www.youngorganiser.com Jammu (Tawi) 180001 (J&K Union Territory) Updated, 12th Jul. 2021, Mon. 2: 29 PM (IST) : टीम डिजिटल: P.V.Sharma जम्मू-कश्मीर में परिसीमन प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। केंद्र सरकार ने कहा है कि पहले परिसीमन का काम पूरा होगा और उसके बाद चुनाव होंगे। दोबारा से जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा देने का भरोसा भी प्रधानमंत्री की ओर से मिला है। राजनीतिक दलों के साथ परिसीमन आयोग की पहली बैठक हो चुकी है। जम्मू-कश्मीर नेशनल पैंथर्स पार्टी ने सुझाव दिया कि इन दोनों संभागों में 45-45 सीटें बांट दी जाएं। डोगरा सदर सभा ने जम्मू को 49 विधानसभा सीटें देने की मांग की। एनसीपी और कांग्रेस पार्टी ने भी जम्मू को उसका वाजिब हिस्सा देने की बात कही है। जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक एवं सुरक्षा मामलों के जानकार कैप्टन अनिल गौर (रिटायर्ड) कहते हैं, पहाड़, पंडित, मुस्लिम और पश्चिमी पाकिस्तान से आकर बसे लोग, ये सब तो ‘जम्मू‘ में हैं, लेकिन विधानसभा सीटों की संख्या में ‘कश्मीर‘ आगे है। जम्मू संभाग के दस जिले 28600 वर्ग किलोमीटर के दायरे में हैं, जबकि कश्मीर संभाग के दस जिले 16350 वर्ग किलोमीटर में आते हैं। जम्मू में 37 विधानसभा सीटें हैं, जबकि यहां एक सीट का औसतन क्षेत्र 773 वर्ग किलोमीटर रहता है। दूसरी तरफ कश्मीर में 46 विस सीटें हैं। एक विधानसभा सीट 355 वर्ग किलोमीटर दायरे में सिमटी है। जम्मू में एक विधानसभा सीट पर 143300 जनसंख्या है तो वहीं कश्मीर में यह आंकड़ा 116400 रहता है। परिसीमन आयोग की बैठक में पीडीपी ने भाग नहीं लिया। सज्जाद लोन की पीपल्स पार्टी को छोड़कर बाकी राजनीतिक दलों का कहना था कि परिसीमन प्रक्रिया 2011 की जनगणना पर नहीं होनी चाहिए। यह नई जनगणना के आधार पर हो। डोगरा सदर सभा ने तो जम्मू संभाग के लिए 49 विधानसभा सीटों की मांग रख दी। शुरू से ही जम्मू संभाग के साथ भेदभाव हुआ है। आजादी के बाद 1947 में जब विलय की प्रक्रिया पूरी हुई तो कश्मीर में 43 सीटें और जम्मू के लिए 30 सीटें आवंटित कर दी गईं। वही मामला आज तक चल रहा है। कैप्टन अनिल गौर (रिटायर्ड) कहते हैं, आप किसी भी एंगल से देखें, जम्मू संभाग ही परिसीमन के हिसाब से हावी पड़ता है। यह अलग बात है कि बहुत से तथ्यों को दरकिनार कर कश्मीर संभाग को अधिक सीटें दे दी गईं। परिसीमन आयोग को यह देखना चाहिए कि जब जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद चरम पर था, तो बहुत से मुस्लिम परिवार जम्मू में आकर बस गए। उसी दौर में कश्मीरी पंडित भी जम्मू संभाग में चले आए। पश्चिमी पाकिस्तान से आए लोग, जिन्हें अभी तक विधानसभा चुनाव में वोट का अधिकार नहीं था, वे भी जम्मू संभाग में ही रह रहे हैं। जम्मू में अनुसूचित जाति के लोगों की संख्या भी अब अच्छी खासी हो गई है। जम्मू-कश्मीर की अधिकांश राजनीतिक पार्टियां भी ये बात जानती हैं कि जम्मू के साथ भेदभाव हो रहा है। उनमें