www.youngorganiser.com Jammu (Tawi) 180001 (J&K Union Territory) Updated, 12th Feb. 2021.Sun, 12:33 PM (IST) : ( Article ) Kapish Sharma, कहा गया है न कि अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप। अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप, यकीन रखने वाला कारोबारी कभी लाभ में नहीं रहता, शुभ में भले रहता हो। मेरी समकालीनता तो यही है कि मैंने एक व्यक्ति से पूछ लिया- क्यों भाई साहब, बजट कैसा लगा? अगला बोला- बिल्कुल रद्दी, एकदम बेकार। मैंने प्रश्न किया, क्यों? वह बोला, क्योंकि मैं विपक्ष में हूं। मैंने फिर पूछा- क्यों, आप विपक्ष में क्यों हैं? वह बोला- तो क्या से सींग कटाकर किसी दूसरी पार्टी में घुस जाऊं। वहां अब बचा क्या है? सपने भी उधार लेकर देखने पड़ते हैं भाई साहब। सफाई भी तो गंदे कपड़े से की जाती है। बजट देखकर एक प्रतिक्रिया यह थी कि अपने सैंया तो बहुते कमाल हैं। महंगाई डायन खाए जात है। अब आप ही बताइए, दारू की जगह क्या अब हम डीजल-पेट्रोल पिएं? सांसदों और विधायकों के सरकारी भोजन की थाली महंगी हो जाने से गरीबी की ढाबा थाली तो सस्ती नहीं हो गई। गंगा जल मिलाकर पीने से शराब पवित्र नहीं हो जाती। रसोई गैस महंगी हो गई, इस कारण से गैस्ट्रिक ट्रबल वाले लोग भी अपने आप को बेशकीमती समझने लगे हैं। मौसम बदल रहा है, लेकिन हम नहीं बदल पा रहे। इस सर्दी के मौसम में यह सिद्ध हो गया है कि मर्दों की तुुलना में औरतों को ठंड कम लगती है। कंबल सिर्फ पुरुषों को शोभा देता है। दाढ़ी-मूछें भी केवल मर्दों के लिए जरूरी हैं, वरना नखरे उनके ताली बजाने वाले समुदाय जैसे लगते हैं। मौसम अब हरा-पीला होने लगा है। इन दिनों खेतों में चारों तरफ लंबी-लंबी पीली सरसों बिछ गई है। बागों-बगीचों में भी नयापन आने लगा है। इस नरमी-गरमी में सुख और आनंद भी नए अनुभव देने लगता है। एक फिल्मी गीत में कभी कहा गया था- आज मौसम बड़ा बेईमान है। मगर वास्तव में ऐसा नहीं है। कहा भी है- प्रभु मूरत देखी तिन तैसी। मौसम विभाग पर नहीं, तो कम से कम मुझ पर तो भरोसा रखिए। किसान आंदोलन व्यापक होता जा रहा है। स्वदेशी तो स्वदेशी, विदेशी सेलिब्रेटी भी बढ़-चढ़कर इसमें मौखिक हिस्सेदारी निबाह रहे हैं। यह अलग बात है कि अभी तक विदेशी भागीदारी प्रतीकात्मक है। जैसे कभी अमेजन के जंगलों में दावानल भड़क उठे, हम सेहन में रखे तसले में आग सुलगा, उसे फ्रिज के ठंडे पानी से बुझाने का कौतुक रचें। सघन कन्फ्यूजन के बीच निजी हथेलियों को परस्पर रगड़ते हुए वसुधैव कुटुंबकम् की बात करें। ऐसी बड़ी-बड़ी बातें पहले कभी कभार होती थीं। तब पढ़े-लिखे लोगों के पास गूगल की पनाहगाह नहीं, ज्ञान के लिए ग्लोब होते थे। सूचनाएं मंथर गति से सरकती थीं। सुदूर मुल्क से विजय अमृतराज द्वारा किसी टूर्नामेंट के जीतने की खबर जब तक आती, और जनता खुशी मना पाती, तब तक वह अगले राउंड में पराजित हो स्वदेश लौट आते। अब लेटेस्ट सूचना यह है पॉप स्टार रिहाना, अल्ट्रा पर्यावरणवादी ग्रेटा थनबर्ग और एक्टर मिया खलीफा आदि आंदोलन के हैशटैग चला रहे हैं। इनमें से मिया खलीफा ऐसा नाम है, जिसका जेंडर जानने-समझने को गूगलजी की मदद लेनी पड़े। बंदे की जात-पात और लिंग जाने बिना बात आगे चलती नहीं। भीषण प्राकृतिक आपदा में अकूत जान-माल की हानि के उपरांत तमाशबीन ‘च्च-च्च’ टाइप संवेदना जताने से पूर्व मृतकों का मजहब कन्फर्म करते हैं। आजकल बतौर स्पैम तमाम लुइसों, सैन्ड्राओं और माइकलों की मेल लगातार आती-जाती हैं, जिनके साथ बैंक में लाखों डॉलर या यूरो छोड़ गए किसी नजदीकी रिश्तेदार की हृदय विदारक कहानी नत्थी होती है। इनमें अक्सर अनुरोध होता है कि आप अपने बैंक खाते की ओटीपी सहित डिटेल दें और ढेर-सा धन पाएं। किस्मत का छप्पर फाड़ कनेक्शन समय-समय पर लोगों को तरह-तरह से याद कराया जाताहै। आंदोलन आयातित च्यूंगम की तरह खिंचता जा रहा है। ऐसे-ऐसे प्रकरण सामने आ रहे हैं जैसे सरकती जाए है रुख से नकाब आहिस्ता-आहिस्ता। परत-दर-परत मामला निरंतर उलझता-सुलझता जा रहा है।
![कहा गया है न कि अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप। अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप](https://i0.wp.com/youngorganiser.com/wp-content/uploads/2021/02/remarks-on-budget-2021.jpg?resize=253%2C199&ssl=1)
कहा गया है न कि अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप। अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप