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मन में नुकसान की भावना आई और आंसू बह निकले
मन में नुकसान की भावना आई और आंसू बह निकले

मन में नुकसान की भावना आई और आंसू बह निकले

www.youngorganiser.com    Jammu (Tawi) 180001 (J&K Union Territory) Updated, 4th, Feb. 2021.Thu, 7:01 AM (IST) : ( Article ) Pawan vikas Sharma , बच्चे का विकास भी (जन्म से पहले और जन्म के बाद, दोनों स्थितियों में) प्रभावित होता है। मार्च 2020 से भारत में स्कूल बंद कर दिए गए। हमारे 26 करोड़  स्कूली छात्रों के शिक्षण को बनाए रखने के प्रयास प्रभावी नहीं हुए हैं। कुछ शिक्षकों ने समुदाय आधारित कक्षाओं को खुले में रखने और अपने छात्रों के साथ लगे रहने की पहल की। ऐसी कुछ सफल कक्षाओं के बावजूद यह व्यवस्था सामान्य स्कूलों का विकल्प नहीं है। सामुदायिक कक्षाओं के अच्छे मामलों में भी शिक्षक-छात्र का संपर्क हर सप्ताह चार से छह घंटे होता है, जबकि स्कूल खुलने की स्थिति में यही संपर्क लगभग रोज ही छह से आठ घंटे का होता है। खुली कक्षा में शामिल होने में भी कुछ ही छात्र सक्षम हुए हैं। ऑनलाइन शिक्षा की अंतर्निहित सीमाओं और सभी स्कूली बच्चों तक ऐसी शिक्षा की पहुंच को सुनिश्चित नहीं किया गया है। निहित व्यावसायिक हितों के कारण कुछ लोग दावा कर रहे हैं कि ऑनलाइन शिक्षा ने स्कूली शिक्षा की कमी की भरपाई कर दी है, जबकि भारत में अधिकांश बच्चों की इस तक पहुंच नहीं है। हमारे 26 करोड़ बच्चों ने एक पूरा स्कूल वर्ष खो दिया है, लेकिन स्थिति इससे भी गंभीर है। इतने लंबे समय तक गंभीर शिक्षा की गैर-मौजूदगी ने बच्चों की अब तक की शिक्षा को भी नुकसान पहुंचाया है। सरल शब्दों में कहें, तो बच्चे भूल गए हैं कि उन्होंने पहले क्या सीखा था। इसलिए जब स्कूल फिर खुलेंगे, तब खोए हुए वर्ष और खोई हुई सीख या शिक्षा का भी ध्यान रखना पडे़गा। पहले गरमी की लंबी छुट्टियों के दौरान कुछ ऐसा ही होता था। जो क्षति हुई है, उसके सुबूतों की बाढ़ आ गई है। इस क्षति का हमने छात्रों और शिक्षकों के बीच मूल्यांकन किया है और जो शुरुआती आंकड़े सामने आए हैं, उनके अनुसार, 74 प्रतिशत बच्चों ने अपनी ऐसी मूलभूत क्षमताओं में से एक या एक से अधिक को खो दिया है। उदाहरण के लिए, एक पैराग्राफ या एक पृष्ठ पढ़ने, अपने शब्दों में उसका निचोड़ पेश करने की क्षमता, क्रम में कुछ वाक्य लिखने की क्षमता और सरल जोड़-घटाव की क्षमता, बुनियादी गुणा-भाग की क्षमता में कमी आई है। अब सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जब स्कूल खुलें, तब शिक्षकों को इस घाटे को पूरा करने के लिए समय देना पड़ेगा, बच्चों की अतिरिक्त सहायता करनी पड़ेगी। कुछ छुट्टियों को खत्म करना, 2021 के  अकादमिक कैलेंडर को अच्छी तरह  से विस्तारित करना होगा। पाठ्यक्रमों, सत्रों को फिर से संयोजित करना पडे़गा। इस सच्चाई पर हमने ध्यान नहीं दिया, तो यह न केवल असमानता की खाई को चौड़ा करेगा, बल्कि वंचितों को और अधिक नुकसान पहुंचाएगा। यह  मामला हमारे राष्ट्रीय एजेंडे पर सर्वोच्च प्राथमिकता के साथ होना चाहिए। इसके लिए देश भर में समन्वित व सामंजस्यपूर्ण कार्यों की जरूरत है। हमें संकट से निपटने के लिए तुरंत प्रयास करने चाहिए, अन्यथा हमारे बच्चों को भविष्य में इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी।उसने किताब खोली, कोशिश की, पर पढ़ न सकी और फूट-फूटकर रोने लगी। ऐसा इसी जनवरी की शुरुआत में बेंगलुरु में हुआ। वह कक्षा तीन में पढ़ती है। जब पिछले मार्च में स्कूल बंद हुए थे, तब वह दूसरी कक्षा में थी। पूरे शैक्षणिक वर्ष में एक दिन भी स्कूल जाए बिना कुछ ही महीनों में वह कक्षा चार में पदोन्नत हो जाएगी। पूरे देश में मेरे कई सहयोगी ऐसे ही बच्चों के रूबरू हुए हैं। उस बच्ची को साफ तौर पर याद है कि वह पिछले साल मार्च में धाराप्रवाह पढ़ सकती थी। जब मैंने उसे किताब दी, तब उसने संघर्ष किया और फिर हार मान गई। मन में नुकसान की भावना आई और आंसू बह निकले। उसने मुझे बताया कि उसने स्कूल में अपने आखिरी दिन के बाद से अपने हाथ में एक भी किताब नहीं ली है। उसकी शिक्षिका मुझे बताती हैं, ‘वह धीरे-धीरे, लेकिन अच्छी तरह से पढ़ती थी। कुछ ही महीनों में वह चौथी कक्षा में चली जाएगी, लेकिन वास्तव में वह पहली कक्षा के स्तर पर लौट गई है। इसमें माता-पिता या शिक्षक का कोई दोष नहीं। जब कोई बच्चा 10 महीने में एक बार भी कक्षा में नहीं गया है और घर पर हर कोई जीवित रहने के लिए भी मेहनत कर रहा है, तब आप और क्या उम्मीद कर सकते हैं?’ यह टिप्पणी संक्षेप में असलियत बयान कर देती है कि भारतीय स्कूली शिक्षा हालात का व्यवस्थित रूप से सामना करने में नाकाम रही है। नीति निर्धारण के उच्च स्तर पर भी इस कमी की उपेक्षा हुई है।

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