www.youngorganiser.com Jammu (Tawi) 180001 (J&K Union Territory) Updated, 8th Jun. 2021, Tue. 10: 44 PM (IST) : टीम डिजिटल: Kuldeep and kunwar वॉशिंगटन: अब जबकि कई सबूत दुनिया के सामने आ चुके हैं कि चीन ने ही कोरोना वायरस को जन्म दिया है और चीन ने ही दुनिया को बर्बादी के मुहाने पर लाने का काम किया है, आखिर दुनिया की सुपर शक्तियों को चीन को सजा देने में इतना डर क्यों लग रहा है? अमेरिका हो या यूरोपीयन देश…कोई खुलकर चीन को उत्तरदायी ठहराने की मांग क्यों नहीं करता है? क्या ऑस्ट्रेलिया को चीन ने जो नुकसान पहुंचाया है, उसे देखकर अमेरिका और यूरोपीयन देश भी डर गये हैं? चीन के खिलाफ दुनियाभर के देशों में रहने वाले लोगों में भारी गुस्सा है। अब तक 37 लाख से ज्यादा लोग पूरी दुनिया में कोरोना वायरस की वजह से अपनी जान गंवा चुके हैं। अरबों-खरबों डालर का नुकसान हो चुका है और अब भी हो रहा है, लेकिन दुनिया की महाशक्तियां चुप हैं। चीन के वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी यानि डब्ल्यूआईवी में जिनोमिक सिक्वेंसिंग के सबूत सामने आ चुके हैं और इसका भी खुलासा हो चुका है कि महामारी घोषित होने से पहले ही पिछले साल फरवरी में चीन की सेना के वैज्ञानिक ने कोरोना वायरस वैक्सीन को पेटेंट कराने के लिए आवेदन दे दिया था, बावजूद इसके वैश्विक शक्तियों की तरफ से चीन को जवाबदेह ठहराने की मांग नहीं उठ रही है। ऐसे में सवाल ये उठ रहे हैं कि आखिर शी जिनपिंग के साम्राज्य को सजा देने की मांग कब की जाएगी? अमेरिका की पत्रिका वाल स्ट्रीट जर्नल ने पिछले साल मई में विश्व की प्रतिष्ठित लॉरेंस लीवरमोर नेशनल लैबोरेट्ररी (कैलिफोर्निया) के एक रिसर्च के आधार पर लिखा था कि कोरोना वायरस चीन के लैब में ही बना हुआ वायरस है, बावजूद इसके वैश्विक समुदाय की तरफ से चीन के खिलाफ आवाज नहीं उठी। ऐसे में कहा जा रहा है कि ऑस्ट्रेलिया का अंजाम देखकर विश्व की बड़ी अर्थव्यवस्थाएं चीन से टक्कर लेने से परहेज कर रही हैं। अमेरिका-ब्रिटेन समेत दुनिया के ताकतवर को चीन से टकराने पर अपने व्यापार को गहरा धक्का पहुंचने का डर सता रहा है। वैश्विक समुदाय को लगता है कि अगर उसने चीन के खिलाफ जांच की मांग की, तो शी जिनपिंग उस देश के खिलाफ वही नीति आजमा सकते हैं, जो उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ अपनाई थी। ऐसे में एक बार फिर से यूएस इंटेलीजेंस की रिपोर्ट का इंतजार किया जा रहा है, जो वायरस के जन्मस्थान के बारे में पता लगा रही है और देखना दिलचस्प होगा कि जो बाइडेन प्रशासन चीन के खिलाफ क्या रूख लेता है। वाल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट के बाद अगर किसी देश ने चीन के खिलाफ आवाज उठाई थी तो वो ऑस्ट्रेलिया था। ऑस्ट्रेलिया के स्वास्थ्य मंत्री ग्रेग हंट ने डब्ल्यूएचओ एसेंबली में अपने भाषण के दौरान कहा था कि