Breaking News

शिक्षा और रोजगार को अलग करके नहीं देखा जा सकता

www.youngorganiser.com    Jammu (Tawi) 180001 (J&K Union Territory) Updated, 2nd, Feb. 2021.Tue, 7:15 AM (IST) : pAWAN vIKAS sHARMA (ARTICLE) , बीते दशकों में मेडिकल और इंजीनियरिंग युवाओं के आकर्षण के दो प्रमुख क्षेत्र रहे हैं परंतु पिछले कुछ वर्षों के दौरान इंजीनियरिंग का क्रेज आश्चर्यजनक रूप से कम हुआ है। इस मोहभंग का कारण यह रहा कि भारतीय इंजीनियर उद्योग जगत की जरूरतों के मुताबिक काबिल नहीं पाए गए और उनके लिए अच्छी नौकरियों के लाले पड़ते गए। थोक भाव से खुलते चले गए इंजीनियरिंग कॉलेज उद्योग जगत की नवीन तकनीकों के अनुरूप स्वयं को खड़ा नहीं रख पाए। इसके विपरीत वकालत अचानक एक ग्लैमरस करियर ऑप्शन के रूप में उभर आया है और नई पीढ़ी में प्रतिष्ठित लॉ इंस्टीट्यूट्स को लेकर क्रेज देखा जा रहा है। आज रोजगार के ज्यादातर अवसरों का लाभ उठाने के लिए व्यावसायिक कौशल की आवश्यकता है। कार्यबल को नई आवश्यकताओं के अनुरूप सक्षम बनाने के लिए स्कूली पाठ्यक्रम को व्यावसायिक शिक्षा के साथ समेकित कर बेहतर बनाने की आवश्यकता है। यह सही है कि शिक्षा और रोजगार को अलग करके नहीं देखा जा सकता लेकिन व्यवहार में अक्सर इनमें समन्वय का अभाव दिखता है। देश में हर साल एक करोड़ युवा ग्रैजुएट बनकर जॉब मार्केट के लिए तैयार हो जाते हैं परंतु दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य यह है कि उनमें से ज्यादातर संख्या उनकी है जो बाजार की मांग के अनुरूप फिट नहीं बैठते। इसमें दो राय नहीं कि भारत की जनसंख्या के अनुपात में रोजगार पैदा करना बेहद मुश्किल काम है परंतु ऐसा भी नहीं कि दुनिया की इस तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था में बेरोजगारी का स्तर कम करना मुमकिन ही न हो। आवश्यकता है उन रास्तों को ढूंढने की जो श्रम बाजार की नई जरूरतों के अनुरूप हो। इसी संदर्भ में यह देखना दिलचस्प होगा कि कैसे बाजार के बदलते तकाजों ने कुछ वर्षों के अंदर युवा आकांक्षा की दिशा बदल दी। वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम की एक रिपोर्ट बताती है कि आने वाले समय में सामान्य कौशल मैदान में नहीं टिक पाएंगे। तब दो ही तरह के स्किल सेट रहेंगे। पहला, अत्यधिक विकसित तकनीकी क्षमताओं वाले, जैसी मशीन लर्निंग, बिग डेटा, रोबॉटिक्स और दूसरा मानव कौशल। आने वाले समय में साइबर सुरक्षा प्रबंधन और ऐप डिवेलपर जैसी दक्षता भी रोजगार गारंटी बन सकती है। हमें यह नहीं भूलना है कि आज का पारिस्थितिक तंत्र एक ऐसे कार्यबल की मांग कर रहा है जो अनिश्चितता को संभाल सके और निरंतर होने वाले परिवर्तनों के अनुरूप हो। इन सबके बीच असल चुनौती उन गरीब युवाओं के लिए होगी जो उच्च शिक्षा के निजीकरण के चलते कर्जदार बनने को अभिशप्त होंगे। इस तथ्य की अनदेखी नहीं की जा सकती कि देश में उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले एक हजार विद्यार्थियों में से मात्र चार ही साइंस और टेक्नॉलजी को अपने कॉलेज स्तरीय अध्ययन का विषय बनाते हैं। इसका एक बड़ा कारण स्कूली स्तर पर अपनाई गई शिक्षा की तकनीक है। वहां साइंस जैसे विषय को भी किताबों में दी गई परिभाषा तक सीमित कर बोझिल बना दिया जाता है जिसके चलते विद्यार्थियों का रुझान सहज रूप में इन विषयों की ओर नहीं बनता। हालांकि हाल ही में लाई गई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को आर्थिक और सामाजिक विश्लेषक बेरोजगारी दूर करने की एक मजबूत पहल के रूप में देख रहे हैं। स्कूली शिक्षा में कौशल विकास और व्यावसायिकप्रशिक्षण यकीनन रोजगार युक्त व्यवस्था की नींव को मजबूत करेगा। लेकिन इसके साथ यह सवाल जरूर जुड़ा हुआ है कि समाज शिक्षा नीति में बदलाव की इस पहल को लेकर कितना पॉजिटिव नजरिया दिखा पाएगा।