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भारत सिनोफार्म वैक्सीन को इम्पोर्ट नहीं करेगा

www.youngorganiser.com    Jammu (Tawi) 180001 (J&K Union Territory) Updated, 20th May. 2021, Thu. 4:40 PM (IST) :  ( Article ) Kapish – क्योंकि कोवैक्सिन विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक सिनोफाम से बहुत बहेतर ,पिछले हफ्ते विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चीन में बनी सिनोफार्म की कोविड-19 वैक्सीन को इमरजेंसी इस्तेमाल की इजाजत दे दी इसका मतलब यह है कि इस वैक्सीन का इस्तेमाल अब पूरी दुनिया में हो सकेगा। इस वैक्सीन को चाइना नेशनल बायोटेक ग्रुप की सहायक कंपनी बीजिंग बायो-इंस्टीट्यूट ऑफ बायोलिॉजिकल प्रोडक्ट्स कंपनी लिमिटेड ने विकसित किया है। खास बात यह है कि सिनोफार्म की वैक्सीन भारत में बन रही कोवैक्सिन जैसी ही है लेकिन कोवैक्सिन विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक सिनोफाम से बहुत बहेतर है। यह दोनों वैक्सीन इनएक्टिवेटेड प्लेटफॉर्म पर बनी है अच्छी बात यह है कि कोवैक्सिन कोरोना के कई वैरिएंट्स पर कारगर है, जबकि सिनोफार्म की वैक्सीन की वैरिएंट्स पर इफेक्टिवनेस के बारे में कोई जानकारी नहीं है। सिनोफार्म पश्चिमी देशों से ईतर पहली ऐसी वैक्सीन है, जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन ने समर्थन दिया है। इसे कोवैक्स प्रोग्राम का हिस्सा बनाया जा सकता है, जिसके तहत कम और मध्यम आय वाले देशों को वैक्सीन सप्लाई की जा रही है। भारत ने कोवैक्स प्रोग्राम के तहत सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया में बन रही कोवीशील्ड कई देशों को भेजी थी, पर फरवरी के बाद से दूसरी लहर की वजह से एक्सपोर्ट रोक दिया गया। इसका फायदा चीनी वैक्सीन को हुआ और अब यह 50 से ज्यादा देशों में लगाई जा रही है। भारत में स्वास्थ्य मंत्रालय व चिकित्सा विशेषज्ञ भी इस विषय में जागरूक दिखाई देते हैं और सभी अपनी भूमिका निभा रहे हैं। भारत में महामारी नियंत्रण की प्रक्रिया अन्य देशों से जटिल दिखाई देती हैं। भारत सदियों से सियासत प्रधान देश रहा है। यहां के राजपरिवारों ने कभी मिलकर आपदा का सामना नहीं किया, बल्कि कुछघ्तो खुद ही दूसरों के लिए आपदा बढ़ाते देखे गये हैं। आज भी कुछ राजनेता महामारी में सियासत का अवसर ढूंढ़ लेते हैं। पिछले वर्ष देशव्यापी लाकॉडाउन लगाया गया पर विपक्षी नेताओं को यह पसन्द नहीं आया। प्रवासी मजदूरों के पीड़ादायक पलायन की घटनाएं व इन पर देशव्यापी सियायत को भुलाया नहीं जा सकता। प्रवासी मजदूरों को रेलगाडियों द्वारा घर भेजने के लिए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सरकार को आदेश देना पड़ा। राज्य सरकारों की मांग पर उन्हें महामारी प्रभावित क्षेत्रों की पहचान कर आवश्यकतानुसार लॉकडाऊन लगाने का अधिकार दिया गया। महामारी की इस सुनामी में प्रभावित राज्यों की सरकारें विवेकानुसार निर्णय ले रही हैं, भले ही ऐसा करने में देर लग गई। आश्चर्य है, इस बार कुछ विपक्षी दल देशव्यापी लॉकडाउन न लगाने पर सरकार की आलोचना कर रहे हैं। राज्य सरकारों द्वारा क्षेत्रीय लॉकडाउन लगाए जाने से कुछघ्प्रवासी मजदूरों की समस्या फिर आ गई है, जिसे हल करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय ने एक बार फिर आदेश दिया है। परन्तु इस बार स्थिति चिन्ताजनक है क्योंकि महामारी गाँवों में भी फैल चुकी है। निरूसन्देह, महामारी के नियंत्रण हेतु लॉकडाउन आवश्यक है, पर विशाल जनसंख्या के कारण यह कई अन्य समस्याओं को जन्म देता है। सक्रमितजनों के इलाज में अस्थायी अस्पतालों का निर्माण महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। किसी न किसी रूप में इस पर काम हुआ भी है। मरीजों के लिए बिस्तरों की संख्या बढ़ानाघ्व आईसीयू-बिस्तरों की संख्या बढ़ाना, संक्रमितजनों के एकान्तवास व इलाज के लिए स्कूल-परिसरों का उपयोग करना, अस्थायी अस्पतालों का निर्माण व रोडवेज बसों को अस्थायी अस्पतालों में परिवर्तित करना, आदि ऐसी ही व्यवस्थाएं हैं। महामारी की पहली लहर के दौरान चिकित्सा के लिए संसाधन जुटाये भी गए थे। परन्तु इस बार विषाणु के घातक वैरिएंट से भारी संख्या में संक्रमणघ्के कारण ऑक्सीजन व दवाइयों की उपलब्धता प्रभावित हुई। सरकारों के प्रयास व विदेशी सहायता से सुधार हुआ है। मीडिया में इसकी व्यापक चर्चा होती रही है। पर समस्या स्वास्थ्य कर्मियों की है। देश में चिकित्सकों व पैरामेडिकल स्टाफ की संख्या पहले ही बहुत कम थी, महामारी से संक्रमित होने व मृत्यु हो जाने से और कमी हो गई है। कुछघ्गांवों में प्राथमिक चिकित्सा केन्द्र तो हैं, पर स्वास्थ्यकर्मियों की कमी के कारण प्रायरू बन्द रहते हैं, व ग्रामीण इन सुविधाओं का लाभ नहीं ले पाते। कई शहरों में तो सामान्य दिनों में प्रतिष्ठित अस्पतालों में भी स्वास्थ्यकर्मियों की कमी देखी जा सकती है। परिस्थितिवश सरकार को पोस्टग्रेजुएशन प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रहे डॉक्टरों, एमबीबीएस अंतिम वर्ष के छात्रों, मेडिकल इंटर्न और बीएससी उपाधिधारी नर्सों को भी ड्यूटी पर लगाना पड़ा। संक्रमण से बचने के लिए बड़े पैमाने पर टीकाकरण आवश्यक है। देश में टीकाकरण 16-जनवरी को प्रारम्भ हुआ था। 14-मई तक लगभग 18-करोड़ खुराकें दी जा चुकी हैं, जिसमें लगभग 3.98-करोड़ लोगों को दोनो खुराकें मिल चुकी हैं। टीकाकरण में चीन व अमेरिका के बाद भारत तीसरे स्थान पर है। भारत की 139-करोड़ जनसंख्या में से लगभग 100 करोड़ 18-वर्ष से अधिक उम्र के लोग हैं। इतनी बड़ी जनसंख्या का टीकाकरण मात्र कुछ महीनों में संभव नहीं है। भारत में आपदा प्रबंधन की कोई भी पहल सियासत से अछूती नहीं है। कुछ राजनीतिक दलों द्वारा जनवरी-फरवरी में स्वदेशी वैक्सीनों की उपयोगिता पर अविश्वास प्रकट करना, बाद में राज्य के बजट से सीधे वैक्सीन की खरीद के लिए अनुमति माँगना, अप्रैल में 18-44 वर्ष उम्र-वर्ग के लिए भी टीकीकरण का दबाव बनाना, व केन्द्र सरकार द्वारा इस उम्र-वर्ग के लिए राज्य सरकारों को जिम्मेदारी दिये जाने पर (मई में) ब्यापक आलोचना करना, केन्द्र सरकार द्वारा मुफ्त टीकीकरण कराने व राज्य सरकारों द्वारा मुफ्त टीकीकरण की घोषणा करने के बाद भी मुफ्त टीकीकरण की माँग करना, साथ ही कृषिकानूनों को रद करने की माँग करना, कुछ ऐसे ही सियासी मामले हैं। यद्यपि 01-मई से 18-44 वर्ष उम्र-वर्ग के लिए भी टीकाकरण अभियान शुरू हो गया, पर वैक्सीन की कमी होने के कारण ब्यवस्था बिगड़ गयी। मीडिया में कई दिनों से इसपर चर्चा हो रही है। सरकार द्वारा दिसम्बर तक वैक्सीन की 216-करोड़ खुराकें उपलब्ध कराने के आश्वासन से महामारी पर नियंत्रण की आशा जगी है। वैक्सीन की उपलब्धता निरूसंदेह देश की 18-वर्ष से अधिक की जनसंख्या के लिए पर्याप्त होगी। उत्पादन बढ़ाने के लिए भारत-बायोटेक द्वारा वैक्सीन के फार्मूले को अन्य फार्मा कम्पनियों से साझा करने का फैसला भी सराहनीय है। भारतीय कम्पनियों द्वारा बच्चों के लिए वैक्सीन विकसित करने का प्रयास भी प्रशंसनीय है। परन्तु आशंका है कि जबतक भारत में बच्चों के लिए वैक्सीन उपलब्ध नहीं हो जाती, इसपर सियासत जारी रहेगी, व सरकार पर बच्चों के लिए विदेशी वैक्सीन खरीदने का दबाव भी बनाया जायेगा। प्रभावी उपायों द्वारा कोरोना महामारी पर नियंत्रण अवश्य मिलेगा। पर विचारणीय है कि महामारी ने देश की दो प्रमुख चुनौतियोँ की पहचान की है – निरंतर बढ़ती विशाल जनसंख्या व दलगत स्वार्थपरक सियासत। देश को सशक्त राष्ट्र व विश्वगुरू के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए इन बुनियादी चुनौतियों पर नियंत्रण करना आवश्यक है। संवैधानिक संस्थाओं से अपेक्षा है कि वह इस विषय में गम्भीरता पूर्वक विचारकर हल निकालेंगे। साथ ही समाज भी सोशल मीडिया का सदुपयोग कर अपना कत्र्तव्य निभाता रहे। क्या भारत सिनोफार्म वैक्सीन को इम्पोर्ट करेगा? नहीं। फिलहाल तो इसके आसार नहीं दिख रहे। भारत वैक्सीन डोज की कमी को दूर करने के लिए पूरी दुनिया की ओर देख रहा है, पर चीन की वैक्सीन आएगी या नहीं, इस पर अभी तक किसी भी सरकारी अधिकारी ने कुछ नहीं कहा है। यह महत्वपूर्ण है क्योंकि अप्रैल में भारत सरकार ने महत्वपूर्ण फैसला लेकर इम्पोर्टेड वैक्सीन को मंजूरी देने के नियम बदले थे। इसमें तय किया था कि जो वैक्सीन अमेरिका, यूके, यूरोप, जापान और ॅभ्व् से अप्रूव होगी, उसे भारत में इस्तेमाल किया जा सकेगा। अब सिनोफार्म की वैक्सीन को ॅभ्व् ने अप्रूवल दे दिया है तो इसके भारत आने की एक बाधा दूर हो गई है।

 

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