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एशियाई नागरिकों के शरीर में एक खास प्रोटीन पाया जाता है, जो कोरोना के कुछ रूप के खिलाफ खासा प्रतिरोधक साबित हुआ है। अगर यह निष्कर्ष वैज्ञानिकता की कसौटी पर खरा उतरा, तो
एशियाई नागरिकों के शरीर में एक खास प्रोटीन पाया जाता है, जो कोरोना के कुछ रूप के खिलाफ खासा प्रतिरोधक साबित हुआ है। अगर यह निष्कर्ष वैज्ञानिकता की कसौटी पर खरा उतरा, तो

क्या कोई नया ‘स्ट्रेन’ हमारे देश में दस्तक दे चुका है?

www.youngorganiser.com    Jammu (Tawi) 180001 (J&K Union Territory) Updated, 14th Feb. 2021.Sun, 12:20 PM (IST) : Article : Siddharth, सामान्य तौर पर यही दिखा है कि एशियाई देश खासकर दक्षिण एशियाई मुल्कों में न सिर्फ कोविड-19 संक्रमण का प्रसार तुलनात्मक रूप से धीमा रहा, बल्कि मौत भी कम हुई है। इसकी एक वजह यह बताई जा रही है कि एशियाई नागरिकों के शरीर में एक खास प्रोटीन पाया जाता है, जो कोरोना के कुछ रूप के खिलाफ खासा प्रतिरोधक साबित हुआ है। अगर यह निष्कर्ष वैज्ञानिकता की कसौटी पर खरा उतरा, तो इसमें हम अपने लिए उम्मीद देख सकते हैं। हालांकि, मानव शरीर में कोरोना वायरस के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता का आकलन करने वाले सीरो सर्वे की रिपोर्ट बताती है कि देश की एक बड़ी शहरी आबादी इस रोग से सफलतापूर्वक लड़ चुकी है। इसीलिए आगे की हमारी रणनीति इन दो सवालों के आसपास बनेगी कि क्या कोई नया ‘स्ट्रेन’ हमारे देश में दस्तक दे चुका है? अगर हां, तो यह कितना घातक है या संक्रमण की इसकी क्षमता क्या है? और दूसरा सवाल, अभी हमने जो प्रतिरोधक क्षमता हासिल कर ली है, उस पर वायरस का नया रूप कितना असरदार होगा? बात यदि शहरों की हो, तो यह नहीं मानना चाहिए कि ग्रामीण भारत को नजरअंदाज किया गया है। सीरो सर्वे से यह आशंका जताई जा सकती है कि ग्रामीण इलाकों में खतरा बना हुआ है, लेकिन यदि शहरों में ही संक्रमण को थाम लिया जाएगा, तो गांवों के लिए यह डर गलत साबित होगा। मगर हमारी यह उम्मीद भी तभी तक जिंदा रहेगी, जब तक कि इस वायरस से बचाव के लिए सरकार द्वारा तय तमाम दिशा-निर्देशों का हम संजीदगी से पालन करते हैं। इसीलिए अब देशव्यापी लॉकडाउन के आसार कम नजर आते हैं। हां, किसी आपात स्थिति में इसकी जरूरत पड़ सकती है। फिर भी, आने वाले दिनों में अब छोटे-छोटे क्षेत्रों को कंटेनमेंट जोन घोषित करके ही महामारी का मुकाबला किया जाएगा। इन दिनों कई जगहों से ऐसी तस्वीरें भी आ रही हैं कि स्थानीय प्रशासन खुद सरकारी दिशा-निर्देशों का पालन कराने को उत्सुक नहीं है, जबकि शुरुआती दिनों में इसके लिए पुलिस ने लाठियां तक पटकी थीं। इससे राजनीतिक जलसे या धार्मिक उत्सव जैसे बड़े आयोजन खतरे को न्योता दे सकते हैं। स्थानीय प्रशासन को पेशेवर रुख अपनाना पड़ेगा। उसे यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जरूरी सावधानियों का हरसंभव पालन किया जाए। अभी कुंभ स्नान के लिए भी मेला पास जारी करने की तैयारी चल रही है, जो एक अच्छी रणनीति है। इसी तरह, सार्स या मर्स की तरह कोविड-19 बीमारी के अचानक खत्म होने के दावे को भी सही नहीं माना जा सकता। अलग-अलग राष्ट्रों में इस वायरस का अलग-अलग