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farmer agitation bhind the curtain article by youngorganiser.com

देश और दुनिया में भारत की छवि को धूमिल करने का नाम किसान आंदोलन

……………………..जमीनी सच तो यह है कि किसान संगठन उन कृषि कानूनों के विरोध में धरना दे रहे हैं, जिस पर देश के सर्वोच्च न्यायालय ने रोक लगा रखी है………………..

www.youngorganiser.com    Jammu (Tawi) 180001 (J&K Union Territory) Updated, 25th May. 2021, Tue. 2:05 PM (IST)  ( Article ) Siddharth & Kapish : नए कानून के मुताबिक सरकार ने किसानों को अनाज खरीद नामक पोर्टल पर रजिस्टर किया। इस साल शुरू में ही केंद्र सरकार ने स्पष्ट कर दिया था कि गेहूं खरीद की अदायगी सीधे किसानों के बैंक खातों में की जाएगी। इस फैसले से आढ़तियों-बिचैलियों की लॉबी में हलचल मच गई। उन्होंने पंजाब सरकार पर दबाव बनाया कि वह केंद्र के इस फैसले को न माने, लेकिन केंद्र सरकार ने सख्त रुख अपनाते हुए स्पष्ट कर दिया कि यदि किसानों को सीधे भुगतान की अनुमति नहीं दी गई तो सरकार पंजाब से गेहूं खरीद नहीं करेगी। इसके बाद ही पंजाब सरकार किसानों के बैंक खातों में सीधे अदायगी पर तैयार हुई। खेती-किसानी के आधुनिकीकरण के लिए मोदी सरकार द्वारा लाए गए तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे कुछेक किसान संगठनों का सबसे बड़ा आरोप यही था कि सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर अनाज की खरीद बंद कर देगी, लेकिन नए कृषि कानूनों के तहत पंजाब में हुई गेहूं की रिकॉर्ड तोड़ सरकारी खरीद ने इन आरोपों को सिरे से नकार दिया। इसी कारण कि किसान आंदोलन सिमटता जा रहा है। मोदी सरकार द्वारा कृषि के आधुनिकीकरण और सूचना-प्रौद्योगिकी आधारित नई खरीद-विपणन प्रणाली के लिए लाए गए तीन नए कृषि कानूनों के नतीजे दिखने लगे हैं। पंजाब में 14 मई 2021 को समाप्त हुए गेहूं खरीद सत्र में एमएसपी (1975 रुपये प्रति क्विंटल) पर रिकॉर्ड खरीद हुई है। इस रबी खरीद सत्र के दौरान पंजाब में किसानों से 132 लाख टन गेहूं की खरीद की गई। गेहूं खरीद की यह मात्रा राज्य सरकार द्वारा निर्धारित लक्ष्य से दो लाख टन अधिक है। जहां पिछले साल 8.8 लाख किसानों ने एमएसपी पर गेहूं की बिक्री की थी, वहीं इस साल यह संख्या बढ़कर नौ लाख हो गई। सबसे बड़ी बात यह रही कि पंजाब के इतिहास में यह पहली बार हुआ जब बिचैलियों-आढ़तियों को बॉयपास करते हुए सरकार ने 23,000 करोड़ रुपये का भुगतान सीधे किसानों के बैंक खातों में किया। तथ्यों को देखते हुए कहा जा सकता है कि कृषि कानूनों के विरोध में जो धरना किसान संगठनों ने लगाया है उसको समाप्त कर उन्हें संवाद के रास्ते पर आना चाहिए। किसान संगठन अपनी बात सरकार के सम्मुख भी रख सकते हैं और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित कमेटी के आगे भी अपनी मांगें व विचार रख सकते हैं। लेकिन यह सब करने से पहले उन्हें अपने कृषि कानून वापस लेने की जिद को छोडना होगा, तभी संवाद शुरू हो सकेगा। संयुक्त किसान मोर्चा ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिख कर कृषि कानूनों पर किसानों से बातचीत करने की मांग की है। प्रधानमंत्री को भेजे पत्र में किसान नेताओं ने कहा कि दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने के नाते सरकार को परिपक्वता दिखानी चाहिए और किसानों की मांगों पर विचार करना चाहिए। किसानों द्वारा खारिज किए गए कानूनों को लागू करना देश के लोकतांत्रिक और मानवीय लोकाचार के खिलाफ है। संयुक्त किसान मोर्चा शांतिपूर्ण आंदोलन में विश्वास रखता है और शांतिपूर्ण विरोध जारी रखेगा। किसान मोर्चा ने कहा कि कोई भी लोकतांत्रिक सरकार उन तीन कानूनों को निरस्त कर देती, जिन्हें किसानों द्वारा खारिज कर दिया गया, जिनके नाम पर ये बनाए गए थे। साथ ही अब तक किसानों को एमएसपी की कानूनी गारंटी दे दी गई होती। किसान मोर्चा ने आगे कहा कि किसानों के साथ एक गंभीर और ईमानदार बातचीत फिर से शुरू करने की जिम्मेदारी केंद्र सरकार पर है। दिल्ली की सीमा पर धरने पर बैठे किसान संगठनों की अतीत में दर्जनभर के करीब कृषि कानूनों को लेकर बैठकें हो चुकी हैं और इन