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Sedition Laws
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सर्वोच्च न्यायालय की कुछ महत्वपूर्ण टिप्पणियों की ओर

www.youngorganiser.com    Jammu (Tawi) 180001 (J&K Union Territory) Updated, 7th Feb. 2021.Sun, 2:54 PM (IST) : Team Work: Kunwar दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने विडियो फुटेज खंगालने के बाद 26 जनवरी को पुलिसकर्मियों से मारपीट करने वाले और लाल किला में तोड़फोड़ करने के आरोपियों के फोटो निकाले हैं। इन आरोपियों की तलाश की जा रही है, इसके लिए मोबाइल के डंप डेटा खंगाले जा रहे हैं और ड्राइविंग लाइसेंसिंग अथॉरिटी के जरिए फोटो रिकॉग्निशन टेक्निक से पहचान की जा रही है। हिंसा करने वाली भीड़ जब तक लाल किला परिसर में रही, हंगामा जारी रहा। भीड़ ने वहां तैनात सुरक्षाकर्मियों पर हमले किए और मशीनों के साथ तोड़फोड़ की। हमला करने वाले कुछ लोगों के हाथों में झंडे भी थे।यह आशंका हमेशा बनी रहती है कि कड़ाके की सर्दी में यहां जो पकी उम्र के लोग धरने पर बैठे हैं, वे शीतलहरी के शिकार बन सकते हैं। अब तक धरना-स्थलों पर कई किसान दम तोड़ चुके हैं। इसी बीच करनाल के पास एक बुजुर्ग संत राम सिंह ने गोली मारकर आत्महत्या कर ली। वह किसानों की स्थिति से ‘दुखी’ थे। उनके लिए अंतिम अरदास 25 दिसंबर को आयोजित की गई है। धरने के दौरान दम तोड़ चुके लोगों के गांव में भी आज प्रार्थना सभाएं करने का कार्यक्रम है। अतीत में इस तरह के अवसरों का उपयोग अराजक लोग कर चुके हैं। उम्मीद है कि ऐसा कुछ नहीं होगा, लेकिन खुदा-न-ख्वास्ता यह सिलसिला जारी रहा, तो उत्तेजना के फैलाव को भला कब तक रोका जा सकता है? हालांकि, इस आंदोलन की सबसे बड़ी खूबी यही है कि तमाम उकसावे के बावजूद यह अभी तक अहिंसक और शांतिपूर्ण है। किसान खुद रात-रातभर जागकर बड़बोले और अराजक तत्वों से खुद को बचाते रहे हैं, पर उनके बीच अगर उत्तेजक बात करने वालों की घुसपैठ बड़ी तादाद में हो गई, तो कुछ लोगों के राह भटकने की आशंका से भी इनकार नहीं किया जा सकता। यह ठीक है कि किसान लंबी तैयारी के साथ आए हैं और पूरी चौकसी भी बरत रहे हैं, पर सिर्फ इतने से आश्वस्त नहीं हुआ जा सकता। जहां तक सरकार की बात है, उसने भी कमर कस ली है। प्रधानमंत्री ने खुद कच्छ और मध्य प्रदेश के किसानों से बात की है। वह इससे पहले भी किसानों को तमाम संदेश दे चुके हैं। गृह मंत्री अमित शाह भी बंगाल में किसानों से मुखातिब हुए, तो उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मेरठ और बरेली में बड़ी किसान रैलियां कीं। जाहिर है, सरकार असंतोष की इस ज्वाला को विस्तार मिलने से पहले ही रोक देना चाहती है। विपक्ष का आरोप है कि यह कदमताल इसलिए की जा रही है, ताकि साबित किया जा सके कि यह सिर्फ एक खास भौगोलिक इलाके के किसानों का असंतोष प्रदर्शन है। आशावादी सरकार की इस पहल को भला मानते हुए कह सकते हैं कि दिल्ली के दर पर किसानों ने खेती और किसानी को हुकूमत का केंद्रीय विषय बनाने में सफलता हासिल कर ली है, पर क्या बात महज इतनी-सी है? पंजाब एक संवेदनशील सीमाई सूबा है। वहां धर्म, समाज और राजनीति का अनोखा घालमेल देखने को मिलता है। इसी का दुरुपयोग कर कुछ लोगों ने यहां अलगाव का अंधियारा रोप दिया था, जिससे बरसों-बरस इस देश की देह लहूलुहान होती रही। अगर इस आंदोलन को सिर्फ सिखों का आंदोलन बताने की कोशिश जारी रहती है, तो इसके अनदेखे दुष्परिणाम भी निकल सकते हैं। कुछ विदेशी सरकारें