इसमें कोई संदेह नहीं कि आने वाले दशक में पहले की ही तरह डॉक्टरों की मांग बनी रहेगी परंतु इंजीनियरिंग की पढ़ाई को इंडस्ट्री के नए तकाजों के मुताबिक ढालने की जरूरत है। आगे ऐसे कुछ क्षेत्रों में रोजगार के नए अवसर देखे जा सकते हैं जो आज युवाओं के रडार पर नहीं हैं। उदाहरण के लिए जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण का क्षेत्र। आर्टिफिशल इंटेलिजेंस इस लिहाज से खासा संभावनाशील क्षेत्र है। कैलिफोर्निया की आग का दायरा फैलने से रोकने के लिए आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) की मदद ली गई। जंगलों की मैपिंग करने और रिमोट सेंसिंग सैटलाइट से जमीनी आंकड़े जुटाने में ही नहीं, आग के फैलाव का पूर्वानुमान लगाने में भी इसकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। यही नहीं बाढ़ रोकने में भी यह काफी मददगार साबित हो रही है।बाढ़ भारत के लिए भी एक बड़ी समस्या है। ऐसे में आश्चर्य नहीं कि भविष्य में यहां भी एआई महत्वपूर्ण भूमिका में नजर आए। शिक्षा के क्षेत्र में एआई का प्रयोग ग्रेडिंग और रेकॉर्ड कीपिंग के साथ-साथ अंक देने और व्यापार में ग्राहकों को तत्काल सेवा देने के लिए भी हो सकता है। 2030 तक विश्व अर्थव्यवस्था में एआई 15.7 खरब डॉलर का योगदान करेगा। इस लिहाज से भारत की एआई के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपनी अर्थव्यवस्था को ज्ञान आधारित बनाने की है, जिसके लिए शिक्षा केइन्फ्रास्ट्रक्चर पर व्यापक निवेश की जरूरत है। साथ ही चौथी औद्योगिक क्रांति के मद्देनजर एक ऐसी टास्क फोर्स के गठन की जरूरत है जो बहुआयामी कौशल से युक्त हो। इन तमाम बातों को ध्यान में रखते हुए विशेषज्ञ बता रहे हैं कि आने वाले दशक में भारत में करीब पांच करोड़ टेक्निकली क्वॉलिफाइड वर्कर्स की आवश्यकता होगी। यानी डिजिटल अर्थव्यवस्था की ओर तेजी से कदम बढ़ाकर भारत बेरोजगारी की समस्या से काफी हद तक निपट सकता है।इसके लिए उच्च शिक्षण संस्थानों में तकनीकी प्रशिक्षण को प्रभावी ढंग से लागू करने की जरूरत है। संभवत: इसीलिए नई शिक्षा नीति स्कूल और कॉलेज दोनों ही स्तरों पर टेक्निकल क्वॉलिफिकेशन और उससे संबंधित सिलेबस की बात करती है। दीर्घकालिक योजनाओं की अपनी अहमियत है, लेकिन यदि एआई जैसे इनोवेटिव प्रोग्राम तत्काल कॉलेज करिकुलम में शामिल कर लिए जाएं तो आने वाले दो-तीन सालों में ही भारतीय युवा एआई विशेषज्ञ के रूप में रोजगार प्राप्त करने लगेंगे। ठीक इसी तरह भारत के आईटी उद्योग जगत में क्लाउड कंप्यूटिंग के कुछ रूपों की मांग में भारी बढ़ोतरी देखने को मिली है। देश की कंपनियां क्लाउड को अपना रही हैं क्योंकि यह उन्हें कामकाज में लचीलापन, व्यापकता और गति देता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

x

Check Also

इजराइल में सत्ता में परिवर्तन तो हो गया परिवर्तन के बाद भी भारत से संबंध मजबूत बने रहेंगे

www.youngorganiser.com    Jammu (Tawi) 180001 (J&K Union Territory) Updated, 15th Jun. 2021, Tue. 2: 58  PM ...