www.youngorganiser.com Jammu (Tawi) 180001 (J&K Union Territory) Updated, 6th May. 2021, Thu. 9:02 AM (IST) : ( Article ) Kapish Sharma बंगाल में भड़की हिंसा में अभी तक 12 लोगों के मरने का और सैकड़ों के घायल होने का समाचार है। पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव परिणाम आने के बाद जिस प्रकार मुस्लिम बहुसंख्या वाले क्षेत्रों में हिन्दुओं पर हमले और लूटपाट हुई उसको देखते हुए नेताओं को क्या जन साधारण को भी कहना पड़ा कि इस तरह की हिंसा तो 1947 में देश विभाजन के समय में हुई थी। पश्चिम बंगाल की तीसरी बार बनी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पद संभालने के बाद कहा कि श्मैं स्थिति से निपटने के लिए अपनी टीम गठित करूंगी और सभी राजनीतिक दलों से किसी भी प्रकार की हिंसा में शामिल नहीं होने की अपील करती हूं। हिंसा की कुछ घटनाएं हुई हैं और यह सुनिश्चित किया जाएगा कि कोई भी अपराधी बच नहीं पाए। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने कहा कि जैसे-जैसे नतीजे आए हैं वैसे-वैसे यहां राजनीतिक हिंसा का तांडव देखने को मिला है। यह लड़ाई हम निर्णायक मोड़ तक लड़ेंगे। नड्डा ने बंगाल में चुनाव बाद की हिंसा से पीडि़त भाजपा वर्करों के परिवारों से मुलाकात कर संवेदना व्यक्त की। पश्चिम बंगाल के कोलकाता में कार्यकर्ताओं की हत्या के विरोध में बीजेपी के धरना प्रदर्शन में बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा कि बंगाल में हिंसा का तांडव दिख रहा है। बंगाल की जनता ने जो जिम्मेदारी दी है उसे निभाएंगे। बंगाल में तुष्टिकरण राजनीतिक हिंसा के खिलाफ लड़ाई लड़ी, जो लड़ाई लड़ी गई वो जारी रहेगी। राजधानी के सेंट्रल पार्क में स्थित महात्मा गांधी की प्रतिमा पर पार्टी की ओर से आयोजित एक धरने में शामिल होने के बाद नड्डा ने कहा कि पूरे देश को पता होना चाहिए कि चुनावी नतीजों के बाद राज्य में किस प्रकार की हिंसा हो रही है। इसी प्रकार पार्टी कार्यालय में आयोजित एक कार्यक्रम में नड्डा ने कहा, श्मैं उत्तरी चैबीस परगना जिले का दौरा करूंगा और इस हिंसा के शिकार लोगों के दर्द साझा करूंगा। हम पूरे देश को इस बारे में बताना चाहते हैं। कोलकाता में भाजपा विधायकों ने बंगाल में हो रही हिंसा की राजनीति के खिलाफ और गणतंत्र की स्थापना के लिए बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा की उपस्थिति में शपथ ली। इस दौरान जेपी नड्डा ने भी लोगों की जान बचाने की सांकेतिक शपथ ली। बंगाल में टीएमसी की जीत के बाद भड़की हिंसा को लेकर वरिष्ठ पत्रकार सुधीश पचैरी ने अपने लेख में जो लिखा है उसका अंश आपके सम्मुख रखना चाहूंगा, जिससे आप को वहां कि स्थिति समझने में आसानी होगी। श्सुधीश पचैरी अनुसार बंगाल के चुनावों ने कई तरह की श्फाल्टलाइनों को सुलाने की जगह और भी जगा दिया है, जिसका एक उदाहरण इन चुनावों के परिणाम आने के तुरंत बाद शुरू हुई हिंसा है, जिसके उदाहरण भाजपा के दफ्तरों को आग लगाने और कई भाजपा कार्यकर्ताओं के मारे जाने की खबरें हैं। जिसे न तो विश्व मीडिया तवज्जो दे रहा है, न देसी मीडिया ही। एकाध टीवी चैनल जो वीडियोज दिखा रहे हैं, उनको श्पुराने वीडियो कहकर टीएमसी द्वारा