इस मुद्दे पर अनावश्यक टिप्पणी भी कर चुकी हैं। सरकार के सामने एक दिक्कत यह भी है कि इतने सारे संगठनों को साधना बड़ा मुश्किल है। यदि आंदोलन का नेतृत्व किसी एक व्यक्ति अथवा सीमित संख्या में कुछ लोगों के हाथ में होता, तो यकीनन सहमति के रास्ते जल्दी निकल सकते थे, पर करें क्या? हुकूमत का पुराना दस्तूर है कि वह अपने साथ सिर्फ सत्ता की शक्ति लेकर नहीं आती, बल्कि सत्तानायकों के कंधों पर जिम्मेदारी का भारी जुआ भी थोप जाती है। सरकार को इस अग्नि-परीक्षा से तो गुजरना ही होगा।एमएसपी और मंडी को लेकर झूठ फैलाया जा रहा है। हकीकत यह है कि कुछ भी बदलने नहीं जा रहा।’ कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने किसानों को लिखे लंबे खत में भावुक अपील के साथ एक बार फिर स्थिति साफ करने की कोशिश की थी, पर किसानों ने इसे नकार दिया है। इसके साथ ही दिल्ली के दर पर किसानों का जमावड़ा चौथा हफ्ता पार कर चला है। इतिहास गवाह है, लंबे आंदोलन अक्सर आफत के बीज बो जाते हैं।यहां मैं आपका ध्यान सर्वोच्च न्यायालय की कुछ महत्वपूर्ण टिप्पणियों की ओर आकर्षित करना चाहूंगा। प्रधान न्यायाधीश की अगुवाई में तीन न्यायमूर्तियों की पीठ ने इस आंदोलन पर प्रतिक्रिया व्यक्त की है कि अगर इस मसले का जल्दी हल नहीं निकाला गया, तो यह सिलसिला देश के अन्य हिस्सों में भी फैल सकता है। आला अदालत का यह भी मानना है कि वह किसी से असहमति जताने के अधिकार को नहीं छीन सकती, बशर्ते इससे दूसरों के अधिकार बाधित न होते हों। यही वजह है कि माननीय न्यायालय ने इस मामले को अवकाशकालीन बेंच के सामने प्रस्तुत करने को कहा है, ताकि निर्णय जल्दी हो सके। बहस के दौरान अदालत ने भारत के महान्यायविद (अटॉर्नी जनरल) से पूछा कि क्या सरकार इन कानूनों को कुछ दिनों के लिए ‘होल्ड’ पर नहीं रख सकती? अटॉर्नी जनरल का जवाब था कि वह सरकार से पूछकर बताएंगे। अदालत इस मामले में समिति गठित करने का सुझाव भी दे चुकी है। सरकार चाहे, तो आला अदालत की टिप्पणियों और सवालों के बीच फौरी समाधान खोज सकती है।किसान भी मांग कर रहे हैं कि अदालत के बजाय केंद्र सरकार इस मुद्दे को निपटाए, पर यह हो कैसे? हुकूमत ने बीच का रास्ता निकालते हुए कुछ संशोधन सुझाए जरूर, पर वे किसानों को मंजूर नहीं। दोनों पक्ष यदि ऐसे ही अडे़ रहे, तो यह गतिरोध लंबा खिंच जाएगा। यही वह मुकाम है, जहां अतीत के अनुभव आशंकाओं के बबूल रोपते नजर आते हैं।इस जमावडे़ से पहली परेशानी तो यही है कि दिल्ली के चार प्रवेश द्वार या तो पूरी तरह बंद हैं या आंशिक तौर पर बाधित हैं। आप जानते हैं कि दिल्ली का राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र से चोली और दामन का रिश्ता है। लाखों की संख्या में लोगों को प्रतिदिन काम-काज के सिलसिले में दिल्ली या राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में आना-जाना होता है। पिछले वर्ष शाहीन बाग के आंदोलन के दौरान तो सिर्फ एक सड़क बंद थी, पर इस बार मामला उससे कहीं बड़ा है। लंबे समय तक इन रास्तों पर धरना आम आदमी के वक्त और करोड़ों रुपये की बर्बादी का सबब साबित हो सकता है। वैसे दुश्वारियां तो आज भी कम नहीं हैं। दिल्ली और एनसीआर के व्यापारियों को भी इससे दिक्कतें हो रही हैं। आजादपुर मंडी में फल और सब्जियों का आवागमन अव्यवस्थित हो गया है। इससे न केवल खरीदार और व्यापारी परेशान हैं, बल्कि इनके उत्पादक, जो किसान हैं, उन्हें भी आर्थिक क्षति का सामना करना पड़ रहा है।

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