श्हम कोरोना महामारी के प्रति वैश्विक समुदाय की प्रतिक्रिया, जिसमें जांच की मांग की गई है उसकी व्यापक मूल्यांकन के लिए समर्थन पाकर प्रसन्न हैं। हमें इस महामारी से सबक सीखने और भविष्य में ऐसे प्रकोपों को रोकने और उसके खिलाफ प्रतिक्रिया देने के लिए एक बेहतर स्थिरता के साथ सबसे मजबूत स्वास्थ्य सुविधा सुनिश्चित करने की आवश्यकता है। इन्होंने दुनिया को संबोधित करते हुए डब्ल्यूएचओ पर भी सवाल उठा दिया। उन्होंने कहा कि श्इस निष्पक्ष जांच में इस बात की जांच को भी शामिल किया जाना चाहिए कि क्या डब्ल्यूएचओ जनादेश और शक्तियों का उइस्तेमाल कर पा रहा है और क्या डब्ल्यूएचओ तक समय पर जानकारियां और आंकड़े पहुंच पा रहे हैंश् उन्होंने कहा कि श्ये विश्व के लिए जरूरी है कि जंगली जानवरों के बाजार में मांस से जो बीमारियां पनप रही हैं, उसको लेकर भी विश्व को सुरक्षा के उपाय करने होंगेश् ऑस्ट्रेलिया ने सबसे पहले डब्ल्यूएचओ एसेंबली की मीटिंग में कोरोना वायरस उत्पत्ति को लेकर निष्पक्ष जांच कराए जाने की मांग उठाई थी। जिसके बाद शी जिनपिंग ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ कई व्यापारिक प्रतिबंधों का ऐलान कर दिया। ऑस्ट्रेलियाई शराब और मांस पर ऑर्थिक प्रतिबंध लगा दिया गया। इतना ही नहीं, अपनी आदत के मुताबिक चीन की सरकार ने उल्टा ऑस्ट्रेलिया पर ही चीन के साथ शीत युद्ध छेड़ने का इल्जाम लगाना शुरू कर दिया और आगे जाकर चीन ने ऑस्ट्रेलिया के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौता को भी खत्म करने का ऐलान कर दिया। जब जवाबी कार्रवाई करते हुए ऑस्ट्रेलिया की सरकार ने विक्टोरिया प्रांत और चीन की सरकार के बीच बीआरआई प्रोजेक्ट को कैंसिल कर दिया। जिससे तिलमिलाए चीन ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ व्यापारिक लड़ाई छेड़ दी। यहां तक की चीनी सरकार का भोपूं अखबार ग्लोबल टाइम्स ने ये भी कह दिया की चीन को ऑस्ट्रेलिया पर बैलिस्टिक मिसाइल छोड़ देना चाहिए। 31 मई को पोलित व्यूरो की मीटिंग के दौरान शी जिनपिंग ने कहा कि पोलितब्यूरो को चीन की अच्छी छवि को दुनिया के सामने पेश करना चाहिए। श्वुल्फ वॉरियरश् की छवि से चीन की छवि को काफी धक्का पहुंचा है। श्वुल्फ वॉरियरश् एजेंडा के तहत ही पिछले महीने चीन ने बांग्लादेश को क्वाड में शामिल होने खबर पर धमकाना शुरू कर दिया था। लेकिन, असलियत ये है कि चीन में जापानी, अमेरिकन और यूरोपीयन देशों की कंपनियों ने इतना ज्यादा निवेश कर रखा है कि अब वो चीन के खिलाफ आवाज उठाने से डरते हैं। बीजिंग को उत्तरदायी ठहराने के पीछे अमेरिका और यूरोपीयन देशों को व्यापारिक घाटा होने का डर लगने लगता है। ऐसे में सवाल ये हैं कि अगर अमेरिकन जांच में भी वुहान लैब को लेकर निगेटिव रिपोर्ट आता है, तो फिर अमेरिका क्या करेगा।
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