www.youngorganiser.com Jammu (Tawi) 180001 (J&K Union Territory) Updated, 2nd, Feb. 2021.Tue, 7:23 AM (IST) : Kuldeep Sharma ( ARTICLE), कुरान में मुसलमानों के लिए कुछ चीजें हराम करार दी गई हैं। सूरः अलबकरा की आयत न. 173 में कहा गया है, ‘उसने तो केवल मुर्दार (मरा हुआ जानवर), खून, सुअर का मांस और ऐसा जानवर जिस पर अल्लाह के अलावा किसी और का नाम लिया गया हो। इस पर जो बहुत मजबूर और विवश हो जाए, वह अवज्ञा करने वाला न हो और सीमा से आगे बढ़ने वाला न हो तो उस पर कोई गुनाह नहीं। बेशक अल्लाह दयावान और माफ करने वाला है।’ इसी आयत को आधार बनाकर कुछ मुस्लिम संगठन कोरोना वैक्सीन को हराम बता रहे हैं। वहीं इसी के आधार पर संयुक्त अरब अमीरात की सबसे बड़ी फतवा काउंसिल ने कोरोना वायरस टीकों में पोर्क जिलेटिन का इस्तेमाल होने के बावजूद इसे मुसलमानों के लिए जायज करार दिया है। काउंसिल अध्यक्ष शेख अब्दुल्ला बिन बय्या ने कहा कि अगर कोई और विकल्प नहीं है तो कोरोना वायरस टीकों को इस्लामी पाबंदियों से अलग रखा जा सकता है, क्योंकि पहली प्राथमिकता मनुष्य का जीवन बचाना है। इस बारे में कुरान का आदेश एकदम साफ है। देश में जल्द ही कोरोना वैक्सीन लगनी शुरू हो गई है। कुछ मुस्लिम समाज में इसके हलाल या हराम होने पर बहस छिड़ गई है। मुंबई की रजा अकादमी के नेतृत्व में 9 मुस्लिम संगठनों ने ऐलान किया है कि पहले उलेमा चेक करेंगे कि वैक्सीन हलाल है या नहीं। उनकी मंजूरी के बाद ही मुसलमान इसे लगवाने आगे आएं। वहीं कई उलेमा और मुस्लिम संगठनों ने मुसलमानों से बिना किसी विवाद में पड़े कोरोना वैक्सीन लगवाने की अपील की है।कोरोना वैक्सीन की ही तरह पहले पोलियो और खसरा के टीके को लेकर भी सवाल उठ चुके हैं। ऐसे सवाल हर दवाई या टीके पर उठते रहे हैं। पहले कुछ उलेमा सुअर की चर्बी के इस्तेमाल के नाम पर इन्हें हराम बताते हैं। फिर कुछ उलेमा आगे आकर कहते हैं कि जान बचाने के लिए इनके इस्तेमाल में कोई हर्ज नहीं है। इस तरह किसी नई वैक्सीन, इंजेक्शन या दवाई के मुसलमानों के लिए हराम से हलाल होने में कई साल लग जाते हैं। सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाले देश इंडोनेशिया में भी इस पर बवाल मचा है। वहां के राष्ट्रपति जोको विडोडो ने ऐलान कर दिया है कि जब तक ये सुनिश्चित नहीं हो जाता कि वैक्सीन इस्लामी तरीके से बनी है, और पूरी तरह हलाल है, वो इसे अपने देश में नहीं लगवाएंगे। 2018 में इंडोनेशिया उलेमा काउंसिल ने फतवा जारी कर खसरे के टीके को हराम करार दे दिया था। इससे निश्चित तौर पर कोरोना के खिलाफ जंग कमजोर होगी। इसके लिए मुसलमानों को जिम्मेदार ठहराया जाएगा। कट्टरपंथी हिंदू संगठनों को मुसलमानों के खिलाफ एक और हथियार मिल जाएगा। मुसलमानों को इस पर गौर करना चाहिए कि अगर अल्लाह ने कुरान में जान बचाने के लिए हराम चीजें खाने की छूट दी है, तो अल्लाह की दी हुई इस छूट को खत्म करने का अधिकार किसी उलेमा या मजहबी संगठन को कैसे हो सकता है! अभी तक यह बात साबित नहीं हुई है कोरोना वैक्सीन में सुअर के मांस या चर्बी का इस्तेमाल हुआ है। किसी फार्मा कंपनी या मेडिकल एक्सपर्ट ने इसकी पुष्टि नहीं की है। मेडिकल साइंस एक्सपर्ट्स के मुताबिक जब किसी पशु से एंटीबॉडी लेकर वैक्सीन बनाई जाती है तो उसे वेक्टर वैक्सीन कहा जाता है। लेकिन कोरोना के मामले में ऐसा कुछ भी नहीं है। स्वदेशी कोरोना वैक्सीन भारत बायो टेक के साथ रिसर्च करने वाले शोधकर्ता डॉ. चंद्रशेखर गिल्लूरकर का कहना है कि सुअर और कोरोना वैक्सीन का कोई संबंध नहीं है। फिर सवाल है कि उलेमाओं के पास यह जांचने का क्या तरीका है कि वैक्सीन में पोर्क जिलेटिन है या नहीं है। किस इस्लामी इदारे में ऐसी जांच की व्यवस्था है? अगर है, तो फिर वहीं पर वैक्सीन क्यों नहीं बनाई गई? दरअसल यह हराम-हलाल की बहस में फंसा कर मुस्लिम समाज के बड़े तबके को कोरोना वैक्सीन से दूर करने की साजिश है। दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि यह साजिश वे कर रहे हैं, जिन पर मुसलमानों को जागरूक करने की जिम्मेदारी है।
![CONVERSATION ON HALAL AND HARAM IN INDIA](https://i0.wp.com/youngorganiser.com/wp-content/uploads/2021/02/CONVERSATION-ON-COVID-VACCINES.jpg?resize=300%2C168&ssl=1)