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देश की राजनीति आपदा में भी आपनी राजनीति चमकाने से बाज नहीं आ रही

www.youngorganiser.com    Jammu (Tawi) 180001 (J&K Union Territory) Updated, 25th May. 2021, Tue. 10:50 AM (IST)  ( Article ) टीम डिजिटल: Kumwar and Kuldeep :

..जब देश एक अभूतपूर्व वैश्विक संकट से गुजर रहा हो तो सभी लोगों को देश और सरकार के साथ खड़े होकर चुनौती का मुकाबला करना चाहिए था पर वे लोगों में डर और भय का माहौल बनाकर उनकी निराशा और हताशा को बढ़ा रहे थे। इसके कारण बहुत से लोगों ने तो टीवी देखना बंद कर दिया……..

देश में जब लाखों लोग कोरोना की दूसरी लहर की चपेट में थे तब कुछ विपक्षी दल और मीडिया का एक वर्ग उनके संकट को बहुत बढ़ा-चढ़ा बताकर सरकार पर हमले कर रहा था। ऐसा लगता था कि आपदा में भी उन्हें अपनी राजनीति चमकाने का मौका मिल गया है। जब देश एक अभूतपूर्व वैश्विक संकट से गुजर रहा हो तो सभी लोगों को देश और सरकार के साथ खड़े होकर चुनौती का मुकाबला करना चाहिए था पर वे लोगों में डर और भय का माहौल बनाकर उनकी निराशा और हताशा को बढ़ा रहे थे। इसके कारण बहुत से लोगों ने तो टीवी देखना बंद कर दिया है। जब कोरोना से पीडित लोगों में आशा और उत्साह को बढ़ाकर उन्हें सम्बल प्रदान करने की जरूरत थी तब वे लगातार श्मशानघाट पर जलती हुई चिताओं के दृश्य दिखाकर देश और दुनिया में भारत की छवि को धूमिल करने का प्रयास कर रहे थे। उनकी यह तस्वीरें देखकर दुश्मन देश के लोग गद्गद् हो रहे थे। उधर टूलकिट का मामला भी इस ओर इशारा करता है कि कोरोना की दूसरी लहर को जिस तरह से तूल दिया उसमें हमारे दुश्मन देशों का हाथ हो सकता है जिसमें हमारे देश के भी कुछ लोग भी शामिल हो सकते हैं। मदद करने वाले करोड़ों हाथ हैं, तो लूटपाट करने वाले भी कम नहीं हैं। इस लूट में आखिरी पंक्ति का आदमी तो बेहाल है ही, मध्यवर्ग की भी कमर टूट गई है। यह अचानक आया संकट नहीं था। पिछले सवा साल से हम इससे जूझ रहे हैं। कोरोना महामारी के बहाने भारत के दुख-दर्द,उसकी जिजीविषा, उसकी शक्ति, संबल, लाचारी, बेबसी, आर्तनाद और संकट सब कुछ खुलकर सामने आ गए हैं। इन सात दशकों में जैसा देश बना या बनाया गया है, उसके कारण उपजे संकट भी सामने हैं। दिनों दिन बढ़ती आबादी हमारे देश का कितना बड़ा संकट है यह भी खुलकर सामने है, किंतु इस प्रश्न पर संवाद का साहस न राजनीति में है न विचारकों में । संकटों में भी राजनीति तलाशने का अभ्यास भी सामने आ रहा है। मीडिया से लेकर विचारकों के समूह कैसे विचारधारा या दलीय आस्था के आधार पर चीजों को विश्लेषित और व्याख्यायित कर रहे हैं कि सच कहीं सहम कर छिप गया है। देश के दुख, देश के लोगों के दुख और संघर्ष भी राजनीतिक चश्मों से देखे और समझाए जा रहे हैं। ऐसे कठिन समय में सच को व्यक्त करना कठिन है, बहुत कठिन। हमारा महान तंत्र इन संकटों से निजात पाने के उपाय नहीं खोजता, उसके लिए हर संकट में एक अवसर है। हम अपने संकटों को चिन्हिंत करें तो वे ज्यादा नहीं हैं, वे आमतौर पर विपुल जनसंख्या और उससे उपजे