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जम्मू कश्मीर परिसीमन आयोग की मदद के लिए नोडल अधिकारी

www.youngorganiser.com    Jammu (Tawi) 180001 (J&K Union Territory) Updated, 11th Jul. 2021, Sun. 00: 26  AM (IST) : टीम डिजिटल: ( Article ) Sampada Kerni & Kuldeep जम्मू का क्षेत्रफल: 26293 वर्ग किलोमीटर , कश्मीर का क्षेत्रफलः 15948 वर्ग किलोमीटर जनगणना जम्मू: 5350 811 , कश्मीर: 68 88,475 ,जम्मू कश्मीर प्रशासन ने परिसीमन आयोग को समय पर सूचना देने के लिए जिला स्तर पर नोडल अधिकारी शनिवार को नामित किए। सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा जारी एक आदेश के अनुसार, आयोग से संपर्क करने के लिए केंद्र शासित प्रदेश के 20 जिलों में से प्रत्येक में एक अधिकारी नामित किया गया है। आयोग ने शुक्रवार को जम्मू कश्मीर का चार दिवसीय दौरा पूरा किया और इस दौरान राजनीतिक दलों तथा जिला प्रशासन से बातचीत की। आदेश में कहा गया है कि नोडल अधिकारी आयोग द्वारा सूचना मांगे जाने पर उन्हें समय पर सूचना देकर उपायुक्तों की मदद करेंगे। नोडल अधिकारी आयोग को देने के लिए पक्षकारों के प्रतिवेदन लेंगे और आयोग द्वारा दिए जाने वाले किसी भी काम के लिए जिम्मेदार होंगे। परिसीमन आयोग की प्रमुख न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) रंजना प्रकाश देसाई ने शुक्रवार को केन्द्र शासित प्रदेश में निर्वाचन क्षेत्रों को फिर से तैयार करने के वास्ते सूचना एकत्र करने के लिए जम्मू-कश्मीर का चार दिवसीय दौरा संपन्न किया। पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी और अवामी नेशनल कॉन्फ्रेंस के अलावा आयोग ने सभी राजनीतिक दलों और संबंधित अधिकारियों से बातचीत की। न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) देसाई ने आश्वासन दिया कि जम्मू-कश्मीर में परिसीमन की प्रक्रिया पूरी तरह से पारदर्शी होगी। जम्मू कश्मीर के लिए गठित परिसीमन आयोग ने प्रदेश के अपने पहले दौरे के दौरान सभी वर्गों को सुना और उनकी जायज चिंताओं को पर्याप्त सम्मान देने के प्रति आश्वस्त भी किया। अपेक्षाओं और उम्मीदों से भरे इस दौरे के दौरान 290 प्रतिनिधिमंडल के माध्यम से करीब 800 लोगों ने आयोग के समक्ष अपनी राय खुलकर रखी। कश्मीरी दलों के शुरुआती ना-नुकर के बावजूद आयोग की व्यस्तता बताती है कि आम जनमानस आयोग से बड़ी उम्मीदें पाले है। वहीं परस्पर विरोधाभासी दावों के बीच ठोस निर्णय लेने की चुनौती भी। यहां स्पष्ट कर दें कि जम्मू कश्मीर में परिसीमन करीब तीन दशक पूर्व हुआ था तब से आज तक स्थिति में तमाम बदलाव आ चुके हैं। 1991 में प्रदेश में जनगणना नहीं हुई थी और ऐसे में पिछला परिसीमन 1995 में 1981 की जनगणना के आधार पर हुआ। यही वजह है कि आयोग पर अपेक्षाओं का बोझ काफी बढ़ा है। आज प्रशासनिक से लेकर सामाजिक ढांचे में भी बड़े बदलाव दिख रहे हैं। आयोग पूरी प्रक्रिया पारदर्शी और निष्पक्ष बनाने का आश्वासन दे रहा है पर दशकों से उपेक्षित वर्ग अपने हक के लिए और इंतजार नहीं करना चाहता। नए परिसीमन के लिए 2011 की जनगणना ही आधार होगी पर क्षेत्रफल, सामाजिक और आर्थिक स्थिति और अन्य चुनौतियों को भी ध्यान में रखा जाए। चूंकि जम्मू का बड़ा वर्ग उस समय की जनगणना के आंकड़ों पर भी सवाल उठा रहा है। ऐसे में इन बिंदुओं को ध्यान में रखना लाजिमी है। बावजूद इसके 2011 की जनगणना में कश्मीर भले ही जम्मू से कुछ आगे दिखे पर क्षेत्रफल में जम्मू संभाग कश्मीर से लगभग डेढ़ गुणा अधिक है। इसके अलावा जम्मू का बड़ा पर्वतीय क्षेत्र सड़क संपर्क से आज भी कटा है। दशकों तक सामाजिक तौर पर पिछड़े रहे अन्य वर्ग भी इस परिसीमन के आधार पर अपना सियासी हक मान रहे हैं। यह वर्ग अपने आर्थिक हालत में बदलाव की राह सियासत से तलाशना चाह रहे हैं। फिलहाल जम्मू कश्मीर नए सियासी उलटफेर के दौर से गुजर रहा है। 370 के खात्मे के बाद हालात बदलते दिख रहे हैं पर फिलहाल सरकार अतिशीघ्र हालात को सामान्य बनाना चाहती है। यही वजह है कि केंद्र सरकार परिसीमन के कार्य को पूरा कर अतिशीघ्र चुनाव भी करवाना चाहती है। ऐसे में परिसीमन आयोग की पर अपेक्षाओं का बोझ और भी बढ़ जाता है। प्रधानमंत्री और गृह मंत्री स्वयं हालात सामान्य बनाने का आश्वासन दे चुक हैं। दशकों से सियासी भेदभाव के शिकार जम्मू ने परिसीमन आयोग के समक्ष अपनी आवाज मजबूती से रखी। इसे कश्मीर केंद्रित सियासत के चक्रव्यूह से निकलने की छटपटाहट कहें या अलग पहचान दिखाने की चाह, पर यह बदलाव जम्मू कश्मीर की सियासत में नई लकीर खींचने का प्रयास भी है। वजह साफ है कि प्रदेश में कश्मीर सदैव सत्ता के केंद्र में रहा और जम्मू सदैव उपेक्षित महसूस करता रहा। इसका असर जम्मू संभाग की विकास योजनाओं पर भी पड़ा। पर्याप्त संभावनाओं के बावजूद यहां न आधारभूत ढांचे को मजबूती देने के लिए पर्याप्त कदम उठाए गए और न उद्योगों और पर्यटन के विकास को तवज्जो दी गई। अनुच्छेद 370 के बाद प्रदेश में पहली बार हो रहे परिसीमन ने जम्मू की दफन उम्मीदों में फिर से नई जान फूंक दी है। शायद यही वजह है कि अब जम्मू न केवल मजबूती से अपनी आवाज उठा रहा है बल्कि उन्हें पूरा करने की अपेक्षा भी कर रहा है। 2011 के जनगणना के आंकड़ों में कश्मीर भले ही आगे दिखे लेकिन जम्मू का क्षेत्रफल कश्मीर से काफी अधिक है। काफी क्षेत्र पहाड़ी है। इसके अलावा पश्चिमी पाकिस्तान और अन्य राज्यों से आकर जम्मू में बसे दलितों को पहली बार मतदान के अधिकार मिले हैं। ऐसे में इन वंचित समाज को खोया सम्मान देने की अपेक्षा भी की जा रही है। उम्मीद करें कि आयोग का फार्मूला जम्मू के दर्द के निवारण कर पाएगा।

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