www.youngorganiser.com// Editoriol, Sat ,23,Feb,2019. updated,1:44 PM IST ((Senior Editor, Banarsi Dutt, )Young Organiser Jammu)
अब तक के कानूनी दांव पेच-जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय की पूर्ण पीठ ने अक्टूबर 2002 में ‘राज्य एवं अन्य बनाम डॉ. सुशीला साहनी एवं अन्य’ राज्य विषय (स्थायी निवास) कानून की उस शर्त को खारिज करके मामले को सुलझाया था जिसमें कहा गया था कि महिला के राज्य से बाहर शादी करने पर उसका स्थायी निवास दर्जा चला जाएगा। पीठ ने सात अक्टूबर 2002 को ऐतिहासिक फैसले में कहा था कि जम्मू-कश्मीर के स्थायी निवासी की बेटी के राज्य के बाहर के किसी व्यक्ति से शादी करने पर भी उसका स्थायी निवासी का दर्जा नहीं जाएगा। साल 2002 में हाईकोर्ट ने राज्य व अन्य बनाम डॉ. सुशीला साहनी और अन्य केस में फैसला दिया था कि यदि जम्मू-कश्मीर की कोई महिला किसी अन्य राज्य के पुरुष से शादी करती है, तो ऐसी स्थिति में उसका संपत्ति का मौलिक अधिकार स्वत: खत्म हो जाता है। मालूम हो कि 2002 में राज्य की हाईकोर्ट ने महिलाओं के अधिकारों को सुरक्षित रखा। अदालत ने अपने फैसले में इस प्रावधान को समाप्त कर दिया। उस समय पहली बार इस फैसले के खिलाफ जम्मू-कश्मीर की विधानसभा ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। सात अक्तूबर 2002 को बेंच ने बहुमत के आधार पर फैसला दिया कि जम्मू-कश्मीर के स्थायी निवासी राज्य के बाहर के व्यक्ति से शादी करने के बाद भी अपना स्थायी निवासी होने का अधिकार नहीं खोएंगे।
यह है अनुच्छेद 35ए–
1-जम्मू-कश्मीर के बाहर का व्यक्ति राज्य में अचल संपत्ति नहीं खरीद सकता।
2-दूसरे राज्य का कोई भी व्यक्ति यहां का नागरिक नहीं बन सकता।
3-राज्य की लड़की किसी बाहरी लड़के से शादी करती है तो उसके सारे अधिकार समाप्त हो जाएंगे।
4-35ए के कारण ही पश्चिम पाकिस्तान से आए शरणार्थी अब भी राज्य के मौलिक अधिकार तथा अपनी पहचान से वंचित हैं।
5-जम्मू-कश्मीर में रह रहे लोग जिनके पास स्थायी निवास प्रमाणपत्र नहीं है, वे लोकसभा चुनाव में तो वोट दे सकते हैं लेकिन स्थानीय निकाय चुनाव में वोट नहीं दे सकते हैं।
6-यहां का नागरिक केवल वह ही माना जाएगा जो 14 मई 1954 को राज्य का नागरिक रहा हो या उससे पहले के 10 वर्षों से राज्य में रह रहा हो या इससे पहले या इस दौरान यहां पहले ही संपत्ति हासिल कर रखी हो।
इसलिए है अनुच्छेद 35,ए पर विवाद
1-26 जनवरी 1950 को देश में संविधान लागू हुआ था। इसमें जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाला अनुच्छेद 370 भी शामिल था। लेकिन 1954 में इसी अनुच्छेद में एक उपबंध के रूप में अनुच्छेद 35 ए को जोड़ दिया गया। अनुच्छेद 35 ए मूल संविधान का हिस्सा ही नहीं है बल्कि इसे परिशिष्ट में रखा गया है। इसीलिए लंबे समय तक लोगों को इसका पता ही नहीं चल सका। 2-अनुच्छेद 35 ए को न तो कभी लोकसभा में पेश किया गया और न ही राज्य सभा में। इसे मात्र राष्ट्रपति के आदेश (प्रेसिडेंशियल आर्डर) के जरिए अनुच्छेद 370 में जोड़ दिया गया था। संविधान के अनुच्छेद 368 के मुताबिक, चूंकि यह संसद से पारित नहीं हुआ, इसलिए एक अध्यादेश की तरह यह छह महीने से ज्यादा लागू नहीं रह सकता।