खारिज किया जा रहा है! जब कथित श्पुराने वीडियो इतने लोमहर्षक हैं, तो नए कैसे होंगे? यह सहज ही सोचा जा सकता है। पूछना जरूरी है कि बंगाल में जो खूनखराबा हो रहा है, वह जीत का जश्न है या श्खेला होबे मुहावरे का चरम बिंदु है, जिसमें जीत की श्विनम्रता की जगह, जीतने वाली टीम हारने वाली टीम से हिसाब तय कर रही है, जैसे कि फुटबाल के मैदान में हारी हुई टीम को जीतने वाले दौड़ा-दौड़ाकर मारे! ऐसा तो श्हिटलर के जमाने में हुए श्फुटबाल मैचों तक में नहीं दिखा! बहरहाल, अच्छी बात यह है कि उस श्खेला होबे नारे के असली मानी अब प्रकट हो रहे हैं और इस बार अकेली भाजपा इस हिंसक श्खेला की शिकायत नहीं कर रही, बल्कि माक्र्सवादी पार्टी की नेता सुभाषिनी अली तक को ट्वीट कर कहना पड़ा है कि निर्णायक जीत के बाद टीमएसी की आक्रामकता बढ़ी है। उनके श्अखिल भारतीय जनवादी महिला संगठन की बर्दवान इकाई की एक महत्वपूर्ण कार्यकर्ता काकोली क्षेत्रापाल की नृशंस हत्या कर दी गई है। मोदी और भाजपा से घृणा करने वालों के लिए भाजपा की ऐसी शिकायत श्एक ड्रामा भर होती, पर सुभाषिनी के उक्त ट्वीट के बारे में वे क्या कहेंगे? जीत अपनी जगह होती है, पर जीत का नशा मारक होता है। जीत के बाद भी श्खेला्य रुका नहीं है, बल्कि सफाई अभियान की तरह जारी है। कहने की जरूरत नहीं कि बंगाल के चुनावों के कुछ व्याख्याताओं ने भी टीमएसी की इस आक्रामकता को भी हवा दी हैरू किसी के लिए यह जीत श्केंद्र की भाजपा की तानाशाही के खिलाफ जीत है, किसी के लिए यह श्मोदी के फासिज्म के खिलाफ जीत है और किसी के लिए यह श्हिंदुत्व पर श्सेकुलर शक्तियों की जीत है। किसी के लिए यह श्महिषासुर मर्दिनी की जीत है। ऐसे व्याख्याता मोदी के अंध-विरोध के चलते यह नहीं देख पाते कि इस जीत में बहुत से ऐसे श्तत्वों की भी भूमिका रही है, जो बंगाल में चार-चार पाकिस्तान बनाने की बात कहते थे। टीमएसी की जीत ने ऐसी श्फाल्टलाइनों को खुलकर खेलने का अवसर दे दिया लगता है। बंगाल में हुई हिंसा के पीछे जहां क्षेत्रवाद व मुस्लिम प्रतिक्रिया थी वहीं राजनीति में मतभेद किस तरह मनभेद में बदल जाता है वह भी दिखाई देता है। बंगाल की हिंसा पर प्रधानमंत्री ने भी चिंता प्रकट की है और भाजपा ने तो देश के सर्वोच्च न्यायालय पर भी दस्तक दी है। बंगाल में जिस तरह क्षेत्रवाद तथा अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय की भावनाओं का उभार कर सभी राजनीतिक दलों ने अपनी स्वार्थसिद्धि करने की कोशिश की थी, उस कारण उत्पन्न हुई स्थिति के कारण नफरत की राजनीति को बल मिला और अब खून-खराबा देखने को मिल रहा है। बंगाल में हुई हिंसा से स्पष्ट है कि अगर क्षेत्रवाद, सम्प्रदाय, भाषा या धर्म पर आधारित राजनीति भविष्य में भी चलती रही तो हमें भविष्य में भी इसी तरह की हिंसा देखने को मिलती रहेगी। राष्ट्रीय हित में आवश्यक है कि राजनीति का आधार जन साधारण तथा प्रदेश व देश का हित ही होना चाहिए। भावनात्मक मुद्दे को उछालने से क्षणिक राजनीतिक लाभ तो हो सकता है लेकिन बाद में खून-खराबा ही देखने को मिलेगा। बंगाल में हुई हिंसा को देखते हुए सभी दलों को राष्ट्रीय हित को सम्मुख रखते हुए भविष्य में नफरत की राजनीति न करने की शपथ लेनी चाहिए।