पैटर्न दिखा है। यहां तक कि हमारे देश के अंदर ही अलग-अलग हिस्सों में इसके कई रूप मिले हैं। अपने यहां तो केरल में आज भी यह तेजी से लोगों को बीमार कर रहा है। लिहाजा, कोरोना वायरस का यह चरित्र  आगे भी बना रहेगा। हां, एक बड़ी आबादी के इसके खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता हासिल कर लेने से हम कहीं बेहतर स्थिति में हैं। ऐसे हालात में टीके से स्वाभाविक तौर पर उम्मीद बन जाती है। अभी जो निर्धारित किया गया है, उसके मुताबिक अग्रिम मोर्चे के तमाम कर्मियों के अलावा 60 साल से अधिक उम्र के बुजुर्गों को टीका लगाया जाएगा। हम सबसे तेज गति से टीकाकरण करने वाले देश हैं और पिछले 24 दिनों में ही करीब 58 लाख लोगों को टीका लगाया जा चुका है। फिर भी, प्राथमिकता सूची वाले वर्ग का टीकाकरण जून-जुलाई तक संभव है। इसके बाद विशेषज्ञ समूह तय करेगा कि किनको टीका लगाया जाएगा, किन्हें इसकी जरूरत नहीं है। अगर बिना टीका लगाए हालात संभलते हैं, तब भी विशेषज्ञ समूह के निर्णय पर ही हमें भरोसा करना चाहिए और उसी के मुताबिक टीका लगवाने का फैसला करना चाहिए।देश में कोविड-19 का प्रसार क्या थमता दिख रहा है? तथ्य बताते हैं कि हर दिन नए मामले अब 10 हजार से भी कम हो गए हैं। बीते सात दिनों का रोजाना का औसत 12 हजार से नीचे आ चुका है। इतना ही नहीं, पिछले दस दिनों से हर रोज कोरोना की जंग हारने वाले मरीजों की संख्या भी 150 से नीचे लाने में हम सफल हुए हैं। कल सरकार की तरफ से यह भी कहा गया कि पिछले 24 घंटे में 15 राज्यों व केंद्र शासित क्षेत्रों में कोरोना से एक भी मौत नहीं हुई है, जिससे लगता है कि यह वायरस अब कमजोर पड़ने लगा है। ये आंकडे़ निस्संदेह सुकूनदेह हैं, मगर इनसे यह भ्रम नहीं पाल लेना चाहिए कि कोरोना महामारी बहुत जल्द अतीत बन सकती है। विशेषकर सांस संबंधी संक्रमण के बारे में यही कहा जाता है कि नए मामलों के सामने न आने के बावजूद कुछ वक्त तक बीमारी बनी रहती है। लिहाजा, हमें हरसंभव सावधानी बरतनी ही होगी। घर से बाहर निकलते वक्त मास्क पहनना, दो गज की शारीरिक दूरी का पालन करना व नियमित तौर पर साबुन से हाथ धोना या सैनिटाइजर का इस्तेमाल आवश्यक है। इसके साथ ही, ‘ट्रेसिंग’ (संक्रमित के संपर्क में आए तमाम लोगों की पहचान) पर भी हमें लगातार ध्यान देना होगा। कुछ देशों में यह भी दिखा है कि वायरस के ‘म्यूटेट’ (रूप में बदलाव) हो जाने से संक्रमण में अचानक तेज वृद्धि हुई है। अपने यहां भी यह खतरा बना हुआ है। चूंकि हरेक वायरस का यह नैसर्गिक गुण होता है कि वह अनुकूल माहौल मिलने पर म्यूटेट हो सकता है, इसलिए भारत में कोरोना वायरस का नया ‘स्ट्रेन’ दूसरे देशों से ही नहीं आ सकता, बल्कि यहां पर पैदा भी हो सकता है। यही कारण है कि वायरस की ‘जेनेटिक’ जांच, यानी उत्पत्ति संबंधी पड़ताल आवश्यक है, जिससे पता चलता है कि वायरस अगर अपना चरित्र बदल रहा है, तो वह कितना खतरनाक है। अच्छी बात है कि इस जांच में भारत को महारत हासिल है।कोविड-19 के खिलाफ हमारी सफलता अब भी दूर है। जरूरत को देखते हुए आर्थिक गतिविधियां भले ही बढ़ाई जा चुकी हैं और बाजार में भीड़ भी दिखने लगी है, मगर एक सच यह  है।

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