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यदि चीन की वन चाइना पॉलिसी के खिलाफ पेश विधेयक पर लगी मुहर तो ड्रैगन को होगा जबरदस्त नुकसान

चीन  :- वन चाइना पॉलिसी को लेकर हमेशा से ही चीन काफी आक्रामक रुख इख्तियार करता रहा है। अमेरिका में डोनाल्‍ड ट्रंप प्रशासन के दौरान ड्रैगन की वन चाइना पॉलिसी पर कई बार खुद पूर्व राष्‍ट्रपति ट्रंप ने सवाल उठाते हुए इसको गलत बताया था। अब इसके खिलाफ एक बार फिर से रिपब्लिकन सांसद उतर आए हैं। इन्‍होंने सदन में इसके खिलाफ एक विधेयक भी पेश किया है। विदेश मामलों के जानकार मानते हैं कि यदि ये विधेयक पास हो जाता है तो चीन की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। यही वजह है कि इस विधेयक को लेकर चीन की धड़कनें भी कहीं न कहीं बढ़ी हुई हैं। अमेरिकी संसद में चीन की वन चाइना पॉलिसी के खिलाफ विधेयक को सांसद टॉम टिफनी और स्कॉट पेरी ने पेश किया है। इसके जरिए इन दोनों ने राष्‍ट्रपति बाइडन से ताइवान को अंतरराष्ट्रीय संगठनों की सदस्यता देने का समर्थन करने और उससे फ्री ट्रेड को लेकर समझौता करने की अपील की गई है। आगे बढ़ने से पहले आपको ये बताना बेहद जरूरी है कि आखिर वन चाइना पॉलिसी क्‍या है। दरअसल, चीन ताइवान, मकाऊ और हांगकांग को अपना हिस्‍सा बताता आया है। इसको लेकर कई बार उसने कड़ा रुख भी इख्तियार किया है। इतना ही नहीं ताइवान से यदि कोई राष्‍ट्र अपने संबंधों को अलग से स्‍थापित करता है तो उस पर चीन ऐतराज जताता है। चीन का कहना है कि क्‍योंकि ताइवान उसका हिस्‍सा है लिहाजा कोई देश उसके साथ सीधेतौर पर संबंध स्‍थापित नहीं कर सकता है। इस नीति के तहत ताइवान उसके अधिकार क्षेत्र में आता है लिहाजा उसके साथ होने वाली कोई भी बातचीत और संबंध चीन से होकर जाते हैं। वहीं ताइवान चीन की इस पॉलिसी को नहीं मानता है और खुद को एक स्‍वतंत्र राष्‍ट्र बताता है। चीन का ये भी कहना है कि यदि ताइवान से कोई देश संबंध स्‍थापित करना चाहता है तो उसको चीन से सभी संबंध तोड़ने होंगे। यही वजह है कि आज भी ज्‍यादातर देश और संयुक्‍त राष्‍ट्र भी ताइवान को मान्‍यता नहीं दे सका है। अमेरिका के पूर्व राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप ने चीन के खिलाफ काफी आक्रामक नीति इख्तियार करते हुए ताइवान से संबंध बनाने की तरफ कदम बढ़ाया था। चीन का मानना है कि वो एक राष्‍ट्र है। उसकी यही पॉलिसी वन चाइना पॉलिसी कही जाती है। लेकिन अब जबकि अमेरिकी संसद में इसके खिलाफ विधेयक पेश हुआ है तो चीन की की सांसे इसको लेकर जरूर अटकी हुई हैं। जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के रिटायर्ड प्रोफेसर एचएस प्रभाकर मानते हैं यदि ये विधेयक सदन में पारित हो जाता है तो इसका खामियाजा चीन को कहीं न कहीं भुगतना ही होगा। ये पूछे जाने पर कि क्‍या इसके बाद ताइवान को भविष्‍य में एक स्‍वतंत्र राष्‍ट्र के तौर पर देखा जा सकेगा या इस तरह की मान्‍यता उसको मिल जाएगी, प्रोफेसर भास्‍कर ने बताया कि ये काफी मुश्किल है। उनका कहना है कि ताइवान हो या हांगकांग यहां पर चीनी समर्थक भी कम नहीं हैं। इसलिए ये कहना कि उसको भविष्‍य में स्‍वतंत्र राष्‍ट्र के तौर पर मान्‍यता दी जाएगी काफी मुश्किल है। हालांकि ताइवान इसको लेकर काफी समय से प्रयासरत है। लेकिन इसमें वो सफल होगा इस बारे में भी कुछ नहीं कहा जा सकता है। यदि ये विधेयक पास होता है तो अमेरिका सीधेतौर पर हांगकांग और ताइवान से न सिर्फ संबंध स्‍थापित कर सकेगा बल्कि व्‍यापार और इससे संबंधित स्‍वतंत्र नीतियां भी बना सकेगा, जिसमें चीन की दखल की जरूरत नहीं होगी। ऐसा करने से वो ताइवान की सुरक्षा संबंधी जरूरतों को भी पूरा कर सकेगा। चीन के लिए ये दोनों ही स्थितियां कहीं न कहीं खराब साबित होंगी। अमेरिका यदि इस विधेयक पर मुहर लगाता है तो चीन को व्‍यापारिक आथर्कि और राजनीतिक तौर पर इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है।

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