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Hon'able Chief Justice Gita Mital & Justice Rajnesh Oswal

आज के आधुनिक दौर में दरबार मूव पर करोड़ों खर्च का कोई औचित्य नहीं:गीता मित्तल व जस्टिस रजनीश ओसवाल

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Jammu (Tawi) 180001 (J&K Union Territory) Updated, 05 May 2020.

 Tue, 5:45 PM (IST) :  Team Work:  Pawan Vikas Sharma Kunwar & Kuldeep Sharma

जम्मू : जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट के डिवीजन बेंच में जम्मू-कश्मीर की चीफ जस्टिस गीता मित्तल व जस्टिस रजनीश ओसवाल ने मंगलवार को केंद्रीय गृह सचिव व प्रदेश चीफ सेक्रेटरी को दरबार मूव के मुद्दे को उचित योग्य मंच के सामने रखने का निर्देश दिया है ताकि इस पर निर्णय लिया जा सके। कोरोना वायरस के बीच दरबार मूव न करने की मांग को लेकर दायर जनहित याचिका में सुनवाई के दौरान बेंच ने यह निर्देश दिए। इस जनहित याचिका में हालांकि सरकार की तरफ से पक्ष रखा गया था कि इस बार दरबार मूव नहीं किया जा रहा है और जो कर्मचारी जहां है, उसे वहां से काम करने की इजाजत दी गई है। सरकार के इस फैसले पर गौर करने के साथ ही बेंच ने साल में दो बार होने वाले दरबार मूव पर होने वाले खर्च का ब्यौरा मांगा था। सुनवाई के दौरान बेंच ने पाया कि साल में दो बार दरबार मूव होने से 200 करोड़ रुपये का खर्च होता है। इसके अलावा भी करोड़ों रुपये खर्च हाेते होंगे जिनका लेखा जोखा नहीं है। आज आधुनिक दौर में जब सब कुछ डिजीटल है, ऐसे में दरबार मूव पर करोड़ों रुपये खर्च करने का कोई औचित्य नहीं। बेंच ने दरबार मूव प्रथा शुरू होने पर टिप्पणी करते हुए कहा कि वर्ष 1872 में जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन शासक की असुविधा के चलते दरबार मूव प्रथा शुरू हुई। उस समय कुछ घोड़ा गाड़ियों में दरबार मूव का रिकार्ड मूव होता था लेकिन आज करीब 151 सरकारी दफ्तर व दस हजार कर्मचारी साल में दो बार इधर-उधर होते हैं। सारा रिकार्ड, कंप्यूटर और यहां तक कि फर्नीचर भी साल में दो बार 300 किलोमीटर का सफर तय करते हैं और इस सामान को ले जाने में 150 से अधिक ट्रकों का इस्तेमाल होता है और यह साल में दो बार होता है जिससे सरकारी खजाने पर करोड़ों रुपये का बोझ पड़ता है। यह खर्च ऐसे प्रदेश में हो रहा है जहां लोगों को बुनियादी सुविधाओं की कमी है। बेंच ने कहा कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जम्मू-कश्मीर के लोगों को शिक्षा, स्वास्थ्य, न्यायिक ढांचा व अन्य बुनियादी सुविधाओं का मौलिक अधिकार है और जो प्रदेश अपने लोगों को ये बुनियादी सुविधाएं नहीं दे पा रहा है, वो दरबार मूव जैसे गैर-जरूरी कार्याें पर इतना खर्च कैसे कर सकता है? ऐसे में सालाना दो बार दरबार मूव का कोई प्रशासनिक, कानूनी व संवैधानिक महत्व नजर नहीं आता। जम्मू-कश्मीर में दशकों से चली आ रही दरबार मूव प्रथा को गैर-जरूरी, सरकारी खजाने के व्यर्थ खर्च व कर्मचारियों के मौलिक अधिकारों का हनन करार देते हुए जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट के डिवीजन बेंच ने गृह मंत्रालय व प्रदेश के चीफ सेक्रेटरी को इस पर फैसला लेने के निर्देश दिए है।

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