हुए संकट ही हैं। उत्तर भारत के राज्यों के सामने यह कुछ ज्यादा विकराल हैं क्योंकि यहां की राजनीति ने राजनेता और राजनीतिक योद्धा तो खूब दिए किंतु जमीन पर उतरकर संकटों के समाधान तलाशने की राजनीति यहां आज भी विफल है। ये इलाके आज भी जातीय दंभ, अहंकार, माफियाराज, लूटपाट, गुंडागर्दी के अनेक उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। इसलिए उत्तर भारत के राज्य इस संकट में सबसे ज्यादा परेशानहाल दिखते हैं। उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, बिहार, उत्तराखंड, झारखंड मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, बंगाल जिस तरह पलायन की पीड़ा से बेहाल हैं, उसे देखकर आंखें भर आती हैं। एक बार दक्षिण और पश्चिम के राज्यों महाराष्ट्र,गुजरात, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल की ओर हमें देखना चाहिए। आखिर क्या कारण हैं हमारे हिंदी प्रदेश हर तरह के संकट का कारण बने हुए हैं।पलायन, जातिवाद, सांप्रदायिकता, माफिया, भ्रष्टाचार, ध्वस्त स्वास्थ्य और शिक्षा व्यवस्था सब इनके हिस्से हैं। यह संभव है कि समुद्र के किनारे बसे राज्यों की व्यवस्थाएं, अवसर और संभावनाएँ बलवती हैं। किंतु उत्तर भारत के हरियाणा, पंजाब जैसे राज्य भी उदाहरण हैं, जिन्होंने अपनी संभावनाओं को जमीन पर उतारा है। प्रधानमंत्रियों का राज्य रहा उत्तर प्रदेश आज भी देश और दुनिया के सामने सबसे बड़ा सवाल बनकर खड़ा है। अपनी विशाल आबादी और विशाल संकटों के साथ। जमाने से कभी गिरिमिटिया मजदूरों के रूप में विदेशों में ले जाए जाने की पीड़ा तो आजादी के बाद मुंबई, दिल्ली, कोलकाता, रंगून जैसे महानगरों में संघर्ष करते, पसीना बहाते लोग एक सवाल की तरह सामने हैं। भाजपा सोशल मीडिया के प्रमुख अमित मालवीय ने राहुल गांधी इंटरनेट मीडिया टीम की सदस्य संजुक्ता बसु का एक ट्वीट पेश किया है जिसमें उन्होंने टूलकिट को सही मानते हुए कहा- विरोधी की छवि को ध्वस्त करना विपक्ष का काम है। कांग्रेस आखिरकार अच्छा काम कर रही है। हालांकि कांग्रेस के अन्य नेता बुधवार को भी इस टूलकिट को अपनी होने की बात नकारते रहे। कांग्रेस को अहसास है कि इस टूलकिट में जिस तरह विदेशी मीडिया की मदद लेने, उन्हें शवों और जलती चिताओं आदि की तस्वीर उपलब्ध कराने में मदद करने, कुंभ को भाजपा के हिंदू एजेंडा से जोडने, कोरोना काल में राजनीतिक लाभ उठाने की बात कही गई है उससे उसे भारी नुकसान होगा। समाज में इसे संवेदनहीनता और मौकापरस्ती के रूप में देखा जाएगा। बहरहाल यह मामला पुलिस के सामने है और एक पीआइएल (याचिका) के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट भी पहुंच गया है। देश यह जानना चाहता है कि ऐसी साजिशों के पीछे जो चेहरे हैं वे बेनकाब होने चाहिये। Hindi News से जुड़े अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक पर ज्वॉइन करें, ट्विटर पर फॉलो करें।   हर पल अपडेट रहने के लिए YO APP डाउनलोड करेंOr. www.youngorganiser.com। ANDROID लिंक और iOS लिंक।

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