्याल नहीं रखा जाता है, किसी का मन चाहा तो उसपर बोर्ड लगा दिया और किसी ने चाहा तो उसे काटकर फेंक दिया. अगर आप भी ऐसा करते हैं या फिर आपके पास कोई ऐसा करता है तो जरा संभलकर, हो सकता है कि आपके घर के पास या आपके गांव में लगा पौधा करोड़ों रुपये का हो. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में पेश की गई एक रिपोर्ट में पेड़ की उम्र के हिसाब से कीमत बताई गई है,वे न केवल खुद में एक जिंदा चीज हैं बल्कि असंख्य जीवों के आश्रय के रूप में एक पूरी दुनिया की भूमिका निभाते हैं। समिति ने ठीक ही कहा है कि किसी भी परियोजना को अंतिम रूप देते समय यह देखा जाना चाहिए कि कितने पेड़ उसकी राह में आ रहे हैं। संभव हो तो परियोजना के स्थान और स्वरूप में बदलाव करके पेड़ों को बचा लेना चाहिए। और ऐसा न हो सके तो पहली कोशिश पेड़ों की जगह बदलने की होनी चाहिए। अंतिम विकल्प के रूप में पेड़ काटने ही पड़ें तो भी एक पेड़ के बदले पांच पौधे लगाने का चलन नाकाफी है।छोटे आकार के पेड़ के लिए 10, मध्यम आकार के वृक्ष के लिए 25 और बड़े आकार के वृक्ष के लिए 50 पौधे रोपे जाने चाहिए। एक जरूरत यह भी है कि ऐसे हर पौधारोपण कार्यक्रम की पांच साल बाद ऑडिटिंग करना अनिवार्य बनाया जाए ताकि इसका पूरा ब्योरा उपलब्ध रहे कि जितने पौधे लगाए गए उनमें से कितने वृक्ष के रूप में विकसित हो पाए हैं। गौरतलब है कि समिति की यह सिफारिश ऐसे समय में आई है जब मंदी से उबरने के लिए सरकार का सारा जोर देश में ज्यादा से ज्यादा इन्फ्रास्ट्रक्चर विकसित करने पर है। ऐसे में यह सुनिश्चित करना जरूरी हो जाता है कि विकास के नाम पर कहीं हमारे परिवेश का ऐसा नुकसान न हो जाए, जिससे आगे चलकर उबरा ही न जा सके। समिति के मुताबिक सौ साल का भरा-पूरा पेड़ एक करोड़ रुपये से भी ज्यादा कीमती हो सकता है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने अभी इस रिपोर्ट को स्वीकार नहीं किया है और इस पर केंद्र सरकार समेत तमाम पक्षों से राय मांगी गई है। यह डर स्वाभाविक है कि अगर इन सिफारिशों को ज्यों का त्यों लागू कर दिया गया तो हर परियोजना की लागत इतनी बढ़ जाएगी कि न सिर्फ उन्हें बना रही कंपनियों बल्कि सरकारों के भी दिवालिया होने का खतरा पैदा हो जाएगा। फिर भी हमें इतना तो स्वीकार करना ही पड़ेगा कि पेड़ महज लकड़ी नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट ने वृक्षों की सही कीमत आंकने के लिए जो विशेषज्ञ समिति गठित की थी, उसके द्वारा इसके तरीकों को लेकर की गई सिफारिशें देश को नई दिशा देने वाली हैं। पश्चिम बंगाल की एक रेलवे ओवरब्रिज परियोजना से जुड़े मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पांच सदस्यीय समिति का गठन किया था। पेड़ों से निकलने वाली लकड़ी की मात्रा के आधार पर उनका मूल्य तय करने की परिपाटी को गलत बताते हुए समिति ने कहा है कि पूरे परिवेश में उनके योगदान को ध्यान में रखते हुए ही उनकी कीमत तय की जा सकती है। इस समझ के आधार पर समिति का निष्कर्ष यह है कि एक पेड़ की कीमत साल भर में 74,500 रुपये बैठती है। जाहिर है, जो पेड़ जितना पुराना होगा, उसकी कीमत भी इस दृष्टि से उतनी ही ज्यादा होगी। पर्यावरण विशेषज्ञों की इस समिति ने पेड़ की बची हुई उम्र,ऑक्सीजन, मैक्रो न्यूट्रिशिएंट, कंपोस्ट और अन्य जैव उर्वरक सहित कई कारकों के आधार पर किया है, समिति ने बताया कि किसी पेड़ की कीमत सिर्फ उसकी लकड़ी के आधार पर नहीं तय की जा सकती है, लकड़ी के अलावा भी कई चीजें हैं, जिनकी कीमत लगाई जा सकती है?

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