जब भी जम्मू-कश्मीर की बात की जाती है तो धारा 370 हमेशा बहस का मुद्दा रहती है, लेकिन अनुच्छेद 35ए कभी भी बहस की प्रमुख धारा का हिस्सा नहीं बन पाया जबकि जम्मू-कश्मीर में यह भी उतना ही महत्व रखता है। अनुच्छेद 35ए इसलिए भी चर्चा का विषय नहीं बन पाता क्योंकि लोगों को इसकी जानकारी ही नहीं है। यह अनुच्छेद जम्मू-कश्मीर विधानसभा को कई प्रकार के विशेष अधिकार तो प्रदान करता है, लेकिन किसी अन्य राज्य के नागरिकों, शरणार्थियों और वहां की आबादी के एक बड़े हिस्से के लिए भी यह एक बड़ी समस्या है। कहा जा सकता है कि अनुच्छेद 35ए जम्मू-कश्मीर को तो विशेष अधिकार देता है लेकिन एक बड़ी जनसंख्या के लिए मानवाधिकार खत्म कर देता है। यह अनुच्छेद ही इस बात का कारण है कि दशकों पहले यहां बसे शरणार्थियों को अब तक स्थायी नागरिक का दर्जा नहीं मिल पाया है। ऐसा नहीं है कि अनुच्छेद 35ए के खिलाफ या इसे खत्म करने के लिए कभी आवाज नहीं उठाई गई। इसकी संवैधनिकता पर सवाल उठाने वाली कई याचिकाएं सर्वोच्च न्यायालय में दायर की गई हैं। सर्वोच्च न्यायालय में सोमवार यानी 25 फरवरी को इसे लेकर सुनवाई होनी है। सुनवाई का एक प्रमुख कारण जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में सीआरपीएफ (केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल) पर हुए आतंकी हमले को भी माना जा रहा है। इस हमले के बाद से राज्य में सुरक्षा व्यवस्था को और चाक-चौबंद किया गया है। सुनवाई की घोषणा के बाद से राज्य में पुलिस सक्रिय हो गई है और किसी प्रकार की अप्रिय घटना को टालने के लिए कुछ अलगाववादी नेताओं को हिरासत में भी लिया गया है। जम्मू-कश्मीर के नेता हमेशा अनुच्छेद 35ए के समर्थन में रहे हैं फिर चाहे वह फारुख अब्दुल्ला हों या महबूबा मुफ्ती। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 35ए को न हटाए जाने और इसमें संशोधन न करने के पीछे तर्क दिया जाता है कि इससे जम्मू-कश्मीर में भारत का प्रभाव कम होगा और यहां अराजकता उस हद तक बढ़ जाएगी जिसे नियंत्रित करना बस के बाहर होगा। जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला ने अगस्त 2018 में कहा था कि वह मरते दम तक इसके लिए लड़ते रहेंगे, यदि इसके साथ छेड़छाड़ हुई तो हालात काफी हद तक बिगड़ जाएंगे। अब्दुल्ला ने कहा था कि इस मसले को जितना कुरेदेंगे उतना ही खून बहेगा। महबूबा मुफ्ती ने जुलाई 2017 में इस मसले पर कहा था कि आर्टिकल 35ए में छेड़छाड़ की गई तो कश्मीर में ऐसा कोई नहीं बचेगा जो तिरंगे को पकड़ सके। महबूबा ने यह भी कहा कि एक तरफ हम संविधान के दायरे में कश्मीर मुद्दे का समाधान करने की बात करते हैं और दूसरी तरफ हम इस पर हमला करते हैं। इस तरह से कश्मीर मुद्दे का समाधान नहीं निकाला जा सकता।