बैठकों में किसानों की मांगों को स्वीकार करने के लिए केंद्र सरकार भी तैयार थी। जैसे कि छ्व बिजली संशोधन विधेयक वापस लेने। छ्व पराली जलाने पर दंडात्मक कार्रवाई का प्रावधान हटाने। छ्व कृषि कानूनों में संशोधन करने और उन्हें डेढ़ साल तक रोकने। छ्व इन तीनों कानूनों की बिंदुवार समीक्षा करने। छ्व न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर लिखित गारंटी देने। छ्व अनाज के निजी खरीददारों पर टैक्स लगाने। छ्व अनुबंध खेती के मामले में ऊंची अदालतों में अपील का अधिकार देने इत्यादि। किसान नेता उपरोक्त सब बातों को अनदेखा कर केवल कृषि कानूनों को वापस लेने की अपनी मांग पर ही अड़े रहे। इस मांग को केंद्र सरकार मानने के लिए तैयार नहीं थी और आज भी सरकार अपनी बात पर खड़ी है। कृषि कानूनों को लेकर सर्वोच्च न्यायालय ने एक समिति का गठन किया था ताकि किसान अपनी मांगों को समिति सम्मुख रख सकें ताकि उसके बाद उच्चतम न्यायालय अपनी कोई राय बना सके। किसान संगठनों ने न्यायालय द्वारा बनाई समिति का भी बहिष्कार किया जबकि वह अपना काम आज भी कर रही है। जमीनी सच तो यह है कि किसान संगठन उन कृषि कानूनों के विरोध में धरना दे रहे हैं, जिस पर देश के सर्वोच्च न्यायालय ने रोक लगा रखी है। कृषि कानूनों को लेकर न्यायालय द्वारा गठित समिति के अतीत में दिए बयानों को देखकर कृषि कानूनों के प्रति उनके दृष्टिकोण को समझा जा सकता है। कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) के पूर्व अध्यक्ष अशोक गुलाटी अनुसार श्कृषि क्षेत्र के लिए यह 1991 वाला क्षण है। कृषि विपणन कानूनों में प्रस्तावित सुधार किसानों की पुरानी लंबित जरूरतों को पूरा करते हैं। वे एक सक्षम आपूर्ति शृंखला तैयार कर सकते हैं ताकि उपभोक्ताओं के लिए बेहतर उत्पाद सुनिश्चित किए जा सकें। उपज के सीधे भुगतान में एक समस्या यह पैदा हो रही है कि उत्पादन से जुड़े ऐसे किसान छूटे जा रहे हैं, जो भूमिहीन हैं। इस समस्या का समाधान सरकार ओडिशा की तर्ज पर निकालने पर विचार कर रही है, जहां सभी किसानों का डाटाबेस है। पंजाब में अगले छह माह में भूमिहीन किसान और ठेके पर खेती करने वाले किसानों का रिकॉर्ड बन जाएगा। पंजाब की तरह 1980 के दशक में मध्य प्रदेश में सभी प्रमुख मंडियों से आढ़तियों के वर्चस्व का खात्मा करते हुए अनाज, तिलहन, दाल की सीधी खरीद शुरू हुई थी। पंजाब की तरह मध्य प्रदेश में भी सरकार के फैसले का बड़े पैमाने पर विरोध हुआ, लेकिन आगे चलकर किसान सीधे सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त एजेंसियों को अपनी उपज बेचने लगे। 2008 में मध्य प्रदेश सरकार ने गेहूं की खरीद नीति को विकेंद्रित किया, जिससे निजी क्षेत्र के बड़े खरीदार एमएसपी से भी अधिक कीमत पर गेहूं खरीदने लगे जैसे आइटीसी ई-चैपाल। मोदी सरकार सूचना प्रौद्योगिकी आधारित ऐसी विकेंद्रित खरीद नीति लागू कर रही है, जो क्षेत्र विशेष और फसल विशेष तक सीमित न होकर समूचे देश में लागू हो। इससे न केवल गेहूं-चावल के पहाड़ से मुक्ति मिलेगी, बल्कि तिलहनी, दलहनी, मोटे अनाजों, बागवानी और औषधीय महत्व वाली खेती को बढ़ावा मिलेगा। इस खरीद नीति में सरकार के समानांतर निजी क्षेत्र की भी मौजूदगी रहेगी ताकि कीमतों के प्रतिस्पर्धी होने से उसका अधिकाधिक लाभ किसानों को मिले। इसी नीति का नतीजा है कि इस साल तुअर, मूंग और सरसों की कीमतें पिछले साल के मुकाबले 35 से 75 प्रतिशत तक उछल चुकी हैं। पिछले साल औसतन 4400 रुपये प्रति क्विंटल बिकने वाली सरसों इस साल 7500 रुपये प्रति क्विंटल की दर से बिक रही है। मोदी सरकार का लक्ष्य हर स्तर पर बिचैलिया मुक्त व्यवस्था लागू करने की है। इसके लिए सरकार देश भर के किसानों का डिजिटल रिकॉर्ड बना रही है। इसके साथ-साथ मंडी व्यवस्था का आधुनिकीकरण किया जा रहा है, ताकि किसान देश भर में ई-नाम के जरिये अपनी उपज बेच सकें। Hindi News से जुड़े अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक पर ज्वॉइन करें, ट्विटर पर फॉलो करें।   हर पल अपडेट रहने के लिए YO APP डाउनलोड करें Or. www.youngorganiser.com। ANDROID लिंक और iOS लिंक।

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