से कुछ पार्टियां बोल देती है तो बाकी मौन साध लेती हैं। संसाधनों, दूरी, मुश्किलों और जनसंख्या के हिसाब से देखेंगे तो जम्मू संभाग ही कश्मीर पर भारी पड़ता है। कैप्टन अनिल गौर के मुताबिक, कश्मीर में तीन लोकसभा सीटें हैं, जबकि जम्मू में दो हैं। कश्मीर में एक लोकसभा सीट का दायरा 5450 वर्ग किलोमीटर का है। अगर जनसंख्या की बात करें तो वह 1783060 है। वहीं जम्मू में एक लोकसभा सीट 14300 वर्ग किलोमीटर के दायरे में आती है, जबकि जनसंख्या 2675400 है। मौजूदा स्थिति में दस जिले जम्मू संभाग और दस जिले कश्मीर संभाग में आते हैं। जम्मू का एक जिला 2860 वर्ग किलोमीटर में पड़ता है, तो वहीं कश्मीर का एक जिला 1635 वर्ग किलोमीटर में आता है। जम्मू संभाग में उधमपुर, डोडा, पुंछ, राजौरी व किश्तवाड़ आदि पहाड़ी इलाके हैं। कश्मीर में ज्यादातर जिले मैदानी भाग में आ जाते हैं। बारामुला ही पहाड़ियों वाला जिला है। श्रीनगर 300 वर्ग किलोमीटर में सिमटा हुआ है, जबकि जम्मू 3000 वर्ग किलोमीटर में जा पहुंचा है। पहाड़ी इलाके में अगर कोई सड़क बनती है तो उसका खर्च मैदानी इलाके से दस गुना अधिक होता है। अब ऐसी स्थिति में केंद्र सरकार फंड बराबर देती है। ऐसे में जम्मू संभाग, विकास के मामले में पिछड़ जाता है। डोडा, पुंछ, राजौरी व किश्तवाड़ अभी विकास में मामले बहुत पीछे हैं। किश्तवाड़ 7800 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है। 2011 की जनगणना के मुताबिक, जम्मू संभाग में 37 सीटें हैं और कश्मीर में 46 हैं। परिसीमन के बाद सात सीटें बढ़ सकती हैं। अनिल गौर कहते हैं, परिसीमन आयोग को हर परिस्थिति पर गौर करने के बाद विधानसभा सीटों की संख्या घटानी-बढ़ानी चाहिए। जम्मू में क्षेत्रफल बहुत ज्यादा है, दूरदराज तक फंड नहीं पहुंच पाता। विकास में मामले में कुछ इलाके तो पूरी तरह पिछड़ गए हैं। अनिल गौर का दावा है कि साल 2011 की जनगणना के दौरान गलत आंकड़े पेश किए थे। करीब दस लाख वोटों को कश्मीर में दिखा दिया गया। इसी वजह से कई राजनीतिक दलों ने परिसीमन आयोग के समक्ष कहा है कि वह 2011 की जनगणना के अनुसार परिसीमन प्रक्रिया शुरू न करे। यह परिसीमन निष्पक्ष नहीं होगा। आयोग की अध्यक्ष जस्टिस (रिटायर्ड) रंजना प्रकाश देसाई ने कहा, जम्मू-कश्मीर में विधानसभा क्षेत्रों का परिसीमन एक संवैधानिक प्रक्रिया है। इसकी निष्पक्षता को लेकर किसी को भ्रम में नहीं रहना चाहिए। परिसीमन आयोग पीओजेके के लिए जम्मू-कश्मीर विधानसभा में रिक्त रखी गई 24 सीटों पर कोई विचार नहीं कर रहा है। यह उसके क्षेत्राधिकार का विषय नहीं है। परिसीमन को लेकर आयोग अपनी अंतिम रिपोर्ट मार्च 2022 तक दे देगा। चूंकि यह परिसीमन, जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम के तहत हो रहा है, इसलिए 2011 की जनसंख्या को ही आधार मानकर अंतिम रिपोर्ट तैयार होगी। डोगरा सदर सभा ने 2011 की जनगणना को नकारते हुए नई जनगणना के आधार पर परिसीमन की मांग की है। डोगरा सदर सभा ने जम्मू संभाग के लिए 49 सीटों की