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यहां सब दोषी सजा किसे दें

www.youngorganiser.com    Jammu (Tawi) 180001 (J&K Union Territory) Updated, 6th May. 2021, Thu. 2:04 PM (IST) : ( Article ) Sampada Kerni जब दुनिया भर के स्वास्थ्य विशेषज्ञ यह जानकारी दे रहे थे कि 2021 में भारत में कोरोना की जो दूसरी लहर आएगी वह पहली से भी बहुत भयानक होगी। विश्व विख्यात ला सेट पत्रिका ने बहुत पहले ही सावधान कर दिया था। मार्च 2021 में जब संक्रमण की दूसरी लहर आरंभ हो गई तब यह बता दिया गया था कि मध्य मई में कोरोना के भारत में विस्फोटक होने का अनुमान है। यूनिवर्सिटी आफ मिशिगन अमेरिका में एपिडिमोलोजी की प्रो. भ्ररम मुखर्जी ने यह लगभग भविष्यवाणी ही कर दी थी कि भारत में संक्रमण के प्रतिदिन आठ से दस लाख नए केस आ सकते हैं तथा कोविड से औसतन चार हजार से ज्यादा मौतें प्रतिदिन हो सकती हैं। अफसोस यह कि ऐसी अनेक चेतावनियों को आंखों से ओझल करते हुए भारत सरकार ने यह विश्वास कर लिया था कि अब भारत कोरोना पर विजय प्राप्त कर चुका है। जनवरी 2021 में ही भारतीय वैक्सीन का नौ कंपनियों से करार हो गया और भारत ने बहुत से देशों को वैक्सीन मुफ्त दी या बेची। जानकारी यह भी है कि मेडिकल आक्सीजन का निर्यात भी पिछले वर्ष की तुलना में लगभग दो गुणा कर दिया। इसी का यह दुखद दुष्परिणाम है कि अब अपने देश में स्थिति भयानक हो गई। वैक्सीन व आक्सीजन की कमी बहुत बुरी तरह बढ़ गई। लगभग 150 व्यक्ति देश में आक्सीजन के अभाव में तड़प-तड़प कर मर गए, जिसके लिए अभी-अभी इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कह दिया कि यह नरसंहार है। अब प्रश्न यह पैदा होता है कि देश का नेतृत्व विश्व स्तरीय जानकारी और चेतावनी के बाद भी क्यों अपनी वैक्सीन और आक्सीजन दुनिया को दान देता रहा। संभवतरू हम विश्व बंधुत्व की बात करते हुए दानवीर बन रहे थे। इतना ही नहीं कोरोना बढ़ता गया, लोग मरते गए, परिवार अनाथ होते गए, पर हमारे देश के राजनीतिक नेता एक लक्ष्य लेकर ही चले। वह लक्ष्य था चुनावों में विजय प्राप्त करना। संभवतरू चुनावी विजय ही जनता की जिंदगी से अधिक महत्वपूर्ण हमारे नेताओं के लिए हो गई। देश के धर्म गुरु भी न जाने किस धर्म की बात करते हुए कभी कुंभ, कभी महापुरुषों के जन्मदिन, कभी बड़े-बड़े नगर कीर्तन और उत्सव मनाने में लगे रहे। उत्तराखंड में कुंभ के साथ-साथ ही कोरोना भी फैल गया। हालत यह मेरे निकट परिवार में ही सात रोगी बने। पहले तो उनकी किस्मत में बढिया अस्पताल ही नहीं था। मुश्किल से अस्पताल मिला तो ननद-भाभी चैबीस घंटों में ही विधवा हो गई। शेष जन अभी परमात्मा के रहम पर हैं, जिंदगी की लड़ाई लड़ रहे हैं। ऐसे परिवारों की जिंदगी की ईश्वर से ही आशा की जा सकती है। मुझे उन लोगों से भी शिकायत है जो डाक्टरों से या मेडिकल स्टाफ से उलझते हैं। थोड़े साधनों में, थोड़े स्टाफ के साथ डाक्टर और मेडिकल स्टाफ अपने जीवन और परिवार को खतरे में डालकर काम कर रहे हैं। असली दोषी तो वे हैं जो भारत की स्वतंत्रता के 74 वर्ष बीत जाने पर भी देश को स्वास्थ्य सेवाएं को विश्व स्तरीय नहीं बना पाए। कुछ ऐसे भी प्रांत हैं जहां अस्पतालों के बड़े-बड़े भवन तो खड़े कर दिए, पर डाक्टरों तथा मेडिकल स्टाफ की कमी है। मशीनें धूल फांक रही हैं, चलाने वाला कोई नहीं। सीधी बात यह है कि जब तक इस देश में यह नियम नहीं बनेगा कि सभी माननीय बने नेता बड़े-बड़े अस्पतालों में मुफ्त इलाज नहीं करवा सकेंगे, केवल सरकारी अस्पतालों में उनका इलाज होगा तब तक सरकारी अस्पतालों की दुर्गति रहेगी ही। ये माननीय बीमार होते ही जनता द्वारा दिए टैक्सों के सहारे