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डोमिसाइल रूल पर:HOM.jpg May 27, 2020 YOUNG ORGANISER

मोदी सरकार ने बदल दी 2 लाख जिंदगियां डोमिसाइल रूल पर

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Jammu (Tawi) 180001 (J&K Union Territory) Updated, 27 May 2020.

 Wed, 07:02 AM (IST) :Team Work:  Imtiaz Choudhary & Pawan Vikas Sharma

जम्मू : जम्मू में 70 साल से शरणार्थियों के रूप में जीवन काट रहे वेस्ट पाकिस्तानी रिफ्यूजी यहां अपने अधिकारों के लिए लड़ते रहे हैं। जम्मू-कश्मीर में इनकी संख्या करीब 1 लाख के आसपास है। ये वो लोग हैं जो कि भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के बाद जम्मू-कश्मीर में वापस लौट आए थे। अपने अधिकारों के लिए लंबे वक्त से तमाम फ्रंट्स पर संघर्ष करने वाले इन लोगों को अब जम्मू-कश्मीर में स्थायी निवासी होने के सर्टिफिकेट से लेकर सरकारी नौकरियों तक का लाभ मिल सकता है। कश्मीर में डोमिसाइल रूल में हुए संशोधनों का भले ही कुछ राजनीतिक धड़ों ने विरोध किया हो, लेकिन सिर्फ एक संशोधन ने अब ऐसे 2 लाख लोगों की जिंदगी को बदल दिया है जो बीते 70 सालों से अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे थे। आजादी के बाद से अपने अधिकार के लिए भटक रहे वेस्ट पाकिस्तानी रिफ्यूजी, वाल्मिकी दलित और गोरखा लोगों को अब राज्य के स्थायी निवासियों के रूप में जगह मिल सकती है। ये लोग अब जम्मू-कश्मीर में मतदान भी कर सकेंगे और इन्हें वो सभी अधिकार होंगे जो यहां के स्थानीय निवासियों को मिलते थे।सिर्फ लोकसभा चुनाव में करते थे वोटवेस्ट पाकिस्तानी रिफ्यूजी फ्रंट के चेयरमैन लब्बा राम गांधी कहते हैं कि वेस्ट पाकिस्तान के शरणार्थियों को अब तक लोकसभा चुनाव में वोट करने के अधिकार थे, लेकिन अब वह विधानसभा के चुनावों में भी वोट कर सकते हैं। अगर अतीत को देखें तो पता चलता है कि 2013 में वेस्ट पाकिस्तानी रिफ्यूजियों के लिए तत्कालीन यूपीए सरकार के गृहमंत्रालय ने 200 करोड़ रुपये की राशि को रिलीफ पैकेज के रुप में देने का ऐलान किया था। इस योजना में 70 हजार शरणार्थियो को लाभ भी मिला था। हालांकि बाद में ये आरोप भी लगे कि पैकेज का लाभ असल में उन लोगों को नहीं मिल सका, जो कि सही में इसके हकदार थे।उमर सरकार ने किया था मुआवजे का ऐलानवेस्ट पाकिस्तानियों की तरह 1957 में पंजाब के गुरदासपुर और अमृतसर से जम्मू-कश्मीर लाए गए वाल्मिकी समुदाय के लोग भी 6 दशक से अधिक समय से अपने अधिकारों के लिए जूझ रहे थे। इन लोगों को पंजाब से जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन प्रधानमंत्री बख्शी गुलाम मोहम्मद ने इस वादे के साथ बुलाया था कि इन्हें राज्य में स्थायी निवासी का दर्जा और अन्य सुविधाएं मिलेंगी। सब दावों के बीच 62 साल से वादे सिर्फ कागजों पर रहे और ऐसे परिवार सिर्फ यहां सफाईकर्मी का काम करने को मजबूर भी रहे। कभी 200 परिवारों के रूप में आए वाल्मिकी समुदाय के इन लोगों की जनसंख्या करीब 50 हजार के आसपास है और यह जम्मू शहर के अलग-अलग इलाकों में रहते हैं। साल 2014 में तत्कालीन सीएम उमर अब्दुल्ला ने हर शरणार्थी परिवार को पाकिस्तान में छूट गई उनकी प्रॉपर्टी के लिेए 5.50 लाख रुपये का मुआवजा देने की बात कही थी। हालांकि शरणार्थियों को इसका लाभ इसलिए नहीं मिल सका क्योंकि ऐसे लोग अपने दावे के एवज में कोई भी कागजी प्रमाण नहीं दे सके।

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