मांग करते हुए सभी जम्मूवासियों से इसके लिए एकजुट होने की अपील की है। डोगरा सदर सभा के अध्यक्ष गुलचैन सिंह चाढ़क ने संवाददाता सम्मेलन में 2011 की जनगणना को फर्जी करार देते हुए कहा कि निर्वाचन क्षेत्रों के निष्पक्ष और न्यायपूर्ण परिसीमन के लिए भरोसा नहीं किया जा सकता है। उन्होंने इस बात पर संतोष व्यक्त किया कि जम्मू में परिसीमन आयोग से मिलने के लिए बड़ी संख्या में समूहों और व्यक्तियों ने ज्ञापन सौंपा और जम्मू से हुए भेदभाव को उजागर किया। चाढ़क ने कहा कि समय आ गया है कि सभी जम्मूवासी एक मंच पर आएं और इस तरह के मुद्दों को उठाते हुए अपनी सोच को एक साथ रखें। ऐसे सामूहिक प्रयासों से जम्मू को उसका हक मिलना संभव हो सकता है। चाढ़क ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आयोग ने दर्जनों संगठनों के प्रतिनिधियों को एक साथ मिलने का समय दिया। बेहतर होता कि परिसीमन आयोग के सदस्य कुछ और समय लेकर लोगों की बातें सुनते। चाढ़क ने ज्ञापन के माध्यम से आयोग को अवगत कराया कि जम्मू और कश्मीर में परिसीमन प्रक्रिया की शुरुआत ही जम्मू संभाग से भेदभाव के साथ हुई थी। 1947 में विलय के बाद कश्मीर के लिए 43 सीटें, जबकि जम्मू के लिए 30 सीटें आवंटित की गई थी। लगातार कश्मीर केंद्रित सरकारों द्वारा जनगणना में हेरफेर किया जाता रहा। अभी जम्मू में 37 सीटें हैं, जबकि कश्मीर में 46 सीटें हैं। जम्मू संभाग में 7.67 फीसद ज्यादा मतदाता होने पर भी सीटें कम डोगरा सदर सभा के अध्यक्ष गुलचैन सिंह चाढ़क ने परिसीमन आयोग को बताया कि 2002 में राज्य विधानसभा चुनाव के दौरान, जम्मू संभाग में कुल मतदाता 31,06,280 थे, जबकि कश्मीर में 28,84,852 मतदाता थे। यानी जम्मू में 7.67 प्रतिशत अधिक मतदाता थे। उन्होंने आकडे़ दर्शाते हुए कहा कि 2011 की जनगणना के आंकडे़ मनगढ़ंत हैं। चाढ़क ने कहा कि परिसीमन आयोग को बताया कि 1971 से 2001 के बीच जम्मू संभाग की जनसंख्या में औसत वृद्धि 31 फीसद थी, जो 2001 से 2011 के बीच घटकर 21 प्रतिशत हो गई। 2011 की जनगणना के अनुसार, इस अवधि में घाटी में बढ़ती आतंकवादी गतिविधियों के कारण एक बड़ी आबादी कश्मीर से जम्मू चली आई थी। पहले जम्मू कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल हो, फिर परिसीमन के बाद करवाए जाएं चुनाव कांग्रेस के एक प्रतिनिधिमंडल वीरवार को जम्मू में परिसीमन आयोग के साथ बैठक कर ज्ञापन सौंपा। जिला कांग्रेस अध्यक्ष बब्बल गुप्ता के साथ संजीव शर्मा भी परिसीमन आयोग से मिलने पहुंचे थे। परिसीमन आयोग को हमने ज्ञापन सौंपा था। कांग्रेस पार्टी के दिग्गज नेता गुलाम नबी आजाद ने भी कमीशन से स्टेटहुड बहाल करने की मांग की है। बब्बल गुप्ता ने बताया कि हमने कमीशन को बताया कि जिला सांबा में सन 2011 में सवा तीन लाख मतदाता थे, लेकिन अब चार लाख से ज्यादा वोटर हैं। उन्होंने परिसीमन आयोग से मांग की है कि जिला साबा में दो विधानसभा से अब तीन विधानसभा बनाई जाए।
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