देश के सुप्रसिद्ध अस्पतालों या विदेश में उपचार करवाने के लिए पहुंच जाते हैं। जनता की दी गई टैक्स से ये अपना इलाज करवाते हैं और जनता बेचारी कभी बिना दवाई, कभी बिना आक्सीजन के तड़प-तड़प कर मरती है। यह भी नहीं भूला जा सकता कि जनता में भी वे लोग हैं जो बीमार और मजबूरों का खून चूसते हैं अपनी जेब भरने के लिए। आक्सीजन की कालाबाजारी, वैक्सीन और आक्सीमीटर, रेमडिसिवर इंजेक्शन जैसे जीवनरक्षक उपकरणों की ब्लैक मार्केट यहां तक कि अगर डाक्टर नींबू या फलों का प्रयोग करने को कहें तो नींबू का रेट भी चार गुणा और फलों का भाव भी आकाश छूने लगा। कौन नहीं जानता डेंगू फैलता है तो कीवी फल महंगा होता है। यहां तक कि बकरी का दूध भी चार सौ रुपये किलो से ज्यादा बिकता है। जिन्होंने आक्सीजन सिलेंडरों की कालाबाजारी की, लोग मरते रहे और वे जेबें भरते रहे उन्हें तो सीधा सीधा यमराज का रिश्तेदार कहना चाहिए। वैसे यमराज भी यह अत्याचार नहीं करते। आवश्यक यह है कि सरकारें अब कैमरे पर ही जनता को न देखें और जनता भी यह संदेश याद रखे कि जैसी करनी वैसी भरनी होगी। निश्चित ही एक दिन उन्हें वैसे ही तड़पना पड़ेगा जैसे बिना आक्सीजन के मरता रोगी तड़पता है। कितना अच्छा होता हमारे भारत के सर्वोच्च न्यायालय सहित सभी राज्यों के उच्च न्यायालय कोरोना मरीजों की चिंता और सरकार की अनदेखी बहुत पहले कर लेते। अब तो यह स्थिति है कि हमारे न्यायाधीश स्वास्थ्य सेवाओं विशेषकर आक्सीजन की कमी से मरते लोगों को देखकर बेहद दुखी, चिंतित और सचमुच अशांत हो गए हैं। इसी का यह परिणाम है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह कहा कि आक्सीजन के अभाव में जो लोग मारे गए वह नरसंहार है, जिसके लिए किसी को क्षमा नहीं किया जा सकता। इससे पहले मद्रास हाईकोर्ट ने फैलते कोरोना और बेबस मरते रोगियों को देखकर यह कहा था कि चुनाव आयोग पर क्यों न हत्या का आपराधिक केस दर्ज किया जाए। उनका संकेत उस ओर था जहां पांच राज्यों में चुनाव के नाम पर बड़े-बड़े जलसे, रैलियां, कोरोना से बचने के लिए बनाए सारे नियमों की देश के माननीयों द्वारा धज्जियां उड़ाई जा रही थीं। अब यही चुनाव आयोग मद्रास हाईकोर्ट द्वारा की गई टिप्पणी की शिकायत लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। तब सुप्रीम कोर्ट के माननीय न्यायाधीशों ने बहुत सटीक कहा कि मद्रास हाईकोर्ट की टिप्पणी को कड़वी दवा समझकर पचा जाइए। उसमें कुछ बुरा नहीं। आश्चर्य यह है कि अब सरकार तो देश के अस्पतालों में औषधियों एवं आक्सीजन के अभाव तथा अव्यवस्था से पीडि़त रोगियों के लिए जब कुछ प्रभावी नहीं कर पा रही उस समय देश की उच्च अदालतों ने सरकार को सही रास्ते पर लाने की कमान संभाल ली है। दिल्ली उच्च न्यायालय ने तो भारत सरकार को फटकार लगाते हुए यह भी कह दिया कि शुतुरमुर्ग की तरह आप रेत में सिर धंसाइए, हम नहीं। माननीय न्यायाधीशों ने यह भी कहा कि आप अंधे हो सकते हैं, न्यायालय नहीं। दिल्ली सरकार द्वारा अस्पतालों के लिए मांगी गई आक्सीजन पूरी मात्रा में न देने पर और बार-बार देश में रोगियों की आक्सीजन के अभाव में मृत्यु होने से न्यायालय बहुत दुखी था। अब प्रश्न यह पैदा होता है कि देश की यह हालत कैसे हो गई? पहले तो रोगी अस्पताल में उपचार पाने के लिए दाखिल होना चाहता है, वहां जगह नहीं मिलती और अति दुखद लज्जाजनक कि कोरोना से इतने लोग मारे गए कि अब श्मशानघाटों और कब्रिस्तानों में भी कोई जगह शेष नहीं बची। समाचार देश ये से यह हैं कि लोगों को अपने परिजन के संस्कार के लिए घंटों प्रतीक्षा करनी पड़ती है तब कहीं स्थान मिलता है।

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