Breaking News

सदियों से चली आ रही सरहदों पर असहमति चीन एलएसी को सुलझाने में अनमना सा

www.youngorganiser.com    Jammu (Tawi) 180001 (J&K Union Territory) Updated, 3rd, Feb. 2021.Wed, 7:19 AM (IST) : vikas sharma ( Article) , कल रक्षा मंत्री ने संसद में लद्दाख में जारी भारत-चीन संघर्ष पर बयान दिया।रक्षा मंत्री ने दोनों देशों के बीच के प्रोटोकॉल और समझौतों की बात काफी खुलकर की। पिछले एक दशक में ये परीक्षा की घड़ी है, उन इलाकों में जहां दोनों देश आमने-सामने खड़े हैं। लेकिन पिछले कुछ सालों में इन दोनों देशों की झड़प युद्ध जैसे हालात पैदा कर रही हैं। फिर चाहे वो 2013 और 2014 देपसांग और चुमार हो या फिर 2017 में दोलाम में चीन को भूटान के हित में रोक देने की कवायद। इन गर्मियों में ये सभी कवायद 15 जून को गलवान में अपने सैनिकों की जान बचाने के काम नहीं आई। हालांकि इस हादसे में एक भी गोली नहीं चली थी। लेकिन दो महीनों बाद पैन्गॉन्ग में गोली तो चली लेकिन जान नहीं गई। ऐसे कई हादसे और हरकतें हैं जो ये बता रही हैं कि समझौते, संधियां और कवायद दोनों देशों के बीच काम नहीं कर रही हैं। इसे संभालने के लिए दोनों ही देशों को बहुत गंभीरता से मेहनत करना होगी, ताकि सब शांति से सुलझ जाए। हमने देखा की चीन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हुई बातचीत में तो उचित बयान दे रहा है लेकिन ग्राउंड पर उनकी हरकत उन्हीं की बातों को झुठला रही हैं।रक्षा मंत्री ने उन मिलिट्री एक्शन का भी जिक्र किया जो इस साल गर्मियों में ली गईं। फिर चाहे वो संघर्ष, सामरिक युद्धाभ्यास और चीन के इलाके में सैनिकों को जमा करना हो। उन्होंने संसद को ये भरोसा दिलाया की अपने देश की संप्रभुता के लिए चीन की सैनिकों का मुकाबला करने हमारी तैयारी भी मजबूत है।राजनाथ सिंह ने ये भी कहा कि चीन विदेश मंत्री के साथ हुई उनकी मीटिंग में वो साफ कर चुके हैं कि अगर चीन के साथ वो अपने मसले को शांति से सुलझाना चाहते हैं और चाहते हैं कि चीन भी इसी तरह हमारे साथ काम करे। वो ये तक कह चुके हैं कि भारत की संप्रभुता और अखंडता की रक्षा के लिए हमारे संकल्प पर कोई संदेह नहीं होना चाहिए। यही बातचीत दोनों देशों के विदेश मंत्रियों के बीच भी हो चुकी है।उनके ये बयान देश के लिए भरोसा है इस बात का कि हम खुलकर शांति से बातचीत का संकल्प ले चुके हैं। लेकिन, अपनी सरहद की रखवाली के लिए किसी भी हद तक जाकर हर संभव एक्शन के लिए तैयार हैं। रक्षा मंत्री ने सदन को 1993 और 1996 के उन समझौते के बारे में भी बताया जिसमें कहा गया था कि दोनों देश एलएसी के आसपास अपनी सेनाओं की संख्या कम से कम रखेंगे। इन समझौतों में ये भी कहा गया था कि सीमा से जुड़े सवालों का हल अभी होना है और तब तक दोनों ही देश एलएसी का सम्मान करेंगे। यही नहीं, दोनों देश एलएसी तय करने के लिहाज से एक बीच का रास्ता अख्तियार करेंगे।शायद यही वजह थी कि 1990 से 2003 के बीच दोनों देशों ने एलएसी के पुख्ता अस्तित्व के लिए काम भी किया, लेकिन उसके बाद चीन इसे लेकर अनमना ही नजर आया। नतीजतन इससे चीन और भारतीय एलएसी की धारणाएं एक दूसरे को पार करने लगीं। इस इलाके में भी सरहद के बाकी हिस्सों की तरह ही, अलग-अलग समझौते हूबहू लागू होते हैं। फिर चाहे वो सैनिकों की तैनाती और ऑपरेशन को लेकर हो या फिर शांति कायम करने के लिए झड़प होने पर क्या करें, इसकी हिदायत हो। रक्षा मंत्री ने कहा कि 38000 वर्ग किमी भारतीय जमीन चीन के कब्जे में है और ये कहते हुए उनका मतलब अक्साई चिन से था। ये इलाका चीन ने हड़प लिया था। इसकी स्ट्रैटेजिक औरज्योग्राफिकल अहमियत है। यहां से गुजरने वाले रास्ते और यहां मौजूद पानी चीन के लिए अमूल्य है।रक्षा मंत्री ने ये भी कहा कि 5000 स्क्वेयर किमी भारतीय जमीन चीन के हवाले कर दी गई। उनका इशारा पीओके के शाक्सगम वैली के 5180 किमी इलाके की ओर था, जो 1963 में पाकिस्तान ने चीन के सौंप दिया। शाक्सगम वैली उसी पाक कब्जे वाले कश्मीर का हिस्सा है, जिस पर पाकिस्तान ने कब्जा कर रखा था। उसे कोई हक नहीं कि वो कब्जे वाली जमीन को किसी तीसरे देश के हवाले कर दे।रक्षा मंत्री ने कहा कि चीन नॉर्थ ईस्ट में 90 हजार स्क्वेयर किमी के इलाके पर भी अपना दावा करता है। चीन के दावे की मानें तो पूरा का पूरा अरुणाचल प्रदेश ही उसका है। ये बताना जरूरी है कि चीन अरुणाचल पर अपनी हिस्सेदारी जताता है और उसे साउथ तिब्बत कहता है। रक्षा मंत्री ने जब सरहदों की बात की तो ये भी कहा कि भारत और चीन का सीमा से जुड़े सवालों को अभी सुलझाना बाकी है। चीन पारंपरिक और सदियों से चलती आ रही सीमा से जुड़ी रजामंदी को स्वीकार नहीं करता। हमारा मानना है कि ये सहमतियां भौगोलिक मापदंड पर आधारित हैं, जिसकी पुष्टि संधियों और समझौतों ने भी की है और सदियों से दोनों देश इसे जानते हैं।हालांकि, चीन का मानना है कि दोनों देशों के बीच सरहदों की कोई औपचारिक लकीर नहीं है, बस एक पारंपरिक रेखा है, जिसे इतिहास में दोनों देश अपने मुताबिक बता रहे हैं और इस रेखा का अस्तित्व दोनों देशों का अपना-अपना है। इसे सुलझाने 1950 से 60 के बीच कई कोशिशें हुईं, लेकिन दोनों देशों के बीच आम सहमति नहीं बनी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

x

Check Also

इजराइल में सत्ता में परिवर्तन तो हो गया परिवर्तन के बाद भी भारत से संबंध मजबूत बने रहेंगे

www.youngorganiser.com    Jammu (Tawi) 180001 (J&K Union Territory) Updated, 15th Jun. 2021, Tue. 2: 58  PM ...