www.youngorganiser.com Jammu (Tawi) 180001 (J&K Union Territory) Updated, 3rd, Feb. 2021.Wed, 7:01 AM (IST) : Sampada Kerni ( Article) ,दिल्ली पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि बॉर्डर पर भारी बैरिकेडिंग और तारबंदी के साथ सुरक्षा के लिए जो भी जरूरी है, वह किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि पुलिस ने 26 जनवरी के घटनाक्रम से बहुत कुछ सीखा है, हम कोशिश कर रहे हैं कि प्रदर्शन सिर्फ बॉर्डर तक ही सीमित रहे। गाजीपुर बॉर्डर पर पुलिस ने कई लेयर की बैरिकेडिंग लगाई है। यहां नुकीली तारें भी बिछाई गई हैं। गाजीपुर की तरफ से नेशनल हाइवे-9 को सील कर दिया गया है। अब दिल्ली की तरफ से प्रदर्शन स्थल पर सीधे पहुंचना लगभग नामुमकिन है। कुछ प्रदर्शनकारी किनारे से निकलकर जा रहे थे, अब वहां भी जेसीबी से खुदाई कर दी गई है। टीकरी बॉर्डर पर नुकीले सरिए बिछाए जाने के बाद बैरिकेड पार करना अब मुमकिन नहीं है। आंदोलन कर रहे किसान संगठनों ने 6 फरवरी को देशभर में चक्काजाम करने का ऐलान किया। भारतीय किसान यूनियन (R) के बलबीर सिंह राजेवाल ने बताया कि इंटरनेट बैन, बजट में किसानों की अनदेखी समेत कई मुद्दों के खिलाफ किसान 6 फरवरी को दोपहर 12 से 3 बजे तक चक्काजाम करेंगे। 26 जनवरी की किसान ट्रैक्टर परेड में हिंसा के बाद सरकार ने सिंघु, टीकरी और गाजीपुर बॉर्डर पर इंटरनेट सर्विस बंद कर दी थी। अब इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MEITY) ने ट्विटर को 250 अकाउंट ब्लॉक करने का निर्देश दिया है। 26 जनवरी की सुबह वे सिंघु से किसानों के काफिले के साथ निकले और लाल किले पर उनके साथ रात 8 बजे तक रहे। ट्रैक्टर परेड के साथ वे लगातार 26 घंटे तक रहे। इस दौरान क्या-क्या हुआ? 25 जनवरी की शाम से ही सिंघु बॉर्डर के माहौल में बगावत साफ महसूस होने लगी थी। बीते दो महीनों से जो आंदोलन अपने संयम और अनुशासन के लिए जाना जा रहा था, 26 जनवरी की सुबह तक उसके तेवर बदल चुके थे। बड़ी संख्या में नौजवान ‘रैली करेंगे-रिंग रोड पे’ और ‘ट्रैक्टर दे नाल-ट्रॉली जाऊ’ (ट्रैक्टर के साथ ट्रॉली भी जाएगी) जैसे नारे लगा रहे थे। जबकि किसान नेताओं ने यह ऐलान किया था कि रैली दिल्ली पुलिस के रूट-मैप पर ही होगी और इसमें शामिल होने वाले ट्रैक्टरों के साथ ट्रॉली नहीं रहेगी।आंदोलन के दौरान यह पहली बार था, जब किसान नेताओं के निर्देशों को खुले-आम चुनौती देते हुए युवा अपनी जिद पर अड़े थे। स्थिति यह बन गई थी कि 25 जनवरी की शाम ढलते-ढलते ये बागी तेवर आंदोलन का नया चेहरा लगने लगा था। 25 जनवरी की रात ‘संयुक्त किसान मोर्चा’ के जिम्मेदार नेताओं का मंच अब पूरी तरह से बेकाबू युवाओं के हाथों में आ गया था। यह निश्चित था कि 26 जनवरी की रैली उस रूट तक सीमित नहीं रहेगी जो दिल्ली पुलिस और किसानों के बीच लगातार बैठकों के बाद तय हुई थी। 26 जनवरी को ऐसा ही हुआ भी। तय समय से काफी पहले ही कुछ युवाओं ने दिल्ली कूच करने के लिए सिंघु बॉर्डर पर बैरिकेड तोड़ना शुरू कर दिया। किसान नेता कोई निर्देश जारी करते और कमान संभालते, उससे पहले ही सैकड़ों ट्रैक्टर सिंघु बॉर्डर से निकल गए। सिंघु बॉर्डर से संजय गांधी ट्रांसपोर्ट नगर तक तो यह सभी लोग तय रूट पर चलते रहे। लेकिन, जैसे-जैसे भीड़ बढ़ी किसान रूट पर जाने के बजाय दिल्ली में दाखिल होने की जिद करने लगे। संजय गांधी ट्रांसपोर्ट नगर पर किसानों ने बैरिकेड तोड़ने शुरू किए तो पुलिस ने आंसू गैस के गोले चलाए। देखते ही देखते किसानों ने बैरिकेड तोड़ दिए और वे तय रूट से हटकर कश्मीरी गेट की तरफ बढ़ गए जहां से लाल किला कुछ ही दूर रह जाता है। सिंघु बॉर्डर से संजय गांधी ट्रांसपोर्ट नगर तक हजारों स्थानीय लोग किसानों के स्वागत में सड़क से दोनों तरफ खड़े दिख रहे थे। लेकिन, आगे नजारा बदल चुका था। किसान लाल किले की दिशा में बढ़ जाएंगे, इसका अंदाजा किसी को नहीं था। जिस तरह से भीड़ लाल किले तक पहुंची, उसे देखकर लगता है कि इसकी जानकारी खुफिया एजेंसियों तक को नहीं थी। दिल्ली पुलिस, गृह मंत्रालय और इंटेलिजेंस को भी इसकी भनक न लगना सरकार की बहुत बड़ी विफलता है। 26 जनवरी के दिन जिस लाल किले पर परिंदा भी पर नहीं मार सकता और जिस इलाके में जाने के लिए इस दिन पुलिस वालों को भी विशेष पास हासिल करने होते हैं, उसी लाल किले पर हजारों लोग घुस आए। इन लोगों ने वहां अपना झंडा फहरा दिया जहां 15 अगस्त को देश के प्रधानमंत्री तिरंगा फहराते हैं। टीकरी बॉर्डर और गाजीपुर बॉर्डर से दिल्ली की तरफ बढ़े किसानों की तुलना में सिंघु बॉर्डर से आए किसानों का सुरक्षाकर्मियों के साथ सीधा टकराव काफी कम हुआ। जबकि, लाल किले पर पहुंचने वाले सबसे ज्यादा किसान सिंघु बॉर्डर के ही थे। लाल किले पर भी पुलिस-किसानों में सबसे ज्यादा टकराव तब हुआ, जब प्राचीर पर कुछ लोग निशान साहिब और किसान संगठनों का झंडा लगाने के लिए चढ़ने लगे। पुलिस ने इन्हें रोकने के लिए बल प्रयोग किया। इसके बाद यहां लगभग भगदड़ जैसी स्थिति बन गई। युवा किसान जगह-जगह बैरिकेड तोड़कर आगे बढ़ रहे थे। लेकिन, परेड में शामिल किसानों की बहुत बड़ी संख्या संयमित थी। आगे चल रहे युवाओं के लाल किले की तरफ बढ़ने के बाद भीड़ उनके पीछे चल पड़ी। लेकिन, सभी का मकसद ऐसा ही रहा हो ऐसा भी नहीं था। परेड में शामिल किसानों से बातचीत में ऐसा लगा कि उन्हें पता ही नहीं था कि किसका निर्देश माना जाए। ऐसे में जो हो रहा था, ज्यादातर किसान उसी के साथ चल रहे थे। शाम घिरने तक लाल किला पहुंचे हजारों किसान वापस सिंघु बॉर्डर लौटने लगे थे। किसान आंदोलन के दौरान हिंसा हुई, तोड़फोड़ हुई। जिस तरह से हजारों की भीड़ सड़कों पर थी, उसके उग्र होने पर हालात बहुत खराब हो सकते थे। हिंसा सिर्फ उन जगहों पर हुई, जहां पर पुलिस ने किसानों को रोकने की कोशिश की। पुलिस के हट जाने के बाद किसानों की भीड़ ने सरकारी संपत्ति को नुकसान नहीं पहुंचाया। पुलिस अधिकारी भी दबी ज़ुबान यह मानते हैं कि किसानों की भीड़ जिस तरह थी, वह अगर जाट आरक्षण या एससी-एसटी एक्ट के भारत बंद आंदोलन की तरह हिंसक हो जाती तो जान-माल का बहुत ज्यादा नुकसान होता। इस दौरान कई पुलिस वालों को भी चोट आई और कई किसान भी घायल हुए। एक समय ऐसा लगा कि यहां बड़े पैमाने पर हिंसा हो सकती है। लेकिन, थोड़ी देर बाद स्थिति संभलती नजर आई। इसके बाद भी हजारों किसान लाल किले में जमे रहे, जिन्हें रात में